क्या खुद बीमार है सूरजपुर जिला अस्पताल।
सोनोग्राफी सेंटर में ताले का क्या है राज..?
विकास की कलम/जबलपुर।
जन स्वास्थ्य और सस्ती सुलभ उपचार व्यवस्था के आधार पर केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा संचालित हो रहे जिला अस्पताल इन दिनों बदहाली का शिकार हो रहे हैं। जिसमें सबसे ज्यादा बद हा स्थितियों में ग्रामीण अंचलों और छोटे जिलों के जिला अस्पतालों शुमार है। जहां पदस्थ अधिकारी को जनता को स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराने से ज्यादा अपने निजी हित की चिंता रहती है। यही कारण है कि जगह-जगह जिला अस्पताल बदनाम हो रहे हैं।
आज हम बात करेंगे सूरजपुर जिला अस्पताल की जो अक्सर ही अपनी अवस्थाओं के कारण चर्चा में बना रहता है। यह मरीज आता तो मुफ्त उपचार की आशा लेकर लेकिन दलालों का नेटवर्क और अधिकारियों द्वारा गुमराह किए जाने पर ना चाह कर भी वह महंगी जांच करवाने को मजबूर हो जाता है। सक्रिय दलालों का नेटवर्क और अधिकारियों की आपसी गठजोड़ के चलते। मरीज से उनकी मजबूरी का फायदा उठाते हुए ऊल जलूल रकम वसूली जा रही है।एक सरकारी अस्पताल इलाज कराने आने वालों पर किस कदर बढ़ रहा जांच का खर्च इस पर देखिए हमारी एक खास रिपोर्ट ,,,,,
भ्रष्टाचार की भेंठ चढ़ गया,सूरजपुर का जिला अस्पताल
खनिज संपदाओं परिपूर्ण और वनांचल से घिरा सूरजपुर जिला भौगोलिक और आर्थिक दृष्टि से काफी मजबूत माना जाता है। ग्रामीण पृष्ठभूमि से होने के चलते यहां की 90% आबादी ग्रामीण जनों की है। जिसमे से अधिकतर लोग निम्नवर्ग से आते है । यहां पर ग्रामीणों को स्वास्थ्य व्यवस्था उपलब्ध कराने के लिए कई प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र उपलब्ध है लेकिन ग्रामीण अंचलों में बने यह स्वास्थ्य केंद्र आधुनिक उपकरणों की कमी के चलते पूर्ण उपचार उपलब्ध नहीं करवा पाते। यही कारण है कि पीड़ित मरीजों का एक बहुत बड़ा तबका बेहतर उपचार के लिए लंबा सफर तय कर सूरजपुर के जिला चिकित्सालय पहुंचता है।
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सूरजपुर जिला अस्पताल की माने तो कागजों में यह काफी दुरुस्त जिला अस्पताल है जहां हर उपचार के लिए बेहतर उपकरण जांच विशेषज्ञों की टीम और निशुल्क दवा वितरण केंद्र उपलब्ध है। सरकार का दावा है कि यहां पर सामान्य से लेकर कई गंभीर बीमारियों का उपचार अच्छे विशेषज्ञों की देखरेख में पूर्णता निशुल्क किया जा रहा है। और हो भी क्यों ना क्योंकि सरकार द्वारा मरीजों को निशुल्क उपचार व्यवस्था उपलब्ध कराने के लिए प्रति माह लाखों करोड़ों रुपए जिला अस्पताल के प्रबंधन के लिए खर्च किए जाते हैं।
इन्हीं खोखले दावों के चक्कर में आकर दो तरह से मरीज जिला अस्पताल की शरण में बेहतर एवं निशुल्क उपचार की व्यवस्था के लिए खींचे चले आते हैं लेकिन हकीकत इससे कोसो दूर है। यहां मरीज आता तो निशुल्क स्वास्थ्य सुविधा प्राप्त करने के लिए है लेकिन दलालों का नेटवर्क और अधिकारियों की आपसी साठ गांठ के चलते मरीज को जानबूझकर यहां से वहां भटकाया जाता है।
