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जैव विविधता संरक्षण के कार्यों की वैश्विक स्तर पर सराहना

 कृषि वैज्ञानिकों ने विश्वस्तर पर गुणवत्ता को प्रदर्शित किया 

 जैव विविधता संरक्षण के कार्यों की वैश्विक स्तर पर सराहना



जबलपुर

। नई दिल्ली में ६ दिवसीय पादप संधि अंतर्गत १४० से अधिक देशों की भागीदारी एवं वैश्विक स्तर पर जैव विविधता के संरक्षण, संवर्धन एवं भविष्य में बेहतर उपयोग हेतु अंर्तराष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया जा रहा है। सेमीनार में जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक भी शामिल हुए हैं। जी. बी. ९ का आयोजन सेलिब्रेटिंग द गार्जियस ऑफ  क्रॉप डायवर्सिटी, टूवर्डस ए इनक्लूसिव इन पोस्ट-२०२० ग्लोबल बायो डायवर्सिटी प्रेâमवर्क, थीम के तहत किया जा रहा है। इसके अन्तर्गत मध्यप्रदेश से जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर के अन्तर्गत मध्यप्रदेश की जैव विविधता व विशेष रूप से सर्वाधिक आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र डिण्डोरी की जैव विविधता की प्रस्तुति १४० देशों के वैश्विक सम्मेलन में प्रस्तुत की गई, इसकी शानदार प्रस्तुति हेतु आदिवासी महिला कु. लहरी बाई, बैगा, ग्राम सिलपिड़ी चाक, विकासखण्ड बजाग, जिला डिण्डोरी द्वारा माइनर मिलेट (कोदो, कुटकी, सांवा) के लोकल किस्मों के बीजों का संग्रहण, संवर्धन व संरक्षण कर विलुप्त हो रही किस्मों को किसानों के बीच पुन: किस्मों के बीजों को वितरित कर, इन विलुप्त होती प्रजातियों को बचाने का अमूल्य कार्य कर रही हैं। कु. लहरी बाई जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के माध्यम से १४० देशों के इस जैव विविधता आधारित अंतर्राष्ट्रीय सम्मिट में भाग ले रही हैं, इसके अलावा जैव विविधता के अन्तर्गत विश्वविद्यालय के कार्यो का व्यापक प्रदर्शन व डिण्डोरी के माइनर मिलेट्स के कार्यों की जानकारी प्रस्तुत करने हेतु ख्यातिलब्ध वैज्ञानिकों की टीम भी इसमें शिरकत कर रही हैं। जिसमें डॉ. डी. एन. श्रीवास वरिष्ठ वैज्ञानिक व कोदो कुटकी फसलों के विशेषज्ञ डॉ. संजय सिंह, पौध प्रजनक वैज्ञानिक, डॉ. मनीषा श्याम, शस्य वैज्ञानिक आदि शामिल है। पादप संधि का उद्देश्य फसलों की विविधता में किसानों और स्थानीय समुदायों के योगदान को मान्यता देना है। सदियों से, जनजातियों व पारंपरिक कृषक समुदायों ने अपने पास उपलब्ध समृद्ध आनुवांशिकी सामग्री के आयामों का निरंतर अनुकूलन किया है, उन्हें आकार दिया है। दुनियाभर में ऐसी कई जगह और कई लोग हैं, जिन्होंने अमूल्य आनुवांशिकी संसाधनों और बहुमूल्य पारंपरिक ज्ञान का संरक्षण किया है। आवश्यकता है, जलवायु अनुकूल कृषि और पोषण सुरक्षा के लिये हमारा संघर्ष आपके निर्णयों और कार्यों पर बहुत अधिक निर्भर करता है। पौधों के आनुवांशिक संसाधनों को अनुसंधान और सतत् उपयोग के लिये उपलब्ध कराया जाना चाहिये। हम समय के साथ पादप आनुवांशिक संसाधनों के संरक्षण और चयन में किसानों, स्वदेशी समुदायों, आदिवासी आबादी और विशेष रूप से समुदाय की महिलाओं के योगदान को नजरअंदाज नहीं कर सकते। इस अवसर पर किसानों की प्रदर्शनियों को अन्य अतिथियों के साथ देखा व उनसे चर्चा की गई। 

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