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% का खेल-पार्ट -3 कहाँ गयी लाखों रुपयों की जीवन रक्षक लॉजिस्टिक कौन खा गया..स्वास्थ्य कर्मियों का हक...

 % का खेल-पार्ट -3
कहाँ गयी लाखों रुपयों की जीवन रक्षक लॉजिस्टिक
कौन खा गया..स्वास्थ्य कर्मियों का हक...



सरकारी कुर्सी पर बैठे कुछ जालसाज जिम्मेदारों को दलाली के परसेंट की कितनी भूख है। इस बात का खुलासा विकास की कलम अपने पिछले संस्करण में करा चुकी है। लेकिन दलाली का यह खेल जैसे-जैसे उजागर हो रहा है वैसे वैसे विकास की कलम के पास दलाली का शिकार हुए लोग आकर नित नए खुलासे कर रहे हैं यही कारण है कि कमीशन खोर कर्मचारियों की करतूत उजागर करने के लिए विकास की कलम को दलाली के इस महाकाव्य का पार्ट 3 अपने पाठकों के सामने लाना पड़ रहा है।


कहानी की शुरुआत कोरोना संक्रमण से लड़ने वाले फ्रंटलाइन वर्कर या यूं कहें निचले तबके के स्वास्थ्य कर्मचारियों के साथ हुए अन्याय और धोखाधड़ी के साथ होती है। वैसे तो अक्सर निचले स्तर के कर्मचारियों को केवल सुविधाओं की महेरी ही मिलती है क्योंकि सुविधाओं की पूरी मलाई एसी ऑफिस में बैठा जिम्मेदार ही चाट जाता है और तपती धूप में अपनी जान को जोखिम में डालकर सतत कार्य कर रहा निचले स्तर का स्वास्थ्य कर्मचारी अपनी कर्म प्रधानता और सेवा भावना के चलते जानबूझकर अपनी जान जोखिम में डालता रहता है। 


लेकिन क्या हो....


जब उसे इस बात का पता चले की उसके विभाग के आला दर्जे के अधिकारियों ने निचले स्तर के स्वास्थ्य कर्मियों की सुविधाओं के लिए जीवन रक्षक किट प्रदान किए जाने की सुविधा के लिए लाखों रुपयों का भुगतान किया है। जिसमें यह बात सुनिश्चित की गई है की कोरोना संक्रमण से लड़ने वाले निचले स्तर के कर्मचारियों को PPE किट, हाथों की सुरक्षा के लिए ग्लव्स संक्रमण से बचाव के लिए सैनिटाइजर और न जाने क्या-क्या दिया गया है। ताकि आम जनता को संक्रमण से बचाने के साथ-साथ निचले स्तर का स्वास्थ्य कर्मी खुद की भी रक्षा कर सके।


अजास्क संघ के आरोपों ने मचाई खलबली



कमीशन का शहद चाटने की लत का शिकार हो चले इन इन कमीशनखोरों की करतूतों का खुलासा करते हुए  मप्र अनुसूचित जाति जनजाति अधिकारी एवं कर्मचारी संघ अजाक्स के पदाधिकारियों ने आरोपों का पुलिंदा जबलपुर कलेक्टर कर्मवीर शर्मा एवं संभाग आयुक्त को सौपा है। गौरतलब हो कि हाल ही में सैनिटाइजर का बिल पास करने के एवज में परसेंट फिक्स करने वाले ऑडियो के वायरल होने के बाद मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी रत्नेश कुरारिया द्वारा क्रय लिपिक प्रवीण सोनी और डीपीएम सुभाष शुक्ला को पद से हटाए जाने की कार्यवाही करते हुए ऑडियो की जांच की जा रही है। इसी बीच कर्मचारी संघ ने सनसनीखेज खुलासा करते हुए एक नए गबन कांड को उजागर किया है। कर्मचारी संघ ने जिला कलेक्टर और संभागायुक्त से पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच की मांग की है।


