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नवरात्रि विशेष.. जानिए मंदसोर की माता नालछा के दरबार की महिमा


नवरात्रि विशेष..
जानिए मंदसौर की माता नालछा के
दरबार की महिमा 




मंदसौर,मध्यप्रदेश


मंदसौर की माता नालछा के दरबार की महिमा 

नवरात्री मे भक्तो की उमड रही भारी भीढ 

गांव का नाम था नालछा, इसलिए नाम है 'नालछा माता' 


 मध्यप्रदेश के मंदसौर का नालछा माता मंदिर जो की शहर से करीब पांच किमी दूर स्थित है ।  नालछा माता मंदिर बेहद चमत्कारिक स्थान है। इसकी पुष्टि मंदिर से जुड़ी मान्यताओं और घटनाओं में होती है इस स्थान पर मंदिर की स्थापना कब और केसे हुई यह इतिहास न तो माता की सेवा करने वाले पुजारी को पता है और न ही भक्तों को इतना जरूर बताते है कि जिस स्थान पर आज माता की प्रतिमा विराजित है, सैकड़ों वर्षों से प्रतिमा उसी स्थान पर है । 


 यह अद्वितीय मंदिर है, जहां पर एक ही गादी पर माता रानी और भैरवनाथ विराजित है। मान्यता है कि मां नालछा दिन में तीन बार रूप बदलती है। सुबह बाल्यावस्था दोपहर में युवावस्था और रात्रि में वृद्धावस्था का रूप दिखता है। नालछा माता का वास्तविक नाम नाहरसिंह माता है। लेकिन जिस स्थान पर माता की प्रतिमा विराजित है वह उस गाँव का नाम नालछा है। इसी के चलते धीरे धीरे नाम नालामाता पड़ गया। राजा दशरथ की रियासत का अंतिम छोर बताया जाता है कि ग्राम नाला महाराजा दशरथ की अयोध्या रियासत का अंतिम छौर बाद से व्यवस्था में परिवर्तन हो गया। पुजारी के अनुसार आरती के समय माता की प्रतिमा पर चढ़ाए जाने वाले फूल आज भी गिरते हैं, जिससे मान्यता यह है कि आरती में भक्तों को आशीर्वाद देती है। यहां आने वाले भक्तों के अनुसार मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है। इसके बारे में कुछ भी कहा जाना मुश्किल है। सभी मंदिरों में भैरवनाथ का मंदिर माता के मंदिर से अलग नजदीक स्थान पर होता है। लेकिन नालछा माता में ऐसा नहीं है । यहां माता और भैरवनाथ दोनों एक साथ एक ही गादी पर विराजित है। नालछामाता मंदिर अत्यंत चमत्कारी और सिद्ध स्थल है।


 माता मंदिर पर कभी भी कोई चोरी व लूट की घटनाएं नहीं हुई। करीब आठ बार मंदिर परिसर में चोर व लूटेरे आ चुके हैं। लेकिन कभी भी मंदिर के अंदर तक नहीं पहुंचे। चैनल गेट के हाथ लगाते ही चैनल बजने से कभी सुरक्षा कर्मी जाग गए तो कभी गेट तक पहुंचने के बाद चोर उलटे पांव लौट गए। यहां सेवा करने वालों के अनुसार करीब 50 साल पुरानी सत्य घटना है। मंदिर पर रात में महिलाओं का जागरण हो रहा था। इसी दौरान मंदिर पर चोरी करने की नियत से कुछ मंदिर परिसर में आ गए, तब यहां पर पहाड़ी थी। जागरण कर रही महिलाओं को इसकी भनक लग गई। एक महिला के शरीर में माता आई और बोला कि कुछ नहीं होगा। जब चोर जैसे ही मंदिर के समीप पहुंचे तब उन्हें मंदिर की ओर जाने वाला रास्ता तो दिख रहा था लेकिन वापस जाने का रास्ता नजर नहीं आ रहा था। इससे चोर डर गए और वे मंदिर पर धोक लगाकर मुढे तो रास्ता नगर आ गया। इसके बाद चले गए। मान्यता यह भी है कि माता मंदिर पर शेर आते थे। इसका ओख एक घटना में होता है। इसवी सन 1691 "औरंगजेब की सेना नाला के मैदान में ठहरी हुई थी वहाँ पर किसी शेर के दाने की आवाज आ रही थी। इसके चलते पूरी सेना में खौफ छा गया। गुप्तचर विभाग ने जंगल में शेर को ढूंढने का प्रयास भी किया, लेकिन शेर कहीं नहीं मिला। इसी चमत्कार के चलते औरंगजेब की सेना ने मंदिर को कुछ नुकसान नहीं पहुंचाया।

 हजारों वर्ष पुराने इस नालछामाता मंदिर की ख्याती तीन दशकों से बढ़ी है। शहर हो नहीं अपितु जिले व प्रदेश के विभिन्न अंचलों से भी भक्त यहां माता रानी के दर्शन के लिए आते है। विश्व की एक मात्र प्रतिमा जिसमें मां भवानी नालछा और बाबा भैरव एक ही गादी पर विराजित है। मंदिर की स्थापना कब और के से हुई इसका रेख तो कहीं नहीं मिलता है। बताया जाता है कि मां नाला का मंदिर राजा दशरथ के समय यानि सतयुग का है। कई वर्षों तक माली समाज द्वारा माता की सेवा पूजा अर्चना की गई। नवरात्रि के इन दिनो माता के इस दरबार मे बडी संख्या मे भक्तगण पहुंच रहे है और माता रानी का आशीर्वाद प्राप्त कर रहे है।

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