Vikas ki kalam

क्यों मौन है..? मनमोहन नगर अस्पताल। खुले सेप्टिक टैंक में गिरने से दो बच्चों की मौत..

क्यों मौन है..? मनमोहन नगर अस्पताल।
खुले सेप्टिक टैंक में गिरने से दो बच्चों की मौत..






विकास की कलम/जबलपुर।

मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले में एक बार फिर विभागीय लापरवाही ने दो मासूम जिंदगियों की बलि चढ़ा दी। मामला जबलपुर के त्रिमूर्ति नगर स्थित मनमोहन नगर अस्पताल का है। जहां अस्पताल परिसर में बने खुले सेप्टिक टैंक में खेलते वक्त गिर जाने से विश्वकर्मा परिवार के दो बच्चों की दर्दनाक मौत हो गई है। इस घटना ने पूरे शहर को झकझोर दिया है और अस्पताल प्रशासन पर गंभीर लापरवाही के आरोप लगे हैं। लेकिन सबसे बड़ी खास बात यह है कि इस पूरी लापरवाही पर किसी भी बड़े विभागीय अधिकारी ने अपनी चुप्पी नहीं तोड़ी है। हालांकि अस्पताल कैंपस के सुपरवाइजर को निष्कासित कर मामले से पल्ला झाड़ने का काम किया गया है लेकिन इतने बड़े अस्पताल में इस हद दर्जे की लापरवाही को लेकर एक बार फिर से स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर उंगलियां उठना शुरू हो गई है।



विश्वकर्मा परिवार के लिए रविवार बना मातम का दिन।


26 अक्टूबर 2025 का दिन गोहलपुर थाना क्षेत्र में रहने वाले विश्वकर्मा परिवार के लिए मातम का दिन साबित हुआ है क्योंकि यहां पर स्थित मनमोहन नगर अस्पताल परिसर में हुई एक दर्दनाक घटना में विभागीय लापरवाही के चलते विश्वकर्मा परिवार के 2 मासूमों को अपनी जान गवानी पड़ी। घटना के बाद से ही विश्वकर्मा परिवार का रो-रो कर बुरा हाल है। उन्हें अभी भी विश्वास नहीं हो रहा की वह जगह जहां पर लोगों को जिंदगियां मिलती हैं उस अस्पताल परिसर में उनके परिवार के दो मासूम चिराग बुझ चुके हैं।



क्रिकेट की गेंद ढूंढते समय हुआ दर्दनाक हादसा


यह पूरा हादसा उस वक्त हुआ जब गोहलपुर थाना क्षेत्र के त्रिमूर्ति नगर की गली नंबर 4 के रहने वाले विश्वकर्मा परिवार के दो बच्चे 10 वर्षीय कान्हा विश्वकर्मा और उसका 12 वर्षीय विनायक विश्वकर्मा मनमोहन नगर स्थित सामुदायिक अस्पताल के पास खेल रहे थे. वहां अस्पताल परिसर में झाड़ियों के बीच एक खुला सेप्टिक टैंक बना हुआ था, जिसके ऊपर कोई सुरक्षा कवर नहीं था। क्रिकेट खेलते समय बच्चों की गेंद झाड़ियों में जा गिरी। दोनों बच्चे गेंद उठाने गए थे। और इसी समय वे झाड़ियों के नीचे खुले पड़े सरकारी अस्पताल के सेप्टिक टैंक में गिर गए। जब बहुत देर तक दोनों नहीं लौटे तो तो साथ में खेल रहे बच्चों ने उनके परिजनों को सारी बात बताई।


परिजनों की चीख पुकार के बीच पुलिस को मिली बच्चों की चप्पल ।

सबसे पहले तो बच्चों को पूरे मोहल्ले में ढूंढा गया लेकिन जब बच्चे नहीं मिले तो परिजन और मोहल्ले वाले पुलिस के साथ अस्पताल परिसर में एकत्र हुए। इस दौरान पुलिस ने झाड़ियों के आसपास छानबीन शुरू की। अस्पताल परिसर के पीछे झाड़ियां का जंजाल फैला हुआ था वहीं पर एक भाई की चप्पल मिली। चप्पल से ही कुछ कदमों की दूरी पर सेप्टिक टैंक का ढक्कन खुला दिखाई दिया। झाड़ियां के बीचो-बीच खुला पड़ा सेप्टिक टैंक पुलिस को संदिग्ध समझ आया और पुलिस ने बच्चों के टैंक में गिरने की आशंका के चलते नगर निगम का दल बुलवाया। नगर निगम के दल द्वारा जब सेप्टिक टैंक खाली कराया गया तो अंदर से दोनों बच्चों के शव बाहर निकले गए ।


