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सिंधू समझौता के कारण एक्ट ऑफ वॉर जानिए आखिर क्या है इंडो - पाक सिंधू समझौता



सिंधू समझौता के कारण एक्ट ऑफ वॉर
जानिए आखिर क्या है इंडो - पाक सिंधू समझौता







विकास की कलम/ नई दिल्ली।

पहलगाम में आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के रिश्ते खराब दौर में हैं। भारत ने इस हमले के बाद पाकिस्तान के साथ सिंधु नदी जल समझौते को रद्द कर दिया है। भारत सरकार आर-पार के मूड में है और सरकार का रुख स्पष्ट है कि पानी और खून साथ-साथ नहीं बह सकते। उधर, भारत के इस कदम पर पाकिस्तान बौखलाया हुआ है और इसे एक्ट ऑफ वॉर करार दिया है। इतना ही नहीं पाकिस्तान ने भारत को परमाणु बम की भी धमकी देनी शुरू कर दी है।

भारत और पाकिस्तान के बीच 65 साल पहले हुई इस जल संधि के तहत दोनों देशों के बीच नदियों के जल प्रबंधन को लेकर समझौता हुआ था और इसके बाद दोनों देशों के बीच साल 1965, 1971 और 1999 में तीन बड़े युद्ध हुए लेकिन इस संधि पर असर नहीं पड़ा। लेकिन जम्मू कश्मीर के पहलगाम में हुए हमले में 26 लोगों के मारे जाने के बाद भारत ने जिन कड़े क़दमों का एलान किया उनमें यह सबसे बड़ी कार्रवाई माना जा रहा है.


बता दें सिंधु जल समझौता इसलिए अहम था, क्योंकि पाकिस्तान के पंजाब और सिंध प्रांत की खेती, बिजली परियोजनाएं और पीने की पानी की जरूरत इस पर ही निर्भर थी. समझौता रद्द होने से पाकिस्तान के सामने बड़ा जल संकट खड़ा हो सकता है। बता दें भारत और पाकिस्तान के बीच पानी के विवाद को सुलझाने के लिए 1960 में सिंधु जल समझौता हुआ था। इस समझौते के तहत सिंधु जल प्रणाली की छह नदियों के जल का बंटवारा किया गया था, जिसके तहत सिंधु, चिनाब और झेलम नदियों के पानी पर पाकिस्तान को अधिकार दिया गया था।यह सिंधु जल प्रणाली का 80 फीसदी जल था. वहीं भारत ने रावी, ब्यास और कि सतलुज पान का उपयोग करना शुरू कर दिया।

सिंधु नदी तिब्बत में कैलाश पर्वत श्रृंखला के उत्तरी ढलानों में मानसरोवर कह झील के पास स्थित बोखर चू के निकट एक ग्लेशियर से निकलती है। यह नदी पर उत्तर से पश्चिम दिशा में बहती हुई भारत आ में लद्दाख क्षेत्र में प्रवेश करती है। यहां से

यह जम्मू-कश्मीर होते हुए पाकिस्तान के गिलगित-बाल्टिस्तान में प्रवेश करती है और बाद में अरब सागर में मिल जाती है। सिंधु नदी की कुल लंबाई 2880 किलोमीटर है, जिसमें 1114 किलोमीटर की यात्रा यह भारत में ही पूरी करती है।

पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख़्वाजा आसिफ़ ने बीबीसी से एक इंटरव्यू में कहा है कि भारत की ओर से सिंधु जल संधि को निलंबित करने के फ़ैसले के ख़िलाफ़ मध्यस्थता के लिए पाकिस्तान वर्ल्ड बैंक जाएगा।




ख़्वाजा आसिफ़ ने कहा, ''हम इस मामले को लेकर वर्ल्ड बैंक जाएंगे क्योंकि उसकी मध्यस्थता में यह संधि हुई थी. यह संधि 1960 में हुई थी और ये काफी लंबे समय से सफल रही है. लेकिन वो (भारत) इससे एकतरफ़ा पीछे नहीं हट सकता.''

पिछले सप्ताह पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने कहा था, "अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के तहत भारत इंडस बेसिन संधि (सिंधु जल संधि) पर रोक नहीं लगा सकता. ऐसा करना समझौते से जुड़े क़ानून का घोर उल्लंघन होगा."

पाकिस्तान पहले ही जल संकट से जूझ रहा है और इस संधि के निलंबित किए जाने से उसकी मुसीबत बढ़ सकती है.

यह संधि पाकिस्तान में कृषि और हाइड्रोपॉवर प्रोजेक्ट के लिए बहुत अहम है और पाकिस्तान में 80 प्रतिशत सिंचाई के पानी की आपूर्ति इन्हीं नदियों के पानी से होती है.

पाकिस्तान के विधि और न्याय राज्य मंत्री अक़ील मलिक ने बीते सोमवार को समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा कि पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के इस फैसले को चुनौती देने की तैयारी कर रहा है.

अक़ील मलिक ने कहा, "पाकिस्तान तीन अलग अलग क़ानूनी विकल्पों पर विचार कर रहा है जिनमें इस संधि के मध्यस्थ रहे वर्ल्ड बैंक के सामने भी मुद्दा उठाना शामिल है."
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान परमानेंट कोर्ट ऑफ़ आर्बिट्रेशन और अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय (आईसीजे) में भी इस मुद्दे को उठाने पर विचार कर रहा है.
उनके अनुसार, पाकिस्तान वहां ये आरोप लगा सकता है कि भारत ने साल 1969 वियना कन्वेंशन के लॉ ऑफ़ ट्रीटीज़ (संधि के नियम) का उल्लंघन किया है.
मलिक ने कहा कि पाकिस्तान किस केस को आगे ले जाएगा, इस पर 'जल्द' फ़ैसला होगा और हो सकता है कि एक से अधिक फ़ोरम पर इस मुद्दे को उठाया जाए.
उन्होंने कहा, "क़ानूनी रणनीति से जुड़ा सलाह मशविरे का काम लगभग पूरा हो चुका है."
हालांकि इस पर भारत की ओर से अभी कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है।



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