यहां जानिए क्या है..?? कर्मचारी संघ के आरोप


राजेन्द्र सिंह तेकाम 
मध्य प्रदेश अनुसूचित जाति जनजाति अधिकारी एवं कर्मचारी संघ अजाक्स के संभागीय अध्यक्ष राजेन्द्र सिंह तेकाम ने विकास की कलम से जानकारी साझा करते हुए बताया कि स्वास्थ्य विभाग मे जीवनरक्षक सामग्री मास्क, सैनिटाइजर, PPE किट स्वास्थ्य कार्यकर्ताओ को उपलब्ध नही होने के कारण रोज ही स्वास्थ्य कार्यकर्ता संक्रमित हो रहे है और काल का ग्रास बन रहे है । जबकि  कोविड-19  टीकाकरण  के लिए भी 9 लाख रुपयों का जीवन रक्षक लॉजिस्टिक का बजट आया था। ताकि निचले स्तर के स्वास्थ्य कर्मचारियों को यह जीवन रक्षक किट देते हुए। उनका कोरोना संक्रमण से बचाव किया जा सके। बावजूद इसके वर्तमान तिथि तक स्वास्थ्य कर्मियों को कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए एक रुपए की भी सामग्री नहीं दी गई है।


बिना सुरक्षा सामग्री के मौत के मुंह में झोखे जा रहे स्वास्थ्य कर्मचारी


कोरोना संक्रमण से लोगों को निजात दिलवाने मैं अपनी अहम भूमिका निभाने वाले निचले स्तर के स्वास्थ्य कर्मचारी धीरे धीरे खुद कोरोना का ग्रास बनते जा रहे हैं। और यह सब सिर्फ इसलिए क्योंकि जिम्मेदार की कुर्सी पर बैठे कुछ लोगों के कमीशन की भूख थमने का नाम ही नहीं ले रही। अपने AC दफ्तर पर चाक-चौबंद व्यवस्था के बीच बैठे साहब जी कागजों में कोरोना संक्रमण की जंग की रणनीति तैयार करते हैं और यह सुनिश्चित करा देते हैं कि उनके निचले स्तर का स्वास्थ्य कर्मचारी जीवन रक्षा के साजों सामान से लैस होकर कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए आम जनता के बीच पूरी तत्परता से कार्य कर रहा है। लेकिन इतनी मुस्तैदी सिर्फ और सिर्फ कागजों पर ही नजर आती है 

हकीकत कुछ और ही है....


कर्मचारी संघ ने जानकारी देते हुए बताया कि निचले स्तर के स्वास्थ्य कर्मचारी  बीते कुछ माह से  बिना किसी सुरक्षा साधन के  कोरोना  संक्रमण से  जूझते हुए अपना काम कर रहे हैं । ऐसे में स्वास्थ्य कर्मचारियों को जीवन रक्षक लॉजिस्टिक से वंचित रखते हुए काम करवाना  जानबूझकर मौत के मुंह में  झोकनेेेे से कम नहीं है।  उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि  बीते दिन ही  रांझी अस्पताल में पदस्थ लैब टेक्नीशियन अब्दुल मुबीन की कोरोना संक्रमण से मृत्यु हो गई है। लेकिन यह कोई एक किस्सा नहीं है बल्कि स्वास्थ्य कर्मचारियों के साथ हुई इस नाइंसाफी से वह तो संक्रमित हो ही रहे हैं उसके साथ साथ उनका परिवार और आसपास के लोग भी संक्रमित होते जा रहे हैं।


स्वास्थ्य विभाग के पास-पैरासिटामोल के पड़े लाले....


