सूर्यग्रहण में हटा...
इस गांव का ग्रहण...
गजेन्द्र सिंह सेंगर
कहने को तो हम आजाद भारत मे जी रहे है और सरकार भी गांव के विकास की नई नई इवारत हर बजट में लिखती है। पर जिला मुख्यालय से महज 40 किलोमीटर दूर तहसील पाटन के ग्राम पंचायत बरही के ग्राम छक्का महगवां की तस्वीर कुछ अलग है। जहाँ पूरे देश मे गांव के कच्चे रास्तो को मुख्य मार्ग से जोड़ने के लिये प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना चलाई गई। ताकि आवागमन सुलभ हो सके पर आजादी के 70 वर्ष बाद भी ये गांव सड़क स्कूल जैसी मूलभूत सुविधाओं से अछूता है।
आपस मे मिलजुलकर बना डाली सड़क
कहने को तो गांव की आबादी महज 500 है। पर हौसला जब कुछ कर गुजरने की ठान ले तो कोई कार्य छोटा नही होता।
कई वर्षों से उपेक्षा दंश झेल रहे ग्रामीणों ने यह ठान लिया कि चाहे कुछ भी हो जाये बारिश के पहले मिट्टी और कीचड़ से सनी रोड को चलने लायक बनाना है।
गांव के सभी लोगो ने एक साथ बैठ कर इस समस्या का समाधान निकाल ही लिया और चंदा इकट्ठा किया देखते ही देखते 75000 हज़ार रुपये इकट्ठे हो गए फिर क्या युवा और क्या बुजुर्ग सभी ने तसला और फावड़ा उठाया और वर्षों से गांव को लगे ग्रहण को सूर्य ग्रहण के दिन मिटा दिया गया।
जिसका जैसा वाहन वैसा चंदा
जब गांव के लोगो ने यह ठान लिया कि सड़क का निर्माण हमे स्वयं करना है तो यह तय किया गया गया कि जिसके पास सायकिल है उस से 100 रुपये मोटर साइकिल के 500 रुपये और चार पहिया वाहन के 1000 रुपये तय किये गए और सभी ग्रामवासियो ने चंदा खुसी खुसी दे दिया और मुरम मंगा कर जुट गए निर्माण में और पहले ही दिन 2 किलोमीटर की सड़क चलने लायक बना डाली जिस पर ग्रामीण आसानी से आवागमन कर सके
कृषि क्षेत्र होने से बारिश में ज्यादा परेशानी
चूंकि गांव के अधिकतर लोग खेती से जुड़े है और पुराना मार्ग बारिश के मौसम में दल दल में तब्दील हो जाता है जिससे किसानों को 2 से 3 महीने पहले ही खाद बीज ले कर रखना पड़ता है और वो भी कर्ज ले कर ताकि समय पर खेतो तक खाद पहुँचाई जा सके इस अलावा ग्रामीणों ने बताया कि ज्यादा बारिश होने पर तो 15 दिनों तक न कोई गांव से बाहर जा पाता था और न आ पाता था चुकी गांव जाने के लिए और कोई बैकल्पिक मार्ग नही है
अभी भी स्कूल का ग्रहण हटना बाकी है
ग्रामीणों ने बताया कि इतने सालों के बाद भी गाँव मे न सड़क बनी और न ही स्कूल अभी भी गांव के बच्चे पैदल 2 किलोमीटर दूर ग्राम चंदवा में पढ़ाई करने जाते है और बारिश में स्कूल जा ही नही पाते कुछ बच्चो की तो पढ़ाई छूट गयी और अभी तक आगे की पढ़ाई से बंचित है।
किसी ने नही सुनी फरियाद
देश मे न जाने कितने चुनाव हुए और हर गाओ के विकास की नई इवारत ए सी कमरो में बैठ कर गढ़ी गयी पर पाटन तहसील के इस गांव ने हक़ीक़त सामने ला दी ग्रामीणों ने कई बार पाटन जनपद कार्यालय में लिखित और मौखिक शिकायत दी और हर बार आस्वासन मिला पर बह सड़क के रूप में धरातल पर नही उतर सकी चुनाव के समय कई नेता आये वादे किए और फिर कभी मुड़ कर नही देखा।
