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हारे के सहारे का आज है जन्मदिन.... जानिए कौन है बाबा खाटू श्याम....

हारे के सहारे का आज है जन्मदिन....
जानिए कौन है बाबा खाटू श्याम.... 






विकास की कलम/आध्यात्मिक डेस्क

जब चारों ओर से मुश्किलें घेर ले और कहीं भी रास्ता न मिले तो सीधे खाटू आ जाना.. सीकर पर "मैं स्वयं तुम्हारा स्वागत करूंगा"और फ़िर तुम्हारी जीत सुनिश्चित करूंगा...कुछ इसी तरह का अटूट विश्वास लेकर भारत के राजस्थान के सीकर में स्थित खाटू श्याम जी के मंदिर करोड़ों भक्तों की हाजिरी लगाने का सिलसिला जारी है। क्या आप जानते है कि महाभारत के एक महान योद्धा बर्बरीक ही... आज खाटू श्याम के रूप में पूजे जाते हैं। जानिए कैसे श्रीकृष्ण ने उनकी परीक्षा ली और उन्हें अपने नाम से पूजे जाने का वरदान दिया।


जानिए कैसे बने "बर्बरीक" हारे के सहारे "खाटू श्याम"

इन दिनों पूरे देश में हारे के सहारे की धूम है..देश भर में हर चौथी गाड़ी के पीछे तीन बाण के धारी का निशान दिखाई दे ही जाता है।आलम यह है कि राजस्थान के छोटे से जिले सीकर में स्थित श्री खाटू श्याम जी का मंदिर आज देश-विदेश में प्रसिद्ध है। हर साल लाखों श्रद्धालु यहां ‘हारे के सहारे’ बाबा श्याम के दर्शन के लिए आते हैं। एकादशी की तिथि बाबा खाटू श्याम के लिए काफी प्रिय मानी जाती है।वहीं देव प्रबोधिनी एकादशी को बाबा खाटू का जन्मदिन बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि खाटू श्याम जी का संबंध महाभारत काल से है और वे पांडव भीम के पौत्र थे। उनका असली नाम बर्बरीक था।

जानिए क्या है..? वीर बर्बरीक का परिचय।

वैसे तो वीर बर्बरीक के विषय में स्कंद पुराण में विस्तृत जानकारी दी गई है। लेकिन इसके साथ साथ अलग-अलग विद्वानों ने अलग-अलग पौराणिक कथाओं का बखान किया है। विद्वानों के अनुसार बर्बरीक घटोत्कच और नागकन्या मौरवी के पुत्र थे। घटोत्कच, महाबली भीम और हिडिम्बा के पुत्र थे। इस तरह बर्बरीक पांडव भीम के पौत्र हुए। कहा जाता है कि जन्म के समय उनके बाल बब्बर शेर की तरह घने थे, इसलिए उनका नाम बर्बरीक रखा गया। वे बचपन से ही एक वीर और तेजस्वी योद्धा थे और उन्होंने अपनी मां तथा श्रीकृष्ण से युद्ध कला सीखी थी।

क्यों कहलाए जाते है.. तीन बाण के धारी..

बर्बरीक अपने बाल्य काल से ही बड़े वीर और युद्ध कला में निपुण थे। अपनी मां की प्रेरणा से उन्होंने भगवान शिव की कठोर तपस्या की इसके बाद भगवान शिव ने खुश होकर उन्हें तीन चमत्कारी बाण और दिव्य धनुष आशीर्वाद में दिया था। ये तीन चमत्कारी बाण कोई साधारण नहीं बल्कि तीन ऐसे चमत्कारी बाण है, जो अपने लक्ष्य को भेदकर वापस लौट आते थे। इन तीन बाणों से वे तीनों लोकों पर विजय प्राप्त कर सकते थे। इसी कारण उन्हें ‘तीन बाणधारी‘ भी कहा जाता है। इसके अलावा, भगवान अग्निदेव ने उन्हें एक दिव्य धनुष प्रदान किया था, जो उन्हें अजेय बनाता था।

यूं मिला हारे के सहारे का नाम..

घनघोर तपस्या के बाद बर्बरीक को अजेय अस्त्र शस्त्र आशीर्वाद स्वरूप प्रदान हुए। उसके बाद बर्बरीक अपनी मां के पास पहुंचे और शेष समय अपनी की सेवा करने का विचार बनाया। लेकिन घर पहुंचने के बाद उन्हें अपनी मां से सूचना मिली कि उसके दादा भीम एवं पिता घटोत्कछ भगवान कृष्ण के साथ धर्म युद्ध महाभारत में कौरवों के खिलाफ युद्ध कर रहे है। इस धर्म युद्ध में वीर बर्बरीक ने भी भाग लेने का निर्णय किया। उन्होंने अपनी मां को वचन दिया कि वे युद्ध में हारने वाले पक्ष का साथ देंगे। यही वचन बाद में ‘हारे का सहारा, बाबा श्याम हमारा‘ के जयकारे का आधार बना।

स्वयं श्रीकृष्ण ने ली तीन बाण की परीक्षा

जब बर्बरीक युद्ध के लिए निकल पड़े, तो भगवान श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण का वेश धरकर उनकी परीक्षा लेने का निश्चय किया। उन्होंने बर्बरीक से पूछा कि वे केवल तीन बाणों से युद्ध कैसे लड़ेंगे। बर्बरीक ने उत्तर दिया कि उनका एक ही बाण पूरी शत्रु सेना को समाप्त करने के लिए पर्याप्त है। श्रीकृष्ण ने उनकी शक्ति परखने के लिए उन्हें पास के पीपल के पेड़ के सभी पत्तों को एक ही बाण से भेदने को कहा।
बर्बरीक ने बाण चलाया, जिसने पेड़ के सभी पत्तों को छेद दिया और श्रीकृष्ण के पैर के चारों ओर घूमने लगा, क्योंकि एक पत्ता उन्होंने अपने पैर के नीचे छिपा लिया था। बर्बरीक ने ब्राह्मण से पैर हटाने को कहा, ताकि बाण अपना लक्ष्य पूरा कर सके।


क्यों मांगा गया शीश का दान?

