गोवर्धन पूजा का रहस्य
यहां जाने सही समय ,विधि
और पूजा का महत्व
गोवर्धन पूजा अन्नकूट पर्व दिवाली के अगले दिन मनाया जाता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को यह पर्व बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है । इस वर्ष गोवर्धन पूजा 15 नवंबर रविवार के दिन मनाई जा रही है । इस दिन लोग घर के आंगन में गोबर से गोवर्धन पर्वत का आकार बनाकर गोवर्धन भगवान की पूजा करते है। इस दिन गायों की सेवा का विशेष महत्व होता है। ग्वाले लोग इस दिन अपनी गायों को सजा धजा कर उनकी पूजा कर उन्हें कई तरह के पकवान अर्पित करते है। दर्शन शास्त्र के अनुसार यह एक कृतज्ञता भी है। उन अमूक पशुओं के लिए जो हमारे विविध कार्यों को संपन्न कराते है।
यहां जानिए सबसे पहले किसने की थी गोवर्धन पूजा
गोवर्धन पर्वत गोकुल वासियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण पर्वत इसी पर्वत में उनकी गाय चरने जाती है। साथ ही पर्वत में उगने वाले अनेक प्रकार के हरे भरे वृक्षों से छाया लकड़ी फल और शुद्ध हवा गोकुल वासियों को मिलती थी। हिंदू धर्म के अनुसार विष्णु अवतार भगवान श्री कृष्ण ने सबसे पहले गोवर्धन पूजा की थी और इस पूजा के माध्यम से देवताओं के राजा इंद्र का मान भंग किया था इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र की पूजा ना करके गोवर्धन की पूजा करने का संदेश दिया था तभी से लोग गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर उस दिन के प्रतिक के स्वरूप गोवर्धन पूजा करते हैं।
आखिर क्यों इंद्र की जगह हुई गोवर्धन की पूजा
वर्तमान से कई सदियों पूर्व द्वापर युग में अच्छी बारिश और प्राकृतिक आपदाओं के प्रकोप से बचने के लिए बृजवासी भगवान इंद्र की पूजा किया करते थे लेकिन भगवान कृष्ण का तर्क था कि भगवान इंद्र गोकुल वासियों के पालनहार नहीं है बल्कि इंद्र से बेहतर तो गोवर्धन पर्वत है जिसकी मदद से गोकुल वासियों का सारा काम संपन्न होता है इसी पर्वत की मदद से ग्वालो की गायों को हरी हरी घास चरने को मिलती है अच्छी घास खाकर गाय अधिक दूध देती है वही घर में भोजन बनाने के लिए लकड़ी गोवर्धन पर्वत से ही मिलती है जिसकी मदद से ब्रज वासियों के घर में चूल्हा जलता है और यदि गोवर्धन पर्वत इतना महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है तो हमें इंद्र की वजह गोवर्धन पर्वत की ही पूजा करनी चाहिए।
अपनी पूजा ना होने से नाराज इंद्र ने बरसाया था कहर...
अभिमान टूटते ही इंद्र ने मांगी श्री कृष्ण से माफी
देवताओं के राजा इंद्र ने अपने भरसक प्रयास के माध्यमों से गोकुल वासियों को सबक सिखाने का प्रयास किया लेकिन जैसे ही उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि श्री कृष्ण और कोई नहीं बल्कि भगवान विष्णु के अवतार हैं तो वे काफी घबरा गए अपने कृत्य से लज्जित होते हुए देवताओं के राजा इंद्र ने भगवान कृष्ण और गोकुल वासियों से अपने किए की क्षमा याचना की जिसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को नीचे रखा और सभी ब्रज वासियों से कहा कि वह हर साल गोवर्धन की पूजा कर इस दिन को अन्नकूट पर्व उत्सव के रूप में मना है यही कारण है कि तब से लेकर आज तक यह दिन गोवर्धन पूजा के रूप में मनाया जाता है
यहां जानिए गोवर्धन पूजा की संपूर्ण विधि
वैसे तो देश रीति और काल के हिसाब से अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग पूजा विधियों के साथ गोवर्धन पूजा संपन्न की जाती है लेकिन हम यहां पर मूल रूप से ब्रज वासियों के द्वारा अनुसरण किए गए पूजा पद्धति का विवरण आपके सामने रख रहे हैं इस पूजा की शुरुआत के लिए सर्वप्रथम प्रातः काल जल्दी उठकर शरीर पर तेल मल कर स्नान किया जाता है।
वही घर के मुख्य द्वार पर गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाई जाती है गोबर का गोवर्धन पर्वत बनाए जाने के बाद वहीं पास में ग्वाल वालों पेड़ पौधों की भी आकृति बनाई जाती है बीच में भगवान कृष्ण की मूर्ति स्थापित की जाती है इसके बाद भगवान कृष्ण ग्वाल बाल और गोवर्धन पर्वत का षोडशोपचार के साथ पूजन अर्चन किया जाता है पूजन के पश्चात गोवर्धन भगवान को पकवान और पंचामृत का भोग लगाया जाता है उसके बाद गोवर्धन पूजा की कथा सुनने का विशेष महत्व है तत्पश्चात सभी में प्रसाद का वितरण किया जाता है
यहां जानिए 15 नवंबर को क्या कहता है पंचांग
पूजा विधि को संपन्न करने के लिए पंचांग का ज्ञान होना बहुत आवश्यक है तभी आप सही समय और मुहूर्त में पूजा विधि संपन्न कर पाएंगे 15 नवंबर 2020 दिन रविवार को पंचांग के अनुसार सूर्योदय 6:43 पर होगा वही शाम के समय 6:27 पर सूर्यास्त होगा 15 नवंबर को गोवर्धन पूजा है चंद्रमा सुबह 11:58 के बाद तुला राशि से निकलकर वृश्चिक राशि पर संचार करेगा
यहां जानिए शुभ मुहूर्त कब की जा सकती है पूजा
अभिजीत मुहूर्त का समय दोपहर 11:44 से 12:27 तक रहेगा
विजय मुहूर्त का समय दोपहर 1:53 से 2:36 तक रहेगा
निशिथ काल का समय रात 11:39 से 12:33 तक रहेगा
गौधूली मुहूर्त का समय शाम 5:17 से 5:41 तक रहेगा
अमृत काल का समय सुबह 9:32 से 10:56 तक रहेगा
15 नवंबर को इस समय पर ना करें शुभ काम
राहु काल के दौरान शुभ काम करना वर्जित होता है 15 नवंबर को शाम 4:30 से 6:00 तक राहुकाल कायम रहेगा
यमगंड काल दोपहर 12:00 से 1:30 तक रहेगा
गुलिक काल दोपहर 3:30 से 4:30 तक रहेगा
वर्ज्य काल- शाम 08 बजकर 49 मिनट से 10 बजकर 15 मिनट तक।
दुर्मुहूर्त काल- दोपहर 04 बजकर 02 मिनट से 04 बजकर 44 मिनट तक।
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विकास की कलम
चीफ एडिटर
विकास सोनी
लेखक विचारक पत्रकार
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