जबलपुर के स्वास्थ्य महकमे ने बड़े जोरों शोरों से टीकाकरण की पहली लहर का आगाज किया जिसमें 45 साल के बाद के लोगों को ताबड़तोड़ वैक्सीनेशन के लिए जागरूक किया गया । देशव्यापी कार्यक्रम में वैक्सीनेशन के बाद लोगों को पेरासिटामोल जैसी दवा प्रदान करनी थी ताकि यदि किसी कारणवश बुखार आता है तो टीका लगवाने वाला व्यक्ति इस गोली को खाकर लाभान्वित हो सके। स्वास्थ्य कर्मचारियों ने अपने आला अधिकारियों के फरमान पर टीका तो लगवा दिया। लेकिन लोगों को बांटने के लिए पेरासिटामोल दवा विभाग के पास उपलब्ध ना होने के कारण स्वास्थ्य कर्मचारियों ने उसका वितरण नहीं किया। नतीजतन लोग वैक्सीनेशन के नाम से घबराने लगे। बात भले ही बेहद छोटी लगे लेकिन कहीं ना कहीं कमीशन खोरो की इस करतूत से देशव्यापी वैक्सीनेशन की छवि धूमिल भी हुई है। वैक्सीनेशन करवाने के बाद लोगों ने स्वास्थ्य कर्मचारियों से पेरासिटामोल सहित अन्य दवाओं की मांग की क्योंकि स्वास्थ्य कर्मचारियों के पास ऐसी किसी भी सुविधा कि ना तो जानकारी थी और ना ही सामग्री । लिहाजा उन्होंने लोगों को दवाएं देने से मना कर दिया। जिसके कारण ना केवल वैक्सीनेशन के काम में बाधा खड़ी हुई बल्कि स्वास्थ्य कर्मचारियों के साथ आम जनता की झड़प होने जैसी घटनाएं भी आम होने लगी। अपनी इन्हीं समस्याओं को लेकर कर्मचारी संघ ने दोषी अधिकारियों के खिलाफ बजट होते हुए भी समस्या का समाधान न करके लाखों रुपए का गबन करने की शिकायत का पत्र  संभाग आयुक्त महोदय, एवं कलेक्टर महोदय के नाम सौंपा।



स्टोर कीपर का पत्र करता है अजास्क के आरोपों की पुष्टि


आए दिन हो रही स्वास्थ्य कर्मचारियों से आम जनता की झड़प और खुद के संक्रमित हो जाने के डर के चलते स्वास्थ्य कर्मचारियों ने जिला चिकित्सालय विक्टोरिया जाकर आम जनता को दी जाने वाली दवाएं एवं स्वयं के लिए जीवन रक्षक लॉजिस्टिक की मांग करना शुरू कर दिया। प्रारंभिक तौर पर तो स्वास्थ्य कर्मचारियों को जल्द ही सामान उपलब्ध करवाने का आश्वासन देकर 1 सप्ताह तक टाल दिया। लेकिन जब मामला तूल पकड़ने लगा तो स्टोर कीपर ने मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी के नाम एक पत्र लिखकर जरूरी सामान स्टोर में उपलब्ध कराने की मांग की। इस पत्र में उपरोक्त मामले का उल्लेख करते हुए स्पष्ट रूप से लिखा गया है की स्वास्थ्य कर्मचारियों द्वारा मांगी जा रही सामग्री स्टोर में नहीं है और आए दिन स्वास्थ्य कर्मचारी स्टोर के पास आकर सामग्री की मांग कर रहे हैं।


राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने भेजा लाखों का बजट 



आपको बता दें कि इस देशव्यापी टीकाकरण को सफलतापूर्वक संपन्न कराने और प्रदेश को कोरोनावायरस की लहर से निजात दिलाने के लिए जनवरी माह में ही राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन मध्य प्रदेश द्वारा कोविड ड्यूटी में लगे हेल्थ वर्कर व कोविड टीकाकरण से लाभांवित हितग्राहियों की जीवन रक्षा के लिए  लाखों रुपये का लाजिस्टिक बजट उपलब्ध कराया गया था।इस बात की पुष्टि मिशन संचालक राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की मिशन संचालक के पत्र क्रमांक

टीकाकरण, 2021/177 दिनाक 28 01 2021

द्वारा टीकाकरण के दौरान स्वास्थ्य कार्यकताओं को पी पी ई फिट मास्क / सन्नाटाईजर भोजन इत्यादि हेतु राशि प्रदान की गई है। 


सामान का बिल भी हो गया पास..
तो क्या मिस्टर इंडिया ले गया सामान..



