इमाम हुसैन की कुर्बानी देती है शांति का पैगाम
शिया मातमी जुलूस देखने वालों की सांसें थमीं
जबलपुर । मुहर्रम की १० तारीख को शिया समुदाय ने सुबह ७.३० बजे मस्जिद जाकिर अली में आमाले आशूरा अदा किये फिर इमामबाड़े में मजलिस के बाद जुलूस रवाना हुआ जो कि पूâटाताल, खटीक मोहल्ला होते हुये कोतवाली पहुँचा। मौलाना साहब ने अपनी तकरीर में कहा कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के बारे में कहा कि जितनी याद इमाम हुसैन की मनाई जाती है, उतनी विश्व में किसी शहीद, राष्ट्रीय नेता किसी हीरो या अन्य पैगम्बर की नहीं मनाई जाती इस वास्तविकता के अनेक कारा हैं। जहाँ इस कुर्बानी से मानवता, शांति, सदाचार और अन्य बहुत सी अच्छाईयों की जहाँ प्रेरणा मिलती है, वहीं सबसे बड़ी खूबी यह है कि इनकी याद मनाते समय जाति-धर्म, सम्प्रदाय या राष्ट्र एवं वर्गीय-भेद बिल्कुल समाप्त हो जाता है। प्रत्येक व्यक्ति के वल इंसान रहता है। उनमें हिन्दु, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई आदि अनेक विचारों की सुगंध तो मिल सकती है लेकिन किसी का पृथक आस्तित्व दिखाई नहीं देता। सब यही कहते नजर आयेंगे ‘‘हमारे हुसैन’’ इसी तारतम्य में आपने संस्कारधानी के भाईचारा एकता की बहुत तारीफ की।
तकरीर के बाद शिया नौजवानों ने कोतवाली में जंजीर का मातम किया, जिससे उनकी पीठ लहू-लुहान हो गई। देखने वालों की सांसें थम गर्इं। इन सबसे बेखबर शिया नौजवान या हुसैन या मौला के नारों के साथ मातम करते रहे। मातमी जुलूस में शामिल अकीदतमंद नौहा पढ़ते चल रहे थे। काले कपड़े पहने नंगे पाव यह जुलूस पुâहारा, बल्देवबाग होते हुये कर्बला मेें समापन हुआ।