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Thackeray vs Shinde ठाणे जिले में सैकड़ों शिवसैनिक शिंदे के साथ , उल्हासनगर की पूर्व महापौर भी शिंदे के साथ

Thackeray vs Shinde ठाणे जिले में सैकड़ों शिवसैनिक शिंदे के साथ , उल्हासनगर की पूर्व महापौर भी शिंदे के साथ  



ठाणे, महाराष्ट्र

। विगत दो दिनों से महाराष्ट्र की राजनीति में भूचाल आया हुआ है. शिवसेना के कद्दावर नेता और नगर विकास मंत्री एकनाथ शिंदे के बगावत से उद्धव सरकार संकट में है. डेमेज कंट्रोल की हर कोशिश नाकाम साबित हो रही है. एकनाथ शिंदे के तेवर से ये साफ दिख रहा है कि किसी भी वक्त राज्य में उद्धव सरकार गिर जाएगी. अब यहां देखना दिलचस्प होगा कि राज्यपाल क्या भूमिका निभाते हैं. क्योंकि दो प्रमुख चर्चा है. पहली ये कि भाजपा सरकार बनाने का दावा पेश कर सकती है और दूसरा ये कि मुख्यमंत्री ठाकरे विधानसभा भंग करने की सिफारिश कर सकते हैं. इसलिए यहाँ अब राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है. बात करें एकनाथ शिंदे की तो काफी कम समय में एकनाथ शिंदे ने समूचे ठाणे जिला ही नहीं बल्कि महाराष्ट्र भर में अपनी जननेता वाली छवि बना ली. खासकर पिछले साल राज्य में जहां भी बाढ़ के हालात उत्पन्न हुए वहां दौरा कर एकनाथ शिंदे ने राहत व बचाव कार्य का जायजा लिया. इससे पहले कोरोना काल में भी वे जनता के बीच रहकर उन्हें संकट की घड़ी से बाहर निकालने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इस दरम्यान वे खुद पॉजिटिव होने के बावजूद अस्पताल से अपना कामकाज जारी रखा था. यहां तक कि उन्हें अगर पता चलता कि कोई शिवसैनिक पॉजिटिव होकर अस्पताल में है तो वे स्वयं पीपीई कीट पहनकर अस्पताल में जाकर उक्त शिवसैनिक का कुशलक्षेम पूछते. यानि कुल मिलाकर ठाणे जिले के वे एक सशक्त जन नेता के रूप में अपनी छवि बना चुके हैं. ठाणे जिले में अधिकांश शिवसैनिक एकनाथ शिंदे के समर्थन में रहे हैं. यही वजह है कि उल्हासनगर, अंबरनाथ, कल्याण-डोंबिवली, भिवंडी और ठाणे ही नहीं बल्कि राज्य के कई शहरों में अब धीरे-धीरे शिवसैनिक एकनाथ शिंदे के समर्थन में आ रहे हैं. बुधवार को उल्हासनगर की पूर्व महापौर लीलाबाई आशान, पूर्व नगरसेवक अरुण आशान, विजय (बीजू) पाटिल, शिवसेना के युवा नेता आकाश पाटिल ने एकनाथ शिंदे के समर्थन में बैनर लगाया है. इसी प्रकार अन्य जगहों पर भी शिवसैनिक श्री शिंदे के समर्थन में अब आने लगे हैं. इससे ये लग रहा है कि शिवसेना में एक बड़ा तबका एकनाथ शिंदे के साथ आ सकता है. सूत्रों की मानें तो २००५ में नारायण राणे और फिर २००६ में राज ठाकरे के बगावत से जितना नुकसान शिवसेना को नहीं हुआ था उससे कई गुना अधिक नुकसान एकनाथ शिंदे के बगावत करने से होगा. ठाणे जिला की बात करें तो सभी मनपा, नपा और जिलापरिषद में शिवसेना के अधिकांश जनप्रतिनिधि तथा संगठन के लोग एकनाथ शिंदे के समर्थन में बताये जा रहे हैं. हालांकि हर किसी को एकनाथ शिंदे की भावी रणनीति का इंतजार है और इसमें कोई संदेह नहीं जिस दिन एकनाथ शिंदे अपने समर्थकों को संदेश देगें उस दिन बड़ी संख्या में शिवसैनिक उनके समर्थन में खड़े हो जायेंगे. हालाँकि ये बात भी सत्य है कि ठाकरे परिवार से जुड़े निष्ठावान शिवसैनिकों की भी महाराष्ट्र में कमी नहीं है. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि ठाकरे बनाम शिंदे की ये वर्चस्व की लड़ाई महाराष्ट्र की राजनीति में क्या रंग लाती है?



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