आजास्क कर्मचारी संघ की इस सनसनी खेज जानकारी के उजागर होने के बाद से ही कमीशन बाजों की रातों की नींद उड़ी हुई है। सूत्र बताते है कि अब इस मामले को भी ठंडा कराने के लिए कमिशनबाजों का कुनबा अपनी चाटुकारिता का जलवा दिखाकर मामले को निपटाने की कवायद में जुट गया है। इन सबके बीच एक बात जो काफी परेशान कर रही है... वह यह है की राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन से उपरोक्त सुविधाओं के लिए बकायदा बजट का आदेश आ जाता है और फिर सरकारी दस्तावेजों के आधार पर उपरोक्त सामान को खरीदने का बिल भी लगा दिया जाता है और तो और बाकायदा उस बिल का भुगतान भी करवा दिया जाता है लेकिन इन सबके बीच लाखों रुपए का सामान गया तो कहां गया ....

जिला अस्पताल के गलियारों में  अब अधिकारियों और कर्मचारियों के बीच एक बात कि कानाफूसी काफी चर्चाओं में है की अगर बिल लगाकर सामान मंगवाया गया तो सामान कहां गया।

और अगर सामान नहीं आया तो फिर भुगतान कैसे हुआ। ऐसा तो नहीं कि परसेंटेज की आड़ में फर्जी बिल लगाकर पूरा पैसा अंदर कर लिया गया हो।


मुख्य टीकाकरण अधिकारी को नहीं लगी भनक और हो गया लाखों का गबन


इस पूरे गड़बड़ झाले में एक सोची समझी राजनीति की भनक लगते ही विकास की कलम ने मामले की तफ्तीश शुरू की और मामले को बारीकी से जानने के लिए हमने जिला अस्पताल विक्टोरिया में पदस्थ मुख्य टीकाकरण अधिकारी डॉक्टर शत्रुघन दहिया से उपरोक्त विषय में बातचीत की। 


विकास की कलम... स्वास्थ्य कर्मचारियों को टीकाकरण कार्यक्रम सफल बनाने के लिए जीवन रक्षक लॉजिस्टिक हेतु लाखों रुपए की राशि प्रदान की गई थी फिर भी स्वास्थ्य कर्मचारियों को जीवन रक्षक लॉजिस्टिक और दवाएं नहीं मिली.. ऐसा क्यों..??


डॉ दहिया.. अभी अभी मुझे इस बात की जानकारी लगी है की निचले स्तर के स्वास्थ्य कर्मचारियों को जीवन रक्षक लॉजिस्टिक और टीकाकरण के दौरान मिलने वाली दवाओं की प्राप्ति नहीं हुई है मेरे द्वारा अधीनस्थ कर्मचारियों से उपरोक्त विषय की जानकारी ली जा रही है जैसे ही कोई बात सामने आएगी आपको अवगत कराया जाएगा।


विकास की कलम... क्या जनवरी माह में आये अनुदान को लेकर स्टोर में उपरोक्त सामान उपलब्ध कराया गया है। क्योंकि स्टोर कीपर के पत्र की माने तो स्टोर में सामान पहुंचा ही नहीं


डॉ दहिया... बहरहाल टीकाकरण के लॉजिस्टिक सामान की आपूर्ति अभी नहीं हुई है मुझे इस बात की जानकारी लगी है कि स्टोरकीपर ने सामान के अभाव को लेकर सीएमएचओ साहब को एक पत्र लिखा था और जल्द से जल्द सामान की आपूर्ति कराने की बात की थी


विकास की कलम... अस्पताल के अकाउंट सेक्शन की माने तो उपरोक्त राशि का इस्तेमाल करते हुए लॉजिस्टिक और अन्य दवाओं की खरीदारी भी की जा चुकी है जिसका बकायदा भुगतान हुआ है इस विषय पर आप क्या कहेंगे


डॉ दहिया... फिलहाल तो किसी प्रकार के बिल की जानकारी मुझे नहीं है लेकिन यदि बिल लगा है और भुगतान हुआ है तो स्टोर में सामान की पर्याप्त उपलब्धता होनी चाहिए थी अब बिल और उससे हुए भुगतान की जानकारी के लिए मैंने अकाउंट सेक्शन में बात की है और इसके साथ ही स्टोरकीपर से भी सामान की जानकारी जुटा रहा हूं जल्द ही सच्चाई आपके सामने होगी....


