नई दिल्ली | राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने दक्षिण दिल्ली में भाटी और फतेहपुर बेरी गांवों में 18 एकड़ भूमि में अतिक्रमण और पेड़ों की अवैध कटाई पर कड़ा रूख अपनाते हुए वन विभाग को इन पर रोक लगाने के निर्देश दिए हैं।
जस्टिस बृजेश सेठी की पीठ ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए दक्षिण दिल्ली के वन संरक्षक को 15 दिनों की अवधि में इन क्षेत्रों का दौरा कर छह हफ्ते में कार्रवाई रिपोर्ट अधिकरण को सौंपने के निर्देश दिए हैं।
याचिकाकर्ता मनिंदर सिंह ने अपनी याचिका में कहा है कि प्रतिवादी परफेक्ट बिल्डर्स प्राइवेट लिमिटेड, ए के सूद और फर्स्ट रेट सॉल्युशंस प्राइवेट लिमिटेड इन गांवों में 18 एकड़ से अधिक की कृषि भूमि को गैर कृषि कार्यों के लिए बेच रहे हैं और बिना किसी अनुमति के पेड़ों की अवैध रूप से कटाई कर रहे हैं।
याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि इससे पहले अधिकरण ने एक दिसंबर 2021 को पारित अपने आदेश में कहा था कि दिल्ली वृक्ष संरक्षण अधिनियम 1994 के तहत संबंधित अधिकारी को इस जमीन पर हो रही पेड़ों की कटाई के मामले को प्राथमिकता से देखना है। इसके बाद याचिकाकर्ता ने संबंधित अधिकारी से संपर्क किया और छह दिसंबर 2021 को उन्हें एक पत्र लिखा था। इसके एक माह बाद दूसरा पत्र भेजा गया लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
अधिकरण ने 16 फरवरी को पारित अपने आदेश में इस मामले में कार्रवाई करने का निर्देश देते हुए कहा कि अगर वन अधिकारी को किसी तरह की सहायता की कोई जरूरत है तो वह याचिकाकर्ता से ले सकते हैं और याचिकाकर्ता इसके लिए इच्छुक हैं।
जस्टिस बृजेश सेठी की पीठ ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए दक्षिण दिल्ली के वन संरक्षक को 15 दिनों की अवधि में इन क्षेत्रों का दौरा कर छह हफ्ते में कार्रवाई रिपोर्ट अधिकरण को सौंपने के निर्देश दिए हैं।
याचिकाकर्ता मनिंदर सिंह ने अपनी याचिका में कहा है कि प्रतिवादी परफेक्ट बिल्डर्स प्राइवेट लिमिटेड, ए के सूद और फर्स्ट रेट सॉल्युशंस प्राइवेट लिमिटेड इन गांवों में 18 एकड़ से अधिक की कृषि भूमि को गैर कृषि कार्यों के लिए बेच रहे हैं और बिना किसी अनुमति के पेड़ों की अवैध रूप से कटाई कर रहे हैं।
याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि इससे पहले अधिकरण ने एक दिसंबर 2021 को पारित अपने आदेश में कहा था कि दिल्ली वृक्ष संरक्षण अधिनियम 1994 के तहत संबंधित अधिकारी को इस जमीन पर हो रही पेड़ों की कटाई के मामले को प्राथमिकता से देखना है। इसके बाद याचिकाकर्ता ने संबंधित अधिकारी से संपर्क किया और छह दिसंबर 2021 को उन्हें एक पत्र लिखा था। इसके एक माह बाद दूसरा पत्र भेजा गया लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
अधिकरण ने 16 फरवरी को पारित अपने आदेश में इस मामले में कार्रवाई करने का निर्देश देते हुए कहा कि अगर वन अधिकारी को किसी तरह की सहायता की कोई जरूरत है तो वह याचिकाकर्ता से ले सकते हैं और याचिकाकर्ता इसके लिए इच्छुक हैं।