Vikas ki kalam,जबलपुर न्यूज़,Taza Khabaryen,Breaking,news,hindi news,daily news,Latest Jabalpur News

पुराने चावल से बोली पीली दाल मुंह चलाने से पहले कभी खुद का गिरेबान झांका है।

पुराने चावल से बोली पीली दाल
मुंह चलाने से पहले कभी खुद का गिरेबान झांका है।




विकास की कलम/संपादकीय

नोट- यह लेख केवल वर्तमान के बुजुर्गों की कुंठित विचारधारा पर एक कटाक्ष है। यह प्रहार है उन पर जो योग्यता को अक्सर सेटिंग और चापलूसी के तराजू में तौलते है। और जी हजूरी न करने वालों पर बेवजह कीचड़ उछालते है। वे भूल जाते है कि खुद की चमक की धमक का ढिंढोरा पीटने वाला हर शीशा पीछे से काला ही होता है। बस समय की पॉलिश उतरने की देर होती है।

इस लेख का संबंध कई राजनैतिक, सामाजिक एवं पारिवारिक घटनाओं से है पाठकों से अनुरोध है कि ढूंढ ढूंढ कर इसका संबंध घटनाओं से निकालें और इस लेख का भरपूर आनंद लें...

तो मसला यह है कि...........
बुद्धिजीवियों की एक महफ़िल में एकता का तंबूरा बजाने की होड़ लगी थी। 
किसी की हां में हाँ... तो किसी की ना..में ना..
कुछ इस तरह से खुद को बेहतर बताने की दौड़ लगी थी। मौका जरूर मिलन का था। लेकिन मिलन की चाह से कोसों दूर पक रही खिचड़ी की हांडी में द्वेष , दुर्भावना और अहंकार का चावल, सदभावना और संस्कार की दाल के साथ पकने को तैयार ही न था।
उसे अपने पुराने चावल होने का इतना अहंकार था कि वह दाल की महत्वता को जानने के बाद भी नजरअंदाज कर उसे नीचा दिखाने का काम कर रहा था।
इधर हांडी से काफी दूर जलती आंच अपनी औकात के परे उठ उठ कर बार बार खिचड़ी को पका देने का ढोंग रचा रही थी।आंच जानती थी कि अब उसके अंगारे ठंडे पड़ चुके है और उसका कद हांडी जितना ऊंचा नहीं है फिर भी वह सामर्थ्य से परे जाकर उस मनगढंत संकल्प को सच्चाई का चोगा पहनाना चाह रही थी जो आस्तित्व में है ही नहीं...

इधर 60 के चावल को कौन समझाए की जिस दाल से वो उलझ रहा है वर्तमान में उसकी औकात तिगुनी है।ये तो दाल के संस्कार है कि वो खिचड़ी में सहजता से शामिल होने की सहमति दे रहा है।

खुद के कुनबे से लगातार तिरस्कार की मार झेल रहा चावल, पहले तो दाल का प्रत्यक्ष रूप से स्वागत करता है लेकिन आदत से मजबूर उसका चुगलखोर व्यवहार उसे अपनी औकात पर ले ही आता है।

वह जानता है कि उसे घुन लग गई है। वह यह भी जानता है कि यदि उसके अस्तित्व की बात की जाए तो वो भी तकरीबन नष्ट हो चुका है।

फिर भी आदत से मजबूर पुराना चावल आखिरकार दाल के ऊपर कीचड़ उछालने की करतूत कर ही देता है।

हालांकि इस दौरान हांडी में बैठे कई बुद्धिजीवी मसालों ने पुराने चावल को समझाने की कोशिश भी की लेकिन....

लेकिन...क्या करें साहब चर्चा में जो रहना है...
अब खुद से तो कुछ उखड़ नहीं रहा..
लिहाजा दूसरे पर कीचड़ उछालकर ही चर्चा बटोर ली जाए।


खैर चावल को पता चल गया है कि दाल का जमाना है..
और सूखा चावल तो जानवर भी नहीं खाते..
आदि काल से मुहावरे भी दाल रोटी के ही बनाए जाते है...



वो कहते है न कि पानी में कई गई शंका जल्द ही उतराती है.. ठीक उसी तरह से ये चर्चा भी काफी चर्चा बटोरने लगी..

ये बात और है कि ..
संस्कार से सनी दाल ने हमेशा चावलों को ,
मार्गदर्शक की तरह ही आंका है..

फिर भी संकोच वश

पुराने चावल से बोली पीली दाल..
मुंह चलाने से पहले कभी.. 
खुद का गिरेबान झांका है।..

Post a Comment

If you want to give any suggestion related to this blog, then you must send your suggestion.

Previous Post Next Post