एमपी हाईकोर्ट जस्टिस अतुल श्रीधरन का भावुक फेयरवेल
विकास की कलम/जबलपुर
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन के विदाई समारोह में भावनाओं का अनोखा दृश्य देखने को मिला। उन्होंने मशहूर शायर राहत इंदौरी का शेर पढ़ते हुए कहा— “जो आज साहिब-ए-मसनद हैं, कल नहीं होंगे, किराएदार हैं, जाती मकान थोड़ी है।” यह शेर सुनते ही समारोह में मौजूद न्यायाधीशों और अधिवक्ताओं की आंखें नम हो गईं। हाल ही में जस्टिस श्रीधरन का इलाहाबाद हाईकोर्ट में स्थानांतरण हुआ है। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि स्थानांतरण सेवा का हिस्सा है और उन्हें देश के सबसे बड़े हाईकोर्ट में कार्य करने का अवसर मिलने की खुशी है। उन्होंने मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा, अपने सहकर्मी न्यायाधीशों और गुरुओं गोपाल सुब्रमण्यम व सत्येंद्र कुमार व्यास के प्रति आभार व्यक्त किया।
अपने कार्यकाल में जस्टिस श्रीधरन कई महत्वपूर्ण स्वतःसंज्ञान मामलों के लिए चर्चित रहे, जिनमें दमोह पैर धुलाई कांड, मंत्री विजय शाह के विवादित बयान और शिवपुरी जज टिप्पणी प्रकरण शामिल हैं। दमोह कांड की सुनवाई के दौरान उन्होंने कहा था— “यदि जातीय पहचान पर नियंत्रण नहीं किया गया, तो डेढ़ सदी में खुद को हिंदू कहने वाले आपस में लड़कर समाप्त हो जाएंगे।” उन्होंने कानून की निष्पक्षता और सामाजिक संवेदनशीलता को सर्वोपरि बताया। फेयरवेल के अंत में उन्होंने कहा— “पद स्थायी नहीं, सेवा स्थायी होती है; हमें याद पद से नहीं, कर्म से रखा जाता है।”
