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3 करोड़ रुपए कीमत के पुराने नोट साईं के दरबार में चढ़ाए लोगों ने....

शिरडी साईं संस्थान इन दिनों एक अनूठी परेशानी से जूझ रहा है। नोटबंदी को पांच साल से ज्यादा का समय बीत चुका है, इसके बावजूद दान की हुंडियों (डोनेशन बॉक्स) में पुराने नोटों के आने का सिलसिला जारी है। लगातार बढ़ती संख्या के कारण साईं संस्थान की मुश्किल बढ़ती जा रही है। बता दें कि साईं संस्थान ने इसके लिए केंद्र स्तर पर कई बार प्रयास किए हैं, लेकिन अभी तक इसका समाधान नहीं हो पाया है।

देश में 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी का ऐलान किया गया था। इसके बाद 31 दिसंबर 2016 तक 500 और 1000 रुपए के नोटों को बैंकों में बदलने का मौका दिया गया था। साईं संस्थान के मुताबिक, उनके पास पुराने 500 और 1000 के तकरीबन 3 करोड़ रुपए मूल्य की करेंसी जमा हो चुकी है।

खास यह है कि पुराने नोट को अपने पास रखना और उसका इस्तेमाल करना कानूनी रूप से जुर्म बन चुका है। यही वजह है कि साईं संस्थान लगातार इस बात से परेशान है कि इतने ज्यादा पुराने नोटों का क्या किया जाए।

पुराने नोटों के डोनेशन बॉक्स में डालने का चलन बढ़ा
संस्थान की CEO भाग्यश्री बनायत ने बताया, 'जो भक्त हुंडियों में जो दान डालते हैं, उसकी गिनती सप्ताह में एक बार की जाती है। जब से नोटबंदी हुई है तब से हमारे डोनेशन बॉक्स में पुराने नोटों को डालने का चलन बढ़ गया है। हम वैसे नोटों को जमा कर साइड में रख रहे हैं। इसको लेकर हम लगातार केंद्रीय वित्त मंत्रालय, केंद्रीय गृह मंत्रालय और RBI से लगातार संपर्क में हैं।'

RBI मदद के लिए हुआ तैयार
भाग्यश्री बनायत ने आगे कहा, 'पिछले सप्ताह गृह मंत्रालय ने हमें पॉजिटिव रिस्पांस देते हुए बताया कि इस संबंध में RBI हमारी मदद करेगा। इसके बाद हम RBI से लगातार संपर्क में है और हम आशा करते हैं कि जल्द ही वह हमें कोई उपाय बताएगा। भक्तों ने जो भी अपनी श्रद्धा से डाला है वह उन्हीं के उपयोग में आएगा।"

लोगों की भलाई में इस्तेमाल होंगे यह पैसे
भाग्यश्री बनायत ने बताया कि नोट बंदी के ठीक बाद यानी 31 दिसंबर 2016 तक दान पेटियों को हर दिन खोला जाता था और दान में चढ़ाए पैसों को बैंकों में जमा करवाया जाता था। 31 दिसंबर के बाद बैंकों ने पुराने नोटों को लेने से मना कर दिया है। यह संस्थान के पैसे हैं और इसका इस्तेमाल आम लोगों की भलाई के लिए किया जाना चाहिए। ऐसे में हम चाहते हैं कि इसका समाधान जल्द से जल्द किया जाए।

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