आम.. को पसंद नहीं..
खास.. कृषि विधेयक बिल
उठने लगे विरोध के सुर..
कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020 के विरोध में राजनीति तेज हो गई है। कोरोना काल में शांत पड़े राजनीतिक दलों को माैका मिल गया है। कृषि विधेयक (Farms Bill 2020) को लेकर संसद से सड़क तक संग्राम मचा हुआ है. राज्यसभा में कृषि विधेयक के पास होने के बाद अब तक कई देश व्यापी आंदोलनों के आगाज किया जा चुका है।
लेकिन जनता को समझ नहीं आ रहा कि इतना हंगामा क्यों बरपा है.....
आम को पसंद नहीं खास कृषि बिल .....
संस्कारधानी में भी हुआ विरोध
केन्द्र सरकार द्वारा पारित नए कृषि बिल को किसान विरोधी बताते हुए आम आदमी पार्टी ने गुरुवार को देशव्यापी आंदोलन किया। इसी कड़ी में जबलपुर में गुरुवार को आम आदमी पार्टी की जिला इकाई ने धरना प्रदर्शन कर बिल का विरोध किया।पार्टी ने इस बिल के खिलाफ जिला प्रशासन को राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन भी सौंपा है।पार्टी का कहना है कि सरकार कृषि बिल के माध्यम से किसानों का शोषण और पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाना चाहती है।जब एनडीए का राज्यसभा में बहुमत नही है तो ऐसे में बिल लाकर वह हिटलरशाही दिखा रही है।
प्रदेश संगठन मंत्री ने शहर से भरी हुंकार..
रविवार को राज्यसभा में जोरदार हंगामे के बीच कृषि से संबंधित दो विवादित बिलों को मंजूरी दे दी गई। जिसके बाद से देश के कई किसान संगठन और राजनीतिक दल विरोध में सड़कों पर उतर आए। इस विरोध में आम आदमी पार्टी ने गुरुवार को एक देशव्यापी धरना प्रदर्शन का आगाज़ किया। जबलपुर जिले में प्रदेश संगठन मंत्री डॉ. मुकेश जयसवाल के नेतृत्व में कार्यकर्ताओं ने एक दिवसीय धरना प्रदर्शन करते हुए ,अपना विरोध दर्ज कराया।
तमाम विरोधों के बीच क्या बोले पीएम मोदी....
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि मैं किसानों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) व किसानों की उपज की सरकारी खरीद जारी रहेगी ।उन्होंने कहा कि उनकी सरकार की तरफ से कृषि संबंधी अध्यादेश लाने के बाद कई राज्यों में किसानों को उनकी उपज का पहले से ही बेहतर मूल्य मिल रहा है ।उन्होंने कहा कि मैं एक बात स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि ये कानून कृषि मंडियों के खिलाफ नहीं हैं। यह पहले की तरह चलती रहेंगी। उन्होंने कहा कि संसद द्वारा पारित कृषि सुधार विधेयक 21वीं के भारत की जरूरत है।
इस बिल को लेकर सरकार ने क्या बदलाव किए हैं, उसे लेकर किसानों के मन में कई शंकाए हैं। इन्हीं शंकाओं को दूर करने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार ने अखबारों में विज्ञापन देकर स्थिति साफ करने की कोशिश की है। छह बड़े बिंदुओं पर सरकार ने 'झूठ' और 'सच' को सामने रखा है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य का क्या होगा?
झूठ: किसान बिल असल में किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य न देने की साजिश है।
सच: किसान बिल का न्यूनतम समर्थन मूल्य से कोई लेना-देना नहीं है। एमएसपी दिया जा रहा है और भविष्य में दिया जाता रहेगा।
मंडियों का क्या होगा?
झूठ: अब मंडियां खत्म हो जाएंगी।
सच: मंडी सिस्टम जैसा है, वैसा ही रहेगा।
किसान विरोधी है बिल?
झूठ: किसानों के खिलाफ है किसान बिल।
सच: किसान बिल से किसानों को आजादी मिलती है। अब किसान अपनी फसल किसी को भी, कहीं भी बेच सकते हैं। इससे 'वन नेशन वन मार्केट' स्थापित होगा। बड़ी फूड प्रोसेसिंग कंपनियों के साथ पार्टनरशिप करके किसान ज्यादा मुनाफा कमा सकेंगे।
बड़ी कंपनियां शोषण करेंगी?
झूठ: कॉन्ट्रैक्ट के नाम पर बड़ी कंपनियां किसानों का शोषण करेंगी।
सच: समझौते से किसानों को पहले से तय दाम मिलेंगे लेकिन किसान को उसके हितों के खिलाफ नहीं बांधा जा सकता है। किसान उस समझौते से कभी भी हटने के लिए स्वतंत्र होगा, इसलिए लिए उससे कोई पेनाल्टी नहीं ली जाएगी।
छिन जाएगी किसानों की जमीन?
झूठ: किसानों की जमीन पूंजीपतियों को दी जाएगी।
सच: बिल में साफ कहा गया है कि किसानों की जमीन की बिक्री, लीज और गिरवी रखना पूरी तरह प्रतिबंधित है। समझौता फसलों का होगा, जमीन का नहीं।
किसानों को नुकसान है?
झूठ: किसान बिल से बड़े कॉर्पोरेट को फायदा है, किसानों को नुकसान है।
सच: कई राज्यों में बड़े कॉर्पोरेशंस के साथ मिलकर किसान गन्ना, चाय और कॉफी जैसी फसल उगा रहे हैं। अब छोटे किसानों को ज्यादा फायदा मिलेगा और उन्हें तकनीक और पक्के मुनाफे का भरोसा मिलेगा।
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विकास की कलम
चीफ एडिटर
विकास सोनी
लेखक विचारक पत्रकार