कहीं निजी संस्थाओं को फायदा पहुंचाने जिला अस्पताल के भ्रष्ट अधिकारी रच तो नहीं रहे साजिश।
केंद्र और राज्य सरकार के द्वारा किए गए दावों की माने तोज़रूरत मन्दों को बेहतर उपचार व्यवस्था उपलब्ध कराने के लिए सरकार द्वारा जिला अस्पतालों को अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस किया गया है। इसके लिए यहां उच्च स्तरीय जांच उपकरण और दावों का होना भी सुनिश्चित कराया जाता है।
लेकिन इन दिनों निजी लाभ कमाने के चक्कर में एक अलग तरह की साजिश रची जा रही है जिसके चलते पहले तो मैरिज उसके परिजनों को बेवजह दर-दर भड़काया जाता है और फिर मशीन खराब होने का हवाला देकर उन्हें मोटे कमीशन की आड़ में निजी संस्थानों में जांच के लिए भेजा जाता है।
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मरीजों की मजबूरी का मजाक उड़ा रहा ताला लगा हुआ सोनोग्राफी सेंटर।
जिला अस्पताल को जब अल्ट्रासाउंड मशीन की सौगात मिली तब लोगो को लगा था कि अब उन्हें निजी क्लीनिकों के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे और जो जांच में 15 सौ से 2 हजार रुपये एक बार सोनोग्राफी कराने पर उनको खर्च करने पड़ते हैं वह भी उनकी बचत होगी,,, क्योंकि जिला अस्पताल में मात्र 250 रुपए में ही मरीज को यह सुविधा उपलब्ध हो जा रही थी,,,लेकिन अब यह सुविधा अस्पताल प्रबंधन की उदासीनता के कारण बंद हो गई है और सोनोग्राफी जांच के लिए बनाए गए कमरे के बाहर ताला लटक कर इसकी शोभा बढ़ा रहा है। जिसकी वजह से उपचार के लिए जिला अस्पताल पहुंचे मरीज एवं गर्भवती महिलाओं को प्राइवेट क्लीनिकों में जाकर अपनी जांच करानी पड़ रही है ।
महिनों का से धूल खा रही,सोनोग्राफी मशीन
जिला अस्पताल सूरजपुर में लाखों की लागत वाली अत्याधुनिक सोनोग्राफी मशीन लगाई गई थी । इस मशीन की माध्यम से पीड़ितों की निशुल्क जांच किया जाना सुनिश्चित किया गया था। इस मशीन के आने से जिले में संचालित कई सोनोग्राफी सेंटरों में ताला लगने की नौबत आ गई थी। जब बेहद कम दामों पर या फिर पूर्णता निशुल्क रूप से सोनोग्राफी की व्यवस्था उपलब्ध हो तो फिर आदमी निजी केंद्र में मोटी रकम देकर जांच क्यों कराएगा।
सोनो ग्राफी मशीन का अचानक बंद हो जाना
इसे इत्तेफाक ही कहें या फिर कोई साजिश कि बीते कुछ माह से अचानक जिला अस्पताल की सोनोग्राफी मशीन बंद हो चुकी है और रोजाना आधा सैकड़ा से अधिक मरीजों को सोनोग्राफी करने के लिए निजी संस्थानों में भेजा जा रहा है। इधर निजी संस्थान भी अपने मनमानी ढंग से जांचों के लिए मोटी रकम वसूल रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि अप्रत्यक्ष रूप से इन जांच संस्थाओं के माध्यम से एक तगड़ा कमिशन जिम्मेदार अधिकारियों की जेबों तक भी पहुंचाया जा रहा है।
