Vikas ki kalam,जबलपुर न्यूज़,Taza Khabaryen,Breaking,news,hindi news,daily news,Latest Jabalpur News

हम बोलेगा..तो बोलोगे की..बोलता है..





अस्थमा से बच गए तो फ्लाई ओवर की सैर जरूर करेंगे..


कहने को शहर में सबसे बड़े फ्लाईओवर की सौगात पूरी करने लगातार काम कराए जा रहे हैं लेकिन काम की इस होड़ में नियम और कानून रसूख के नीचे दबा से दिए गए हैं। नतीजतन पूरा शहर धूल के गुबार से सराबोर हो चुका है। शहर की सड़कों से गुजरने वाला राहगीर ना चाह कर भी आधा से 1 किलो धूल फांक ही जाता है। कभी कबार तो आलम यह होता है की भरी दोपहर में ही मौसम में धूल की धुंध छा जाती है जिससे आने जाने वाले वाहनों का अंदाजा लगा पाना काफी मुश्किल हो जाता है यही कारण है कि निर्माण कार्य वाले क्षेत्र और उसके आसपास सड़क हादसों का ग्राफ काफी बढ़ चुका है। माना शहर विकास के लिए ऐसे निर्माण कार्य बेहद जरूरी है। जो ना केवल शहर को स्मार्ट सिटी का स्वरूप प्रदान करेंगे बल्कि खुद को महानगर की दौड़ में अग्रणी भी कर सकेंगे। लेकिन ऐसे निर्माण कार्यों को संपन्न कराने के लिए कई बेहद जरूरी नियम और कानून भी बनाए गए हैं। जिनका सख्ती के साथ पालन करते हुए ही निर्माण कार्य कराया जाना चाहिए। लेकिन जबलपुर शहर में हो रहा निर्माण कार्य कुछ ऐसी जल्दबाजी के साथ किया जा रहा है की सारे नियम और कानून ठेकेदारों के दफ्तरों में कैद होकर रह गए हैं। निर्माण क्षेत्र में ना तो बैरिकेडिंग का ध्यान रखा जा रहा है और ना ही सड़कों पर नियमित पानी का छिड़काव किया जा रहा है। इस लापरवाही के चलते ना चाहकर भी राहगीर धूल के विषैले माहौल में सांस लेने को मजबूर हो चले हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि लंबे समय तक ऐसे माहौल में रहने वाले लोगों को अस्थमा और श्वास नली से जुड़े कई गंभीर रोग हो सकते हैं। हालांकि इस व्यवस्था से नाराज शहर वासियों ने कई बार जिम्मेदारों तक इसकी शिकायत की लेकिन कुछ दिन के दिखावे के बाद स्थिति जस की तस हो जाती है।
खैर आम जनता का कहना है कि शहर विकास के नाम पर वे, यह खामियाजा भी भरेंगे..
अस्थमा से बच गए तो, फ्लाई ओवर की सैर जरूर करेंगे..



जल्दी बनाओ सड़क,खुदवाने का टेंडर हो चुका है


कोरोना काल के बाद से शहर विकास की राभ देख रहे नागरिकों को पता भी नहीं था कि अचानक निर्माण कार्यों की ऐसी बढ़ आएगी की भृस्टाचार के सारे रिकॉर्ड टूट जाएंगे। काम को तराशने वाला जबलपुर अब हर जगह निर्माणाधीन साइडों से लबरेज हो चुका है। लेकिन हैरानी की बात है कि इन विकास कार्यों से जनता को जहां खुश होना चाहिए था वहीं जनता इन कार्यों से बेहद नाराज नज़र आ रही है। दरअसल बात विकास कार्य की नहीं बल्कि इसे अंजाम देने वाले अधिकारियों की नीयत की है। मोटा कमीशन खाने की ललक में अधिकारियों की दूरदृष्टि कमजोर होती नजर आ रही है। यही कारण है कि एक तरफ रोड निर्माण कराने के बाद दूसरी ओर से उसे खुदवा कर पाइप लाइन बिछाने की योजना एक साथ अंजाम दी जाने लगी। अब ऐसे विकास कार्य से तकलीफ होने तो लाजमी है।आखिरकार जनता को उनका पैसा पिराने जो लगा है। पहले फुटपाथ के पेपर ब्लॉक लगाकर खुदवा दिय्ये गए।और अब तीन पत्ती चौक से ज्योति टॉकीज तक बनाई गई नवनिर्मित रोड को निगम द्वारा पुनः खुदाई किए जाने के आदेश दे दिए गए। निगम की इस कार्यप्रणाली और ऐसे ताबड़तोड़ विकास कार्यों से एक बात तो साफ है कि पूरे हिसाब किताम में कमीशन का तगड़ा तड़का लग चुका है...
यही कारण है कि शहर भर में सिर्फ एक ही आदेश गूंज रहा है कि..
जल्दी बनाओ सड़क,खुदवाने का टेंडर हो चुका है


साहब की सख्ती से हैलमेट की दुकानों पर लौट आई बहार..

साहब की सख्ती को लेकर एक और जहां पूरा शहर तरह-तरह के उलाहने दे रहा है वही एक तबका ऐसा भी है जो ना जाने कितने समय से इन कार्यवाहीयों के लिए अपने-अपने भगवानों की चौखट पर सैकड़ों दरख्वास्त लगा चुका है। दरअसल एक बार फिर से हेलमेट का जिन्न चिराग से बाहर आ चुका है। बीते दिनों एक विशेष अभियान चलाकर एक बार फिर से हेलमेट कार्यवाही को सख्ती पूर्वक लागू करने की कवायद शुरू कर दी गई है। इस क्रिया की कुछ ऐसी प्रतिक्रिया हुई की सड़कों के किनारे एक बार फिर से फर्जी हेलमेट के आशियाने गुलजार होने लगे। बगुले और भैंस की दोस्ती वाले किस्से की तरह इन हेलमेट दुकानदारों की लगन हाई भी चालानी कार्यवाही के तेवरों पर आधारित होती है। कुल मिलाकर कहा जाए तो चेकिंग जितनी तगड़ी होगी इनकी बिक्री उतनी ही तगड़ी होती जाएगी।हालांकि इनके द्वारा बेचे जाने वाले हेलमेट दुर्घटना से नहीं बल्कि केवल पुलिसिया चालान से ही बचा सकते हैं। पुलिस द्वारा हेलमेट चेकिंग अभियान के दौरान दिए जाने वाले तर्कों पर ध्यान दिया जाए तो यह पूरी कवायद जनता को सड़क दुर्घटना से बचाने के लिए की जा रही है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर पुलिस प्रशासन वाकई जनता को सड़क हादसे से बचाना चाहता है तो फिर उसकी सख्ती सड़क के किनारे लगे घटिया हेलमेट दुकानदारों पर क्यों नहीं दिखती।
खैर कुकुरमुत्तों की तरह खुली हेलमेट की दुकानों को देखकर तो यही अंदाजा लगाया जा सकता है की
साहब की सख्ती से हैलमेट की दुकानों पर लौट आई बहार..

Post a Comment

If you want to give any suggestion related to this blog, then you must send your suggestion.

Previous Post Next Post