जिला टीकाकरण अधिकारी की माने तो  उन्हें इस बात की भनक ही नहीं कि कब समान की पर्चेसिंग का बिल लगा..कब समान आया और कब भुकतान हो गया।

लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है कि बिल लगे समान आये....और समान मिले ही न


बातों ही बातों में डॉक्टर दहिया ने यह जानकारी देते हुए कहा कि पूरा मामला बेहद गंभीर हैं क्योंकि मैं जिला टीकाकरण अधिकारी हूं लिहाजा यह मेरा दायित्व बनता है कि मैं इस बात को सुनिश्चित करूं  की । अगर मेरे विभाग के लिए किसी कार्यक्रम के तहत बजट आता है तो वह मेरे संज्ञान में हो। लेकिन ताज्जुब की बात यह है कि इस पूरे मामले के विषय में जिला टीकाकरण अधिकारी को भनक भी नहीं लगी और काम तमाम हो गया।


अजास्क की मांग...
डीपीएम और क्रय लिपिक को मुख्यालय से हटाकर की जाए जांच....



अपने स्वास्थ्य कर्मचारी साथियों की दुर्दशा और कुर्सी की आड़ में नित नए गोलमाल करने वाले अधिकारियों के खिलाफ मप्र अनुसूचित जाति जनजाति अधिकारी एवं कर्मचारी संघ अजाक्स के पदाधिकारियों ने जबलपुर कलेक्टर और संभाग आयुक्त को जानकारी देते हुए कहा है कि हाल ही में वायरल हुई सेनेटाइजर दलाली कांड के ऑडियो के चलते डीपीएम और क्रय लिपिक को पद से हटा तो दिया है। लेकिन ये दौनों अभी भी मुख्यालय में अपना प्रभुत्व जमाये हुए है। जिससे आशंका जताई जा रही है कि वे अपने संबंधों का फायदा उठाकर जांच को प्रभावित करेंगे। लिहाजा अजास्क कर्मचारी संघ ने यह मांग की है। कि उपरोक्त दौनों को जबलपुर मुख्यालय से हटाकर जांच उपरांत सेवा से बर्खास्त किया जाए। 


कलेक्टर से लेकर तमाम उच्चाधिकारियों के संज्ञान में है मामला....कभी भी गिर सकती है गाज....



प्राप्त जानकारी के अनुसार इस पूरे मामले की जानकारी जिला कलेक्टर से लेकर भोपाल स्थित राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की डायरेक्टर तक पहुंच चुकी है। लेकिन अधिकारियों की खामोशी किसी बड़े तूफान के आने का इशारा दे रही है।

इधर कर्मचारी संघ के नए खुलासे के बाद कमिशनबाजों के खेमे में भी काफी हरकत दिखाई दे रही है। जानकारों की माने तो ये काफी मंजे हुए खिलाड़ी है। और इनके लिए अधिकारियों की आंखों में धूल झोंक देना बाए हाथ का खेल है। अब इस नए मामले के उजागर होने के बाद ये देखना काफी दिलचस्प होगा कि...

अधिकारी कितनी सख्ती से कार्यवाही करते है..या फिर मेनेजमेंट के ये उस्ताद एक बार फिर से मामला मैनेज कर देंगे।



अपने पाठकों के लिए हम जल्द ही लाएंगे

" % का खेल-पार्ट-4 " जिसमे बेनकाब होंगे और भी कई कमीशनबाज....

बने रहिए "विकास की कलम" पर






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