पुलिस ने शुरू की जांच बच्चों के शव का हुआ पोस्टमार्टम।

गोहलपुर पुलिस ने घटना की परत दर परत जांच शुरू कर दी है। सेप्टिक टैंक से निकाले गए दोनों मासूमों के शव को विधिवत कार्यवाही करते हुए पोस्टमार्टम के लिए भिजवाया गया है। वहीं पुलिस अब इस घटना से जुड़े हुए हर एक पहलू की बारीकी से जांच कर रही है। प्रथम दृष्टया अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही को लेकर पुलिस द्वारा पूछताछ की जा रही है। वही उपरोक्त घटना को लेकर वास्तविक तौर पर कौन जिम्मेदार है। इस बात का खुलासा जांच के बाद ही हो पाएगा।




क्या जिम्मेदारों को नहीं दिखी थी इतनी बड़ी लापरवाही


इस बड़ी घटना ने एक बार फिर से सरकारी रवैया की कलई खोलना शुरू कर दिया है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि शहर के बीचो-बीच बना एक बड़ा शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जहां प्रतिदिन 300 से 400 मरीजों की ओपीडी रहती है। इतने बड़े अस्पताल परिसर में सेप्टिक टैंक का ढक्कन खुला रह जाना अपने आप में अचंभे की बात है। और उससे ज्यादा शर्मनाक बात यह है कि उसे खुले हुए सेप्टिक टैंक को झाड़ियों से छुपा कर रखा गया था। सेप्टिक टैंक के खुले ढक्कन के आसपास उगी हुई झाड़ियां से एक बात तो साफ हो रही है की... ना तो यहां साफ सफाई का कोई ध्यान रखा जा रहा था और ना ही जिम्मेदार अधिकारियों ने कभी इस खुले सेप्टिक टैंक को दुरुस्त करने की जहमत उठाई। स्वच्छता और सफाई का संदेश देने वाले जिम्मेदार अधिकारी लाखों करोड़ों रुपए की होली खेल कर सरकारी अस्पतालों के दुरुस्त होने का दावा करते हैं लेकिन क्या यहां पर कार्यरत किसी भी विभागीय अधिकारी या डॉक्टर को खुले सेप्टिक टैंक से बदबू नहीं आई। इतने बड़े अस्पताल परिसर में क्या कोई भी ऐसा सुरक्षा कर्मी नहीं है जो अस्पताल परिसर के आसपास आने जाने वाले लोगों को नियंत्रित कर सकता हो। हकीकत तो यह है कि..यदि अस्पताल प्रबंधन का एक भी अधिकारी जिम्मेदारी से अपनी एक घंटे की भी ड्यूटी बजा देता तो शायद विश्वकर्मा परिवार के दोनों मासूमों की जान नहीं जाती।


मौके पर पहुंचे जनप्रतिनिधि,परिवार को बंधाया ढांढस 


इस दुखद हादसे की खबर लगते ही लोक निर्माण मंत्री राकेश सिंह, विधायक डॉ. अभिलाष पांडे, विधायक संतोष बरकड़े, कलेक्टर राघवेन्द्र सिंह, एसपी संपत उपाध्याय, पार्षद रेणु कोरी, पूर्व विधायक विनय सक्सेना सहित कई जनप्रतिनिधि रात में ही पीड़ित परिवार से मिलने पहुंचे और संवेदनाएं व्यक्त करते हुए उन्हें ढांढस बंधाया। उन्होंने पीड़ित परिवार की आर्थिक मदद के लिए मुख्यमंत्री से बातचीत की। मुख्यमंत्री के निर्देश पर कलेक्टर ने पीड़ित परिवार को 8 लाख
रु. की आर्थिक सहायता स्वीकृत की है।



विकास की कलम के सवाल

  • सेप्टिक टैंक का ढक्कन खुला क्यों छोड़ा गया.. ?
  • खुले ढक्कन के आसपास सफाई व्यवस्था क्यों नहीं की गई थी..?
  • सेप्टिक टैंक के खुले ढक्कन के पास चेतावनी क्यों नहीं लिखी थी..?
  • अस्पताल परिसर में कोई कर्मचारी या सुरक्षा कर्मी तैनात क्यों नहीं था..?
  • सेप्टिक टैंक खाली करवाते समय अस्पताल प्रबंधन का कोई भी जिम्मेदार अधिकारी मौजूद क्यों नहीं था...?

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