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हम बोलेगा..तो बोलोगे की..बोलता है..





इधर खाली खजाने का रोना,उधर लक्जरी इनोवा टूर
खरीदी केंद्रों में जम गया , जबरिया पत्रकारों का जमघट
कमलाकर और पंजू बता रहे.. कोरोना के मायने



इधर खाली खजाने का रोना,उधर लक्जरी इनोवा टूर


आधिकारिक रिकॉर्डों की बात की जाए तो जबलपुर की जिम्मेदारी उठाने वाली लाल बिल्डिंग आर्थिक रूप से कंगाल कही जा रही है बीते कुछ वर्षों में पड़ी कोरोना की मार ने खजाने को खाली कर दिया था। जैसे तैसे जुगाड़ की मेल दौड़ाते हुए निगम की गाड़ी विकास की यात्रा तय कर रही थी ।लेकिन नगर सत्ता काबिज होने के बाद काम चलाने के लिए फंड आने शुरू हो गए। जनता सोच रही थी कि अब अनुदान में आए पैसे से जनता की भलाई के ताबड़तोड़ कार्य किए जाएंगे लेकिन हाल ही में आइ एक घटना ने बड़े सवालिया निशान खड़े कर दिए। दरअसल भोपाल में आयोजित प्रशिक्षण शिविर में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए भाजपा के सभी 45 पार्षदों को भोपाल जाना था। सूत्र बताते हैं कि इसके लिए सबसे पहले एक बस की व्यवस्था की गई थी। लेकिन अचानक ही पूरी व्यवस्था में बदलाव करते हुए 16 लग्जरी इनोवा गाड़ियों की व्यवस्था की गई। खास बात यह है कि शहर में मौजूद भाजपा पार्षदों की गिनती और गाड़ियों की गिनती का जोड़ निकाला जाए तो प्रत्येक गाड़ी में दो से तीन लोग ही भोपाल गए। जबकि एक इनोवा गाड़ी में 6 से 7 लोगों के बैठने की पर्याप्त व्यवस्था होती है । खबर तो यह भी है कि इस पूरे लग्जरी टूर का खर्चा निगम प्रशासन ने उठाया है। अब सवाल यह है कि जब बस के माध्यम से भोपाल की सैर हो सकती थी। तो बेवजह इतनी लग्जरी गाड़ियां भेज कर जनता के पैसों की होली क्यों खेली गई। हालांकि इस पूरे मामले में डैमेज कंट्रोल करने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं लेकिन हकीकत तो यह है की
मामले में सवाल करने वालों से जिम्मेदार हो रहे हैं दूर..
इधर खाली खजाने का रोना, उधर लक्जरी इनोवा टूर..


खरीदी केंद्रों में जम गया , जबरिया पत्रकारों का जमघट

खुशी मनाओ की खरीदी का मौसम लौट आया है। और इस जश्न में कालाबाजारी करने वालों के साथ साथ कुछ कथित पत्रकारों की भी लग्नहाई शुरू हो गई है। तड़के सुबह से लेकर देर शाम तक और कभी कभी देर रात तक कथित पत्रकार खरीदी केंद्रों पर नज़र गड़ाए बैठे रहते है। खरीदी केंद्र में ऊपरी कमाई की छाछ और महेरी के जुगाड़ में भटकते ये बुद्धिजीवी इतने अलर्ट रहते है मानों दुनिया भर की तस्करी यहीं से हो रही हो।इन्हें न तो खबरों से सरोकार है और न ही किसी जनजागृति से। ये तो बस जबरिया तौर पर पत्रकारिता का तमगा टांगे बख्शिश की राह निहारते है। और अगर इन सब के बीच कोई तगड़ा पत्रकार खरीदी केंद्रों में हो रहे भ्रष्टाचार की जबरदस्त खबर लगा देता है तो रातों-रात ही इन कथित पत्रकारों की डिमांड का शेयर उछाल मार जाता है। लेकिन व्यवहारिक दृष्टि से देखा जाए तो यह इतने भी बुरे नहीं होते बल्कि जाने अनजाने में यह एक प्रकार की समाज सेवा ही कर रहे होते हैं जिनका इन्हें खुद एहसास नहीं होता। दरअसल भंडार घर में छुपा हुआ सांप जिस तरह से अनाज खाने वाले चूहों पर लगाम लगाता है ठीक उसी तरह से खरीदी केंद्रों के आसपास बिलबिलाने वाले यह सांप कुछ हद तक कालाबाजारी करने वालों पर भी लगाम लगाए रखते है। हालांकि भ्रष्टाचारियों के साथ सांठगांठ कर यह बुद्धिजीवी पूरी ईमानदारी के साथ अपना हिस्सा लेकर खामोश बैठ जाते हैं लेकिन इन्हीं में से कोई एक रुठा फूफा कुछ ऐसे राज उजागर कर देता है जिसके सामने आते ही कालाबाजारी का भंडाफोड़ हो जाता है। अलाम यह है कि अब खुले तौर पर सामने आने लगी है बुद्धिजीवियों की खटपट..क्योंकि
खरीदी केंद्रों में जम गया , जबरिया पत्रकारों का जमघट


कमलाकर और पंजू बता रहे.. कोरोना के मायने

शहर के तीन पत्ती चौक पर चाय की चुस्कियां लेते हुए बतौलेबाजी कर रहे दो बुद्धिजीवी कमलाकर और पंजू कोरोना वायरस को अपने अपने अंदाज में समझाने का प्रयास कर रहे थे। कमलाकर बोला कोरोना एक बार फिर से देश के अंदर दस्तक दे रहा है मोदी जी ने बेहद सतर्कता दिखाते हुए पहले ही इस वायरस से निपटने की तैयारी कर ली है। हमें भी मोदी जी की बात मानते हुए दो गज की दूरी और मास्क जैसी मूलभूत सावधानियों को अपनाना चाहिए। तभी कमलाकर को रोकते हुए तपाक से पंजू ने अपना पक्ष रखा। पंजू की माने तो कोरोना महज सियासी हथियार बन कर रह गया है। इस बार उसका इस्तेमाल केवल भारत जोड़ो यात्रा को तोड़ने के लिए किया जा रहा है। कांग्रेसियों की बढ़ती लोकप्रियता और भाजपा की घटती साख को कोरोना के किस्से के साथ मैनेज करने का प्रयास किया जा रहा है। पंजू की बात को काटते हुए कमलाकर ने कहा कि कोरोना संक्रमण को सियासी हथियार कहना सरासर गलत है जनता के हित के लिए ही दोबारा एहतियातन गाइडलाइन जारी की जा रही है। ताकि भयावह स्थिति ना बन सके। कमलाकर के तर्क पर तंज कसते हुए पंजू ने कहा कि जब भाजपा बड़ी बड़ी रैलियों के माध्यम से कोरोना फैला रही थी तब किसी को भयावह स्थिति की याद नहीं आई और जब भारत जोड़ो यात्रा अपने शबाब पर है तब लोगों को कोरोना का डर सता रहा है। चौराहे पर खड़े लोग भी अपने-अपने विवेक के अनुसार कमलाकर और पंजू के तर्कों पर अपनी सहमति जता रहे थे।लेकिन हकीकत तो यह है कि कोरोना न तो कमलाकर के कमल को छोड़ेगा न ही पंजू के पंजे को।
इससे बचाव के लिए हमें बिना किसी लापरवाही के सावधान रहना होगा।
पिछली बार भी कोरोना दिखा चुका है राजनेताओ को आईने.. फिर भी
कमलाकर और पंजू बता रहे.. कोरोना के मायने


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