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जल्द ही हम हो जायेगे 8 अरब,जनिये क्या होंगे दुुष्परिणाम

जल्द ही हम हो जायेगे 8 अरब,जनिये क्या होंगे दुुष्परिणाम

Soon we will be 8 billion, know what will be the side effects




संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष ने दुनिया की बढ़ती आबादी को लेकर ताजा आंकड़े जारी कर दिए हैं। खास बात यह है कि चार महीने बाद दुनिया की आबादी का आंकड़ा आठ अरब छू जाने का अनुमान है। सात अरब का आंकड़ा साल 2011 में आया था। रिपोर्ट में यह अनुमान भी व्यक्त किया गया है कि अगले तीन दशकों में दुनिया की जनसंख्या दो अरब और बढ़ जाएगी। और भारत के संदर्भ में देखें तो चौंकाने वाली बात यह है कि अगले साल यानी 2023 तक आबादी के मामले में हम चीन को पीछे छोड़ सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में बढ़ती आबादी को लेकर जो आकलन पेश किए गए हैं, वे दुनिया के ज्यादातर देशों के लिए चुनौतीपूर्ण हैं। कुछ छोटे और समृद्ध देशों को छोड़ दिया जाए तो कमोबेश सभी देशों की आबादी बढ़ रही है। फर्क बस यही है कि किसी की ज्यादा तो किसी की कम। फिर, आबादी बढ़ने के साथ-साथ संसाधनों का संकट भी बढ़ता जाता है।

आतंक की जड़ें


जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त हुए तीन साल होने जा रहे हैं। इसमें एक साल से अधिक समय तक वहां कर्फ्यू लगा रहा, संचार माध्यमों पर रोक थी। वहां सेना और सुरक्षाबलों का चौकस पहरा है। इसके पहले घाटी में आतंकवाद खत्म करने के लिए कई सख्त कदम उठाए जा चुके हैं। कई बार दावा किया गया कि घाटी में आतंकवाद अब समाप्ति की ओर है। मगर खुद गृह मंत्रालय का ताजा आंकड़ा है कि जैश-ए-मोहम्मद, हिज्बुल मुजाहिदीन आदि संगठनों ने पिछले चार सालों में जम्मू-कश्मीर में सात सौ युवाओं को भर्ती किया। इसके वर्षवार आंकड़े भी दिए गए हैं, जिसमें अनुच्छेद तीन सौ सत्तर हटने के बाद के वर्षों में भी औसतन डेढ़ सौ युवाओं की हर साल भर्ती हुई। ये आंकड़े चौंकाने वाले और चिंताजनक हैं। हालांकि इस दौरान मुठभेड़ में सैकड़ों आतंकी मारे भी गए, पर घाटी में नए आतंकवादियों की भर्ती का न रुकना सरकार की आतंकवाद के खिलाफ चल रही लड़ाई पर सवाल खड़े करते हैं।


भुखमरी ज्यादा विकराल


इससे बड़ी विडंबना और क्या होगी कि जिस दौर में दुनिया विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में विकास और प्रयोग की नई ऊंचाइयां छू रही है, उसी में समूचे विश्व में भुखमरी के हालात का सामना करने वाले लोगों की तादाद में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। यों अमूमन हर साल इस मसले पर आने वाली अध्ययन रिपोर्टों में भुखमरी की व्यापकता और जटिलता की व्याख्या की जाती है, मगर यह समझना मुश्किल है कि इसकी जद में सबसे ज्यादा प्रभावित देशों की सरकारें भुखमरी पर काबू पाने के लिए ठोस और नीतिगत कदम क्यों नहीं उठातीं! अब एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र की ताजा वैश्विक खाद्य सुरक्षा रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनिया में भुखमरी की स्थिति पहले के मुकाबले ज्यादा विकराल हुई है।


महंगाई पर काबू पाना कठिन बना


आम आदमी की रसोई से रौनक गायब है। खाने-पीने की वस्तुओं के दाम ऊपर ही चढ़ते जा रहे हैं। उसके ऊपर रसोई गैस की कीमत में बढ़ोतरी से दोहरी मार पड़ रही है। इस साल मार्च से लेकर अब तक रसोई गैस के दाम चार बार बढ़ चुके हैं। इस तरह पिछले एक साल में घरेलू रसोई गैस के सिलेंडर की कीमत 244 रुपए तक बढ़ चुकी है। तेल कंपनियों को यह बढ़ोतरी अंतरराष्ट्रीय बाजार में र्इंधन की चढ़ती कीमतों के मद्देनजर करनी पड़ी है। आगे भी इसमें कमी के कोई आसार नजर नहीं आ रहे। इसी तरह पेट्रोल और डीजल के दाम ऊपर चढ़ने शुरू हुए और हाहाकार मचने लगा तो केंद्र और राज्य सरकारों ने उनके करों में कटौती कर कुछ राहत देने की कोशिश की। र्इंधन की बढ़ती कीमतों का असर तमाम वस्तुओं पर पड़ता है, जिसके चलते महंगाई पर काबू पाना कठिन बना रहता है। इस समय खुदरा से अधिक थोक महंगाई बेकाबू है। इसलिए सरकार की चिंता स्वाभाविक है।

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