शादी से कतराते है दूसरे गांव के लोग
गांव में स्कूल और सड़क न होने के कारण लोग इस गांव में अपनी लड़की की शादी करने से कतराने लगे है और अगर शादी के लिए तैयार भी होते है तो शर्तो पर की हमारी लड़की गांव में नही रहेगी जिससे मजबूरन गांव के लोगो को किराए का मकान ले कर शहरों में रहना पड़ता है जिसके खर्च का असर पूरे परिवार पर पड़ता है।
युवाओ ने की पहल से बदली तस्वीर
गांव में सड़क न होने का दर्द सबसे ज्यादा युवाओ को था जिसके लिए युवाओ ने सड़क बनाने का प्रस्ताव अपने बड़े बुजुर्गों के सामने रखा और सहमति मिलते ही जुट गए सड़क बनाने और आज उन की मेहनत रंग लाई अब बारिश में भी चलने लायक सड़क बन कर तैयार है।
ग्रामीणों के जस्बे को विकास की कलम का सलाम
एक ओर जहां सुविधा न होने पर अक्सर लोग क्षेत्र से पलायन कर दूसरे अपनी मिट्टी से दूर हो जाते है। वहीं इस अनोखे गाँव मे लोगों ने शहर की ओर पलायन न करके खुद ही अव्यवस्था को दूर किया है। अब इससे न केवल ग्रामीणों की संचार व्यवस्था सुधरेगी। बल्कि यह उन भृष्ट अधिकारी और राजनेताओं के मोह में करारा तमाचा भी साबित होगा जो महज औपचारिकता के लिए गावों का भ्रमण करते है।
नोट-विकास की कलम अपने पाठकों से अनुरोध करती है कि आप अपने सुझाव हम तक जरूर भेजें..
ताकि आने वाले समय मे हम आपकी मदद से और भी बेहतर कार्य कर सकें। साथ ही यदि आपको लेख अच्छा लगे तो इसे ओरों तक भी पहुंचाए।
विकास की कलम
चीफ एडिटर
विकास सोनी
लेखक विचारक पत्रकार
इस गांव का ग्रहण...
गजेन्द्र सिंह सेंगर
कहने को तो हम आजाद भारत मे जी रहे है और सरकार भी गांव के विकास की नई नई इवारत हर बजट में लिखती है। पर जिला मुख्यालय से महज 40 किलोमीटर दूर तहसील पाटन के ग्राम पंचायत बरही के ग्राम छक्का महगवां की तस्वीर कुछ अलग है। जहाँ पूरे देश मे गांव के कच्चे रास्तो को मुख्य मार्ग से जोड़ने के लिये प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना चलाई गई। ताकि आवागमन सुलभ हो सके पर आजादी के 70 वर्ष बाद भी ये गांव सड़क स्कूल जैसी मूलभूत सुविधाओं से अछूता है।
आपस मे मिलजुलकर बना डाली सड़क
कहने को तो गांव की आबादी महज 500 है। पर हौसला जब कुछ कर गुजरने की ठान ले तो कोई कार्य छोटा नही होता।
कई वर्षों से उपेक्षा दंश झेल रहे ग्रामीणों ने यह ठान लिया कि चाहे कुछ भी हो जाये बारिश के पहले मिट्टी और कीचड़ से सनी रोड को चलने लायक बनाना है।
गांव के सभी लोगो ने एक साथ बैठ कर इस समस्या का समाधान निकाल ही लिया और चंदा इकट्ठा किया देखते ही देखते 75000 हज़ार रुपये इकट्ठे हो गए फिर क्या युवा और क्या बुजुर्ग सभी ने तसला और फावड़ा उठाया और वर्षों से गांव को लगे ग्रहण को सूर्य ग्रहण के दिन मिटा दिया गया।
जिसका जैसा वाहन वैसा चंदा
जब गांव के लोगो ने यह ठान लिया कि सड़क का निर्माण हमे स्वयं करना है तो यह तय किया गया गया कि जिसके पास सायकिल है उस से 100 रुपये मोटर साइकिल के 500 रुपये और चार पहिया वाहन के 1000 रुपये तय किये गए और सभी ग्रामवासियो ने चंदा खुसी खुसी दे दिया और मुरम मंगा कर जुट गए निर्माण में और पहले ही दिन 2 किलोमीटर की सड़क चलने लायक बना डाली जिस पर ग्रामीण आसानी से आवागमन कर सके