जलेबी की तरह गोल-गोल बातें करते नजर आए अस्पताल अधीक्षक।
जब इस पूरे कारनामे को लेकर सूरजपुर जिला अस्पताल के अधीक्षक डॉ अजय मरकाम से पूछा गया तो डॉक्टर साहब ने बातों को जलेबी की तरह गोल-गोल घूमना शुरू कर दिया। डॉ अजय मरकाम की माने तो जो रेडियोलॉजिस्ट इसका संचालन करते थे वह रिजाइन देकर जा चुके हैं। और रेडियोलॉजिस्ट के अभाव में लाखों की मशीन धूल खा रही है। तकरीबन 2 महीने से मशीन बंद पड़ी हुई है।
अपनी कलम बचाते हुए डॉक्टर साहब ने यह भी कह डाला कि जब बहुत अधिक जरूरत पड़ती है तो वह महीने में एक या दो बार मरीजों के लिए जरूर इस सुविधा को दूसरे डॉ के भरोसे संचालित करा रहे हैं।लेकिन रोजाना जांच के लिए अस्पताल पहुँचने वाले मरीजों के लिए उनके पास अस्पताल मे रेडियोलॉजिस्ट डॉक्टर नही होने के कारण कोई भी वैकल्पिक व्यवस्था नही है ।
स्वास्थय मंत्री के गृह संभाग में ही स्वास्थ्य व्यवस्था लचर
बता दें कि यह प्रदेश के स्वस्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल का ही गृह सम्भाग है,,,जहाँ डॉक्टर न होने के कारण यह सुविधा से लोगो को वंचित होना पड़ रहा है ,,,जिसको लेकर कांग्रेस भी हमलावर नज़र आ रही है ,,,,, किसान कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष ने इसको सरकार की विफलता बताते हुए कहा कि स्वस्थ्य मंत्री जी के पूरे गृह सम्भाग में ऐसी ही स्थिति है कि कहीं जांच नही हो रहा तो कहीं दवाइयां उपलब्ध नही हो पा रही है कर्मचारी अपनी मांगों को लेकर हड़ताल कर रहे है जिसे स्वस्थ्य व्यवस्था प्रभावित हो रही है ,,,,तो दूसरी ओर क्षेत्रीय विधायक भूलन सिंह मरावी ने मामले पर संज्ञान लेते हुए कहा कि उनतक अभी जानकारी पहुँची है ,,उनके द्वारा जल्द ही स्वस्थ्य मंत्री से बात कर डॉ उपलब्ध कराया जाएगा वहीं डॉक्टर अस्पताल में किस वजह से कार्य नहीं करना चाह रहे इसकी भी वह जांच कराएंगे ।
विकास की कलम का सवाल
विकास की कलम अपने इस लेख के माध्यम से उन तमाम जिम्मेदारों से यह सवाल करती है कि यदि शासन प्रशासन बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने का दावा करता है तो फिर कागजों से उतरकर यह सुविधा जरूरतमंद मरीजों तक क्यों नहीं पहुंच पाती। जिला अस्पताल में पदस्थ अधिकारियों और कर्मचारियों के लापरवाह रवैया पर जनप्रतिनिधि क्यों मौन बैठे हुए हैं। कहीं ऐसा तो नहीं की कमिशन के सिस्टम का जुगाड़ इतना तगड़ा हो चला है कि जिम्मेदार भी अधिकारियों पर कार्यवाही करने से कतराने लगे हैं। सूरजपुर का जिला अस्पताल रोजाना सैकड़ो हजारों मरीजों की आशा और विश्वास पर बट्टा लगाने का काम कर रहा है। अगर जिम्मेदार अधिकारियों ने इसी तरह की लापरवाही को जारी रखा तो वह दिन दूर नहीं जब सरकार को ही ऐसे संस्थान बंद करने पड़ेंगे और फिर मोटी तनख्वाह उठाने वाले अधिकारी भी सड़कों पर आ जाएंगे।






