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भृष्ट अधिकारियों की अब खैर नहीं.. एमपी में फ्री-हेंड हुई जांच एजेंसियां

भृष्ट अधिकारियों की अब खैर नहीं..
एमपी में फ्री-हेंड हुई जांच एजेंसियां




भोपाल मध्यप्रदेश

मध्यप्रदेश में सरकारी विभागों में पदस्थ ऐसे अधिकारी और कर्मचारी जोकि हेरफेर करने, घोटाले बाजी करने और अपने दायित्वों के निर्वहन के लिए कमीशन की मोटी रकम डकारने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। अब उनकी शामत आने वाली है क्योंकि मध्य प्रदेश सरकार ने भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही करने वाली जांच एजेंसियों को फ्री हैंड कर दिया है और इस नए आदेश के बाद सरकारी महकमों में पदस्थ दागी अधिकारी और कर्मचारियों के बीच काफी गहमागहमी भी देखने को मिल रही है। आपको बता दें कि आदेश आने से पहले सरकारी विभागों में घोटाले एवं भ्रष्ट अधिकारी और कर्मचारी के भ्रष्टाचार की जांच करने के लिए जांच एजेंसियों को सबसे पहले संबंधित विभाग से एक परमिशन लेनी पड़ती थी। जिसके चलते कई बार जांच एजेंसियों को असुविधा का भी सामना करना पड़ता था और इस बात को लेकर काफी विवादित स्थितियां भी खड़ी हुई। उपरोक्त स्थिति में जब इस आदेश को लेकर विवाद के हालात खड़े होने लगे, तो फिर सरकार ने अपने कदम पीछे खींचते हुए जांच एजेंसियों को भ्रष्ट अधिकारियों और कर्मचारियों के ऊपर स्वतंत्र रूप से कार्यवाही करने के लिए पूरी सहमति प्रदान कर दी है। गौरतलब हो कि लोकायुक्त और आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो भ्रष्टाचार की जांच के लिए सरकार की महत्वपूर्ण जांच एजेंसियां मानी जाती है।


जानिए क्या है ..?? भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा- 17-ए


विभागों में पदस्थ भ्रष्ट अधिकारियों पर नकेल कसने के लिए और उनकी कारगुजारीयों के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 का संधान किया गया है। लेकिन 26 दिसंबर 2020 को राज्य सरकार द्वारा इस अधिनियम में धारा 17a जोड़ दी गई थी । इस अतिरिक्त धारा के जोड़े जाने के बाद भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत जांच कर रही लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू समेत अन्य जांच एजेंसियों को सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ जांच या पूछताछ करने से पूर्व संबंधित विभाग से अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया गया। इस नई धारा के जुड़ जाने के बाद जांच एजेंसियों की स्वतंत्रता पर राज्य सरकार द्वारा कड़े पहरे लगा दिए गए। या यूं कहें कि जांच एजेंसियों के अधिकार ही छीन लिए गए। इतना ही नहीं जांच एजेंसियों को यह भी आदेश दिया गया था कि वह भ्रष्ट अधिकारियों और कर्मचारियों की शिकायत उपरोक्त विभाग में ही भेजें इसके बाद विभाग ही स्वयं इस बात को तय करेगा की जांच की जानी चाहिए या नहीं।




राज्य सरकार ने एक्ट से हटाई...

धारा 17A


एक ओर जहां सरकार भ्रष्टाचार के दमन करने की बात करती है। वहीं दूसरी ओर जांच एजेंसियों पर लगाम लगाते हुए सरकार ने कहीं ना कहीं भ्रष्टाचार की जांच कर रहे जांच अधिकारियों के सामने अजीब सी कशमकश लाकर खड़ी कर दी थी। बीते माहों की बात करें तो लोकायुक्त हो या फिर आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो यदि इन जांच एजेंसियों को किसी भी तरीके के भ्रष्टाचार या गोलमाल के विषय में कुछ भी जांच करनी होती थी तो उन्हें सबसे पहले उपरोक्त विभाग को इसकी इत्तला करनी होती थी। संदेह जताया जा रहा था कि उपरोक्त विभाग में सूचना देते ही  भ्रष्टाचारी अधिकारी ना केवल सरकारी दस्तावेजों को दुरुस्त कर लेते थे बल्कि भ्रष्टाचार के साक्ष्य को भी जांच होने से पहले ही मिटा दिया जाता था यही कारण था कि सरकार के जांच एजेंसियों के पर को चलने वाले इस आदेश को लेकर सरकार की काफी आलोचना हुई उपरोक्त विषय पर लोकायुक्त जस्टिस एनके गुप्ता ने पूछा था कि एक्ट में बदलाव से पहले अनुमति क्यों नहीं ली गई? 

लोकायुक्त ने सामान्य प्रशासन विभाग के अपर मुख्य सचिव विनोद कुमार और प्रमुख सचिव (कार्मिक) दीप्ति गौड़ मुखर्जी को नोटिस दिया था।

 उपरोक्त अधिकारियों को 29 जुलाई को जवाब पेश करना था।लेकिन इसके एक दिन पहले ही राज्य शासन ने एक्ट में जोड़ी गई धारा 17A हटाकर फिर से जांच का अधिकार इन जांच एजेंसियों को दे दिया.




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