कृषि क्षेत्र होने से बारिश में ज्यादा परेशानी
चूंकि गांव के अधिकतर लोग खेती से जुड़े है और पुराना मार्ग बारिश के मौसम में दल दल में तब्दील हो जाता है जिससे किसानों को 2 से 3 महीने पहले ही खाद बीज ले कर रखना पड़ता है और वो भी कर्ज ले कर ताकि समय पर खेतो तक खाद पहुँचाई जा सके इस अलावा ग्रामीणों ने बताया कि ज्यादा बारिश होने पर तो 15 दिनों तक न कोई गांव से बाहर जा पाता था और न आ पाता था चुकी गांव जाने के लिए और कोई बैकल्पिक मार्ग नही है
अभी भी स्कूल का ग्रहण हटना बाकी है
ग्रामीणों ने बताया कि इतने सालों के बाद भी गाँव मे न सड़क बनी और न ही स्कूल अभी भी गांव के बच्चे पैदल 2 किलोमीटर दूर ग्राम चंदवा में पढ़ाई करने जाते है और बारिश में स्कूल जा ही नही पाते कुछ बच्चो की तो पढ़ाई छूट गयी और अभी तक आगे की पढ़ाई से बंचित है।
किसी ने नही सुनी फरियाद
देश मे न जाने कितने चुनाव हुए और हर गाओ के विकास की नई इवारत ए सी कमरो में बैठ कर गढ़ी गयी पर पाटन तहसील के इस गांव ने हक़ीक़त सामने ला दी ग्रामीणों ने कई बार पाटन जनपद कार्यालय में लिखित और मौखिक शिकायत दी और हर बार आस्वासन मिला पर बह सड़क के रूप में धरातल पर नही उतर सकी चुनाव के समय कई नेता आये वादे किए और फिर कभी मुड़ कर नही देखा।
शादी से कतराते है दूसरे गांव के लोग
गांव में स्कूल और सड़क न होने के कारण लोग इस गांव में अपनी लड़की की शादी करने से कतराने लगे है और अगर शादी के लिए तैयार भी होते है तो शर्तो पर की हमारी लड़की गांव में नही रहेगी जिससे मजबूरन गांव के लोगो को किराए का मकान ले कर शहरों में रहना पड़ता है जिसके खर्च का असर पूरे परिवार पर पड़ता है।
युवाओ ने की पहल से बदली तस्वीर
गांव में सड़क न होने का दर्द सबसे ज्यादा युवाओ को था जिसके लिए युवाओ ने सड़क बनाने का प्रस्ताव अपने बड़े बुजुर्गों के सामने रखा और सहमति मिलते ही जुट गए सड़क बनाने और आज उन की मेहनत रंग लाई अब बारिश में भी चलने लायक सड़क बन कर तैयार है।
ग्रामीणों के जस्बे को विकास की कलम का सलाम
एक ओर जहां सुविधा न होने पर अक्सर लोग क्षेत्र से पलायन कर दूसरे अपनी मिट्टी से दूर हो जाते है। वहीं इस अनोखे गाँव मे लोगों ने शहर की ओर पलायन न करके खुद ही अव्यवस्था को दूर किया है। अब इससे न केवल ग्रामीणों की संचार व्यवस्था सुधरेगी। बल्कि यह उन भृष्ट अधिकारी और राजनेताओं के मोह में करारा तमाचा भी साबित होगा जो महज औपचारिकता के लिए गावों का भ्रमण करते है।
नोट-विकास की कलम अपने पाठकों से अनुरोध करती है कि आप अपने सुझाव हम तक जरूर भेजें..
ताकि आने वाले समय मे हम आपकी मदद से और भी बेहतर कार्य कर सकें। साथ ही यदि आपको लेख अच्छा लगे तो इसे ओरों तक भी पहुंचाए।
विकास की कलम
चीफ एडिटर
विकास सोनी
लेखक विचारक पत्रकार