अगर ऐसे बोओगे..अरहर..
तो लहलहा उठेंगे खेत...
अरहर बुवाई की उन्नत तकनीक का
दिया गया प्रशिक्षण...
जिले के गोटेगांव विकासखंड के ग्राम सिवनीबंधा और भामा में अरहर बुवाई की उन्नत तकनीक का प्रशिक्षण दिया गया। यहां समूह/ क्लस्टर दलहन प्रदर्शन के अंतर्गत अरहर की उन्नत किस्म राजेश्वरी का 10 किलोग्राम बीज, मृदा उपचार के लिए एक किलोग्राम जैव उर्वरक ट्राइकोडर्मा और बीज उपचार के लिए 200 ग्राम राइजोबियम वितरित किया गया। कार्यक्रम का आयोजन जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के अंतर्गत कृषि विज्ञान केन्द्र नरसिंहपुर के तत्वावधान में किया गया।
कार्यक्रम में कृषि वैज्ञानिक डॉ. निधि वर्मा ने बताया कि अरहर की राजेश्वरी किस्म की फसल 135 से 150 दिन में तैयार हो जाती है। अच्छी पैदावार के लिए इसकी बुवाई जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक कर देना चाहिये। इस किस्म की औसत उपज 22 क्विंटल प्रति हेक्टर है। यह जल्दी पकने वाली बोल्ड सीड और उकठा रोग के प्रति सहनसील है।
तकनीकी सहायक डॉ. विजय सिंह सूर्यवंशी ने किसानों को अरहर की बुवाई की उन्नत तकनीक रिज एवं फरों की जानकारी दी। उन्होंने उन्नत रेज्ड बैड तकनीक के बारे में बताया। इस पद्धति में सामान्य रूप से 2- 3 कतारों में बोवनी की जाती है। बेड के दोनों तरफ नालियां बनती हैं। रेज्ड बैड प्लांटर से बुवाई करने पर मेढ़ और बेड की चौड़ाई करीब 90 से 135 सेंटीमीटर, मेढ़ से मेढ़ की दूरी 50 से 60 सेंटीमीटर, कतार से कतार की दूरी 45 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 5 से 8 सेंटीमीटर रखी जाती है। रेज्ड बैड में बुवाई करने से अधिक वर्षा होने पर पानी नालियों से बाहर निकल जाता है। कम वर्षा होने पर भी नमी बनी रहती है। इस कारण से फसलों को नुकसान से बचाया जा सकता है।
कोविड- 19 संक्रमण से बचाव को दृष्टिगत रखते हुए प्रशिक्षण कार्यक्रम में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया गया। जिले में आये प्रवासी मजदूरों को रोजगार मुहैया कराने और खेती को लाभदायी बनाने के बारे में बताया गया।
नोट-विकास की कलम अपने पाठकों से अनुरोध करती है कि आप अपने सुझाव हम तक जरूर भेजें..
ताकि आने वाले समय मे हम आपकी मदद से और भी बेहतर कार्य कर सकें। साथ ही यदि आपको लेख अच्छा लगे तो इसे ओरों तक भी पहुंचाए।
विकास की कलम
चीफ एडिटर
विकास सोनी
लेखक विचारक पत्रकार
तो लहलहा उठेंगे खेत...
अरहर बुवाई की उन्नत तकनीक का
दिया गया प्रशिक्षण...
जिले के गोटेगांव विकासखंड के ग्राम सिवनीबंधा और भामा में अरहर बुवाई की उन्नत तकनीक का प्रशिक्षण दिया गया। यहां समूह/ क्लस्टर दलहन प्रदर्शन के अंतर्गत अरहर की उन्नत किस्म राजेश्वरी का 10 किलोग्राम बीज, मृदा उपचार के लिए एक किलोग्राम जैव उर्वरक ट्राइकोडर्मा और बीज उपचार के लिए 200 ग्राम राइजोबियम वितरित किया गया। कार्यक्रम का आयोजन जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के अंतर्गत कृषि विज्ञान केन्द्र नरसिंहपुर के तत्वावधान में किया गया।
कार्यक्रम में कृषि वैज्ञानिक डॉ. निधि वर्मा ने बताया कि अरहर की राजेश्वरी किस्म की फसल 135 से 150 दिन में तैयार हो जाती है। अच्छी पैदावार के लिए इसकी बुवाई जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक कर देना चाहिये। इस किस्म की औसत उपज 22 क्विंटल प्रति हेक्टर है। यह जल्दी पकने वाली बोल्ड सीड और उकठा रोग के प्रति सहनसील है।
तकनीकी सहायक डॉ. विजय सिंह सूर्यवंशी ने किसानों को अरहर की बुवाई की उन्नत तकनीक रिज एवं फरों की जानकारी दी। उन्होंने उन्नत रेज्ड बैड तकनीक के बारे में बताया। इस पद्धति में सामान्य रूप से 2- 3 कतारों में बोवनी की जाती है। बेड के दोनों तरफ नालियां बनती हैं। रेज्ड बैड प्लांटर से बुवाई करने पर मेढ़ और बेड की चौड़ाई करीब 90 से 135 सेंटीमीटर, मेढ़ से मेढ़ की दूरी 50 से 60 सेंटीमीटर, कतार से कतार की दूरी 45 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 5 से 8 सेंटीमीटर रखी जाती है। रेज्ड बैड में बुवाई करने से अधिक वर्षा होने पर पानी नालियों से बाहर निकल जाता है। कम वर्षा होने पर भी नमी बनी रहती है। इस कारण से फसलों को नुकसान से बचाया जा सकता है।
कोविड- 19 संक्रमण से बचाव को दृष्टिगत रखते हुए प्रशिक्षण कार्यक्रम में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया गया। जिले में आये प्रवासी मजदूरों को रोजगार मुहैया कराने और खेती को लाभदायी बनाने के बारे में बताया गया।
नोट-विकास की कलम अपने पाठकों से अनुरोध करती है कि आप अपने सुझाव हम तक जरूर भेजें..
ताकि आने वाले समय मे हम आपकी मदद से और भी बेहतर कार्य कर सकें। साथ ही यदि आपको लेख अच्छा लगे तो इसे ओरों तक भी पहुंचाए।
विकास की कलम
चीफ एडिटर
विकास सोनी
लेखक विचारक पत्रकार