मेरा क्या कुसूर..??
कचरे में पढ़ी दुधमुंही बच्ची..
जिम्मदारों से कर रही सवाल..
पूरा देश बेटी बचाव-बेटी पढ़ाओ का राग अलाप रहा है। लेकिन लोगों के अंतःकरण में यह अभियान कितना असर किया है। इस बात की वानगी इसी घटना से लगा लें कि बेटी होने पर किसी ने चुपचाप उसे पॉलीथिन में पैक कर जिंदा ही कचरे में फेंक दिया। लेकिन ये पहली घटना नहीं है बल्कि पढ़े लिखे संभ्रांत समाज मे ऐसी घटनाएं अब आम हो चुकी है।
कहाँ की है घटना..???
पूरा मांजरा एमपी के जबलपुर जिले का है।जहां महराजपुर क्षेत्र में यह घिनोना कारनामा सामने आया। जानकारी के अनुसार हाउसिंग बोर्ड गौतम नगर में एक कचरा फेकने वाली जगह में किसी ने एक नवजात बच्ची को पन्नी में बंद करके मरने के लिए छोड़ दिया।
बच्ची के रोने की आवाज सुनकर जब आसपास के लोग उस जगह पहुंचे तो सभी की साँसे कुछ देर के लिए थम सी गई। लोगो ने देखा की कचरे के पास एक नवजात शिशु पन्नी में लिपटा हुआ पड़ा है। और भूख से कराह रहा है।
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स्थानीय युवक की मदद से अस्पताल पहुंची नवजात...
कचरे के ढेर में अपनी अवस्था पर आंसू बहा रही नवजात की कराह सुनकर वहां लोगों का जमावड़ा लगने लगा।दिन के समय हुई बारिश से जगह पूरी तरह दलदल में तब्दील हो चुकी थी।और नवजात बच्ची भी पानी मे सराबोर हो चुकी थी। तभी एक स्थानीय व्यकित संजीव साहू ने साहस कर बच्ची को बाहर निकाला और उसे उपचार के लिए एल्गिन अस्पताल ले गया।
सूचना पर पहुंची पुलिस कर रही जांच
जैसे ही क्षेत्रीयजनों को कचरे के ढेर में नवजात शिशु के होने की भनक लगी किसी ने उक्त घटना की सूचना पुलिस थाने में दे दी। सूचना पर पहुंची अधारताल थाना डायल 100 पुलिस टीम ने प्रताम प्राथमिकता में बच्ची को प्राथमिक उपचार की व्यवस्था कराई। बहरहाल अभी इस प्रकरण में कोई भी रिपोर्ट तो दर्ज नही की गई है। लेकिन पुलिस अब अपने स्तर पर बच्ची के माता-पिता की जानकारी जुटा रही है।
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अस्पताल पहुंची बच्ची अब खतरे से परे..
आखिर क्यों हैवानियत दिखाते है लोग..
जबकि कई संस्थाएं कर रही है काम..
आपको बता दें कि अनवांटेड बेबी के मसले को लेकर शहर भर में कई सामाजिक संस्थाएं सक्रिय है। जहां इन अनचाहे शिशुओं को बिना किसी लिखापढ़ी के सीधे सौपा जा सकता है। यह सबकुछ सिर्फ इसलिए ताकि सड़कों पर ऐसे अमानवीय दृश्य न देखने को मिले।लेकिन उसके बावजूद भी कुछ लोग इन बातों को नजरअंदाज कर जानबूझकर ऐसी हरकतें करते है। अब ईश्वर ही जानें कि इन सबके बीच ऐसी क्या मजबूरी होगी कि एक दुधमुही बच्ची को जिंदा ही कजरे में मरने के लिए छोड़ दिया होगा। आज तो भले ही बच्ची की जान बच गयी लेकिन इन जैसी सैकड़ों बच्चियां इस पढ़े लिखे समाज से बस ये ही सवाल कर रही है कि
मेरा क्या कुसूर....???
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विकास की कलम
चीफ एडिटर
विकास सोनी
लेखक विचारक पत्रकार
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