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मजबूर पिता के झोले में...मृत नवजात ने की 150 कि.मी. की सैर...

 


जबलपुर /विकास की कलम


वो रास्ते भर सारे गम के आंसू इसलिए पी गया..की झोले की हकीकत जानकर लोग उसे बस से न उतार दें..

चकाचौंध रोशनी से लबरेज अस्पताल और फर्राटे मारती हुई गाड़ियों की भीड़ के बीच यदि एक पिता को झोले में भरकर अपने नवजात का शव ले जाना पड़े तो जान लीजिए कि अफसरशाही की दीमक ने व्यवस्था के साथ साथ मानवीय मूल्यों को भी खोखला कर दिया है। कहने को तो जबलपुर मध्यप्रदेश का एक अग्रणी और विकसित शहर माना जाता है। लेकिन हाल में हुई एक घटना ने पूरे शहर को शर्मसार कर दिया। और सबसे ज्यादाश्रम की बात यह है कि यह मामला जहां घटित हुआ उस मेडिकल अस्पताल में एक समय में कई दर्जन से ज्यादा एम्बुलेंस सेवारत रहती है। वहां एक नवजात को अपनी अंतिम यात्रा कपड़े के झोले में करनी पड़ी। अब सवाल यह खड़ा होता है कि अरबों फूंकने के बाद भी यदि ऐसे नज़ारे देखने को मिलें तो जिम्मेदारों पर कार्यवाही क्यों नहीं होती।



जानिए आखिर क्या है पूरा मामला..

मानवीय मूल्यों की हत्या करने का यह पूरा मामला मध्य प्रदेश की न्यायिक राजधानी जबलपुर का है। जहां सिस्टम का तिरस्कार झेल रहे एक मजबूर पिता को अपने नवजात बच्चे का शव थैले में रखकर 150 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ा। पीड़ित परिवार डिंडौरी जिले के ग्राम सहजपुरी का रहने वाला है। प्राप्त जानकारी के अनुसार सुनील धुर्वे की पत्नी जमनी मरावी ने 13 जून को जिला अस्पताल में बच्चे को जन्म दिया था। बीमारी और कमजोरी की वजह से नवजात को 14 जून को डॉक्टरों ने जबलपुर रेफर किया। जहां जबलपुर मेडिकल कॉलेज में 15 जून को इलाज के दौरान नवजात की मौत हो गई।  पीड़ित परिवार की माने तो उन्होंने अस्पताल प्रबंधन से शव वाहन की मांग की थी । लेकिन प्रबंधन ने वाहन देने से इनकार कर दिया। इन हालात में बच्चे के पिता ने नवजात का शव थैले में रखा और बस स्टैंड की ओर चल पड़ा। वह यहां से बस में सवार होकर डिंडौरी पहुंचा।


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डिस्चार्ज के समय जीवित था बच्चा..अस्पताल प्रबंधन



मामले के तूल पकड़ते ही हर बार की तरह इस बार भी अस्पताल प्रबंधन की ओर से चौकाने वाले तथ्य सामने आने लगे है। मेडिकल प्रबंधन की माने तो डिस्चार्ज के वक्त बच्चा जीवित था। परिजन ने खुद डिस्चार्ज ऑन डिमांड कर घर जाने की मांग की थी। ऐसे में मरीज की पूरी जिम्मेदारी परिजनों की ही होती है। संभवतः बच्चे की मौत रास्ते में हुई होगी।


मामले को भूनाने राजनेता हुए सक्रिय


इस घटना को लेकर मध्यप्रदेश कांग्रेस ने ट्वीट कर लिखा- "शिव'राज में फिर मानवता हुई शर्मसार : जबलपुर हॉस्पिटल में बच्चे की मौत के मौत के बाद नहीं मिली एम्बुलेंस, परिजन थैले में बच्चे का शव लेकर बस से डिंडौरी पहुंचे। डिंडौरी से जबलपुर रिफर किया गया था बच्चा। शिवराज जी, थोड़ी सी भी शर्म बाकी है"


शहर से ज्यादा बेहतर है गाँव की व्यवस्थाएं



मजबूरी की मार और बेटे की मौत से दुखी पिता के आंसू भी अब उसका साथ नहीं दे रहे सीने में पत्थर रखकर जिस पिता ने झोले में भरकर अपने बच्चे के साथ डेढ़ सौ किलोमीटर का सफर तय किया हो। शासकीय सुविधाओं की विरुदावली उससे अच्छी कोई नहीं सुना पाएगा। जब ग्रामीणों को इस पूरी घटना का पता चला तो उन्होंने शहर की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं पर तंज कसते हुए यह कहा की जबलपुर शहर से बेहतर व्यवस्थाएं हमारे गांव में हैं। भले ही हम उस दर्जे की स्वास्थ्य व्यवस्था का लाभ ना ले सके लेकिन समय पड़ने पर कम से कम मानवता को तो शर्मसार नहीं करते।


       

इनका कहना है..

 ''मैं अपनी छोटी बहन को जिला अस्पताल डिंडोरी लेकर आई थी. एक रात वहां रखा, फिर उसे जबलपुर रेफर किया. एक रात वहां रुके फिर 5 बजे उसे दे दिया. उसे सांस लेने में तकलीफ थी. वहां से साधन नहीं मिल रहा था. हमने डॉक्टर साहब से कहा कि सर वाहन की व्यवस्था कर दीजिए. हमारे पास पैसे नहीं थे, गरीब आदमी हैं. हम झोला में रखकर बच्चे को ले आए.'' 

मृतक बच्चे की मौसी


 ''प्राइवेट वाहन का किराया चार से पांच हजार रुपये है, जिसे चुका पाना मेरी हैसियत के बाहर था। मैंने बहुत प्रयास किया कि कोई अन्य साधन मिल जाए। कोई रास्ता न मिलने पर मजबूरन हमने नवजात के शव को थैले में रखा.'' 

मृतक बच्चे का पिता


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