श्रीकृष्ण बर्बरीक के पराक्रम से प्रभावित हुए, लेकिन वे उनकी प्रतिज्ञा से चिंतित हो गए। बर्बरीक ने कहा था कि वे हारते हुए पक्ष से लड़ेंगे। श्रीकृष्ण जानते थे कि कौरव अपनी रणनीति के तहत पहले दिन कमजोर पड़ेंगे, जिससे बर्बरीक उनकी ओर से लड़ने लगेंगे और अपने बाणों से पांडव सेना का नाश कर देंगे।
धर्म की रक्षा के लिए श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण के रूप में बर्बरीक से दान मांगा। बर्बरीक ने वचन दिया, तब श्रीकृष्ण ने उनसे उनके शीश का दान मांग लिया। बर्बरीक समझ गए कि यह कोई साधारण ब्राह्मण नहीं है और उन्होंने अपने वास्तविक रूप में आने की प्रार्थना की। श्रीकृष्ण के प्रकट होने पर, बर्बरीक ने खुशी-खुशी अपने शीश का दान कर दिया, लेकिन उन्होंने महाभारत का पूरा युद्ध देखने की इच्छा प्रकट की। और उसी दिन से बर्बरीक को शीश के दानी का नाम मिला।

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श्रीकृष्ण का वरदान और ‘श्याम’ नाम

भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक की इच्छा का सम्मान करते हुए उनके कटे हुए शीश को अमृत से सींचकर युद्धभूमि के पास एक ऊंची पहाड़ी पर स्थापित कर दिया, जहां से बर्बरीक पूरे युद्ध के साक्षी बने। युद्ध में पांडवों की विजय के बाद जब श्रेय को लेकर बहस हुई, तो बर्बरीक ने कहा कि इस जीत का एकमात्र श्रेय श्रीकृष्ण की नीति को जाता है।
बर्बरीक की इस महानता और बलिदान से प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने उन्हें वरदान दिया, ‘हे बर्बरीक, तुम महान हो। आज से तुम मेरे नाम ‘श्याम‘ से जाने जाओगे और कलियुग में मेरे अवतार के रूप में पूजे जाओगे। जो भी तुम्हारे दर पर आएगा, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी।’ माना जाता है कि उनका वही शीश राजस्थान के खाटू नगर में दफनाया गया था, जहां आज उनका भव्य मंदिर है।

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बाबा के जन्मदिन पर पहुंचते है लाखों भक्त

कहा जाता है कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को बाबा श्याम का शीश मंदिर में सुशोभित किया गया था। इसलिए देवउठनी या प्रबोधनी एकादशी के दिन खाटू श्याम जी का जन्मदिन मनाया जाता है। अगर आप जाने का प्लान बना रहे हैं, तो जान लें आखिर क्या इंतजाम किए गए हैं और किन जगहों पर आप ठहर सकते हैं यहां सस्ते में।
एक नवंबर को मनाए जाने वाले जन्मोत्सव में 20 लाख से अधिक श्रद्धालुओं के आने की संभावना है। भक्तों का आगमन शुक्रवार से शुरू होगा। रींगस की ओर से आने वालों के लिए मुख्य डायवर्जन से चारण मैदान तक नया मार्ग बनाया गया है, वहीं भीड़ बढ़ने पर जिगजैग व्यवस्था लागू होगी।
दांतारामगढ़ मार्ग से आने वालों के लिए रूलाणिया कृषि फार्म से लखदातार मैदान तक नया मार्ग तैयार है। 31 अक्टूबर से 1 नवंबर तक रींगस-खाटू मार्ग नो व्हीकल जोन रहेगा। छोटे वाहन शाहपुरा होते हुए 52 बीघा पार्किंग में रुकेंगे और बसें मंढा रोड से चलेंगी।


जानिए कैसे पहुंचे खाटू श्याम मंदिर


रेल मार्ग से:

खाटू श्यामजी के सबसे पास का रेलवे स्टेशन रींगस जंक्शन है, जो लगभग 17 किमी दूर है। रींगस से मंदिर तक टैक्सी, जीप या बस आसानी से मिल जाती है।

सड़क मार्ग से:

खाटू श्यामजी राजस्थान के सीकर जिले में स्थित है और जयपुर से लगभग 80 किमी दूर है। जयपुर, दिल्ली, अजमेर और सीकर से नियमित बस सेवाएं उपलब्ध हैं।

हवाई मार्ग से:

सबसे पास का हवाई अड्डा जयपुर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है। वहां से आप टैक्सी या बस लेकर लगभग 2 घंटे में खाटू श्याम मंदिर पहुंच सकते हैं।


खाटू श्याम जी मंदिर में भक्तों के लिए खाटू श्याम जी मंदिर के दर्शन का समय:

सर्दियों में (अक्टूबर से मार्च तक) - सुबह 5:30 से शाम 9:00 बजे तक, रात्रि में 6:30 से 9:00 बजे तक
गर्मियों में (अप्रैल से सितंबर तक) - सुबह 4:30 से शाम 10:00 बजे तक, रात्रि में 5:30 से 10:00 बजे तक।





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