मजदूर दिवस पर...
मजदूरों की कराह..
क्या है मजदूर दिवस...
अंतरास्ट्रीय मजदूर दिवस पूरे समूचे विश्व भर में मनाये जाने वाला एक पर्व है| इस पर्व को हम इंटरनेशनल वर्कर डे और श्रमिक दिवस और मई डे के नाम से भी सम्बोधित करते है| इंटरनेशनल लेबर डे का एक अलग ही महत्व है| यह पर्व हर साल १ मई को आता है| इस दिन को विश्व भर के मजदूर और वर्कर क्लास के लोगो को सम्बोधित करके मनाया जाता है|
मजदूर दिवस का इतिहास (Labour Day History in hindi)–
भारत में श्रमिक दिवस को कामकाजी आदमी व् महिलाओं के सम्मान में मनाया जाता है. मजदूर दिवस को पहली बार भारत में मद्रास (जो अब चेन्नई है) में 1 मई 1923 को मनाया गया था, इसकी शुरुआत लेबर किसान पार्टी ऑफ़ हिंदूस्तान ने की थी. इस मौके पर पहली बार भारत में आजादी के पहले लाल झंडा का उपयोग किया गया था. इस पार्टी के लीडर सिंगारावेलु चेत्तिअर ने इस दिन को मनाने के लिए 2 जगह कार्यकर्म आयोजित किये थे. पहली मीटिंग ट्रिपलीकेन बीच में व् दूसरी मद्रास हाई कोर्ट के सामने वाले बीच में आयोजित की गई थी. सिंगारावेलु ने यहाँ भारत के सरकार के सामने दरख्वास्त रखी थी, कि 1 मई को मजदूर दिवस घोषित कर दिया जाये, साथ ही इस दिन नेशनल हॉलिडे रखा जाये. उन्होंने राजनीती पार्टियों को अहिंसावादी होने पर बल दिया था.
आगे पढ़ें :- अलविदा ऋषि..तुमको न भूल पाएंगे...
विश्व भर में मजदूर दिवस की पहचान
1 मई 1986 में अमेरिका के सभी मजदूर संघ साथ मिलकर ये निश्चय करते है कि वे 8 घंटो से ज्यादा काम नहीं करेंगें, जिसके लिए वे हड़ताल कर लेते है. इस दौरान श्रमिक वर्ग से 10-16 घंटे काम करवाया जाता था, साथ ही उनकी सुरक्षा का भी ध्यान नहीं रखा जाता था. उस समय काम के दौरान मजदूर को कई चोटें भी आती थी, कई लोगों की तो मौत हो जाया करती थी. काम के दौरान बच्चे, महिलाएं व् पुरुष की मौत का अनुपात बढ़ता ही जा रहा था, जिस वजह से ये जरुरी हो गया था, कि सभी लोग अपने अधिकारों के हनन को रोकने के लिए सामने आयें और एक आवाज में विरोध प्रदर्शन करें.
इस हड़ताल के दौरान 4 मई को शिकागो के हेमार्केट में अचानक किसी आदमी के द्वारा बम ब्लास्ट कर दिया जाता है, जिसके बाद वहां मौजूद पुलिस अंधाधुंध गोली चलाने लगती है. जिससे बहुत से मजदूर व् आम आदमी की मौत हो जाती है. इसके साथ ही 100 से ज्यादा लोग घायल हो जाते है. इस विरोध का अमेरिका में तुरंत परिणाम नहीं मिला, लेकिन कर्मचारियों व् समाजसेवियों की मदद के फलस्वरूप कुछ समय बाद भारत व अन्य देशों में 8 घंटे वाली काम की पद्धति को अपनाया जाने लगा. तब से श्रमिक दिवस को पुरे विश्व में बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाने लगा, इस दिन मजदूर वर्ग तरह तरह की रेलियां निकालते व् प्रदर्शन करते है.
भारत में मजदूर दिवस समारोह (Labour Day Celebration)–
श्रमिक दिवस को ना सिर्फ भारत में बल्कि पुरे विश्व में एक विरोध के रूप में मनाया जाता है. ऐसा तब होता है जब कामकाजी पुरुष व् महिला अपने अधिकारों व् हित की रक्षा के लिए सड़क पर उतरकर जुलुस निकालते है. विभिन्न श्रम संगठन व् ट्रेड यूनियन अपने अपने लोगों के साथ जुलुस, रेली व् परेड निकालते है. जुलुस के अलावा बच्चों के लिए तरह तरह की प्रतियोगितायें होती है, जिससे वे इसमें आगे बढ़कर हिस्सा लें और एकजुटता के सही मतलब को समझ पायें. इस तरह बच्चे एकता की ताकत जो श्रमिक दिवस मनाने का सही मतलब है, समझ सकते है. इस दिन सभी न्यूज़ चैनल, रेडियो व् सोशल नेटवर्किंग साईट पर हैप्पी लेबर डे के मेसेज दिखाए जाते है, कर्मचारी एक दूसरे को ये मेसेज सेंड कर विश भी करते है. ऐसा करने से श्रमिक दिवस के प्रति लोगों की सामाजिक जागरूकता भी बढ़ती है.
जानें कैसे होती है एम्बुलेंस में शराब तस्करी.....
लॉक डाउन में सबसे ज्यादा मजदूरों का नुकसान
एक मई को मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाता है तो मजदूरों की बात होना भी लाजिमी है। वैश्विक महामारी कोरोना वायरस व लॉक डाउन ने अगर किसी तबके को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है तो वह है मजदूर । लाकडाउन के चलते हजारों लाखों मजदूरों का काम छूट गया है।
विषम परिस्थिति में भी डटा है मजदूर
वह रोज़ी रोटी,यहां तक कि तमाम मजदूर दाने-दाने को मोहताज है। लेकिन ऐसे संकटके समय में भी मजदूरों ने हिम्मत नहीं हारी है। कुछ मजदूर ऐसे भी हैं जिन्होंने एक काम छूटा तो दूसरे को अपना लिया। वहीं दूसरी ओर सफाई कार्य में जुटे मजदूर भी कोरोना के खिलाफ जंग में खुद को साबित कर रहे हैं। मज़दूर दिवस पर हिन्दुस्तान ने कुछ ऐसे श्रमिकों से बात की तो दर्द जुबा पर आ ही गया....।
आगे है :- जाने कैसे..? केंसर की रेस में हार गया.. रुपहले पर्दे का पानसिंह तोमर
अच्छा खासा कमा खा रहे थे लॉक डाउन ने कर दिया मोहताज
कुछ मजदूर ऐसे हैं जो लोग डाउन के चलते गुजारे को भी मोहताज हो गए हैं। इनका कहना है कि अच्छा खासा कमा खा रहे थे, लॉक डाउन में काम गया। नया काम भी नही मिला। जमा पूंजी के भी खत्म हो जाने से सड़क पर आ गए हैं। मंडी क्षेत्र के कई मज़दूर सरकारी राशन व लोगो की मदद पर निर्भर हो गए है।
दूसरा काम मिला नही तो मिलने जुलने वालों से उधार लेकर काम चला रहे हैं।
समाज के निचले तबके के मजदूर मेहनत मज़दूरी कर अपने बच्चों का पालन पोषण कर रहे थे। लेकिन लॉक डाउन के चलते गली मोहल्ले वाले रोज़ाना भोजन, और पैसे से मदद करते हैं। उससे गुजारा हो रहा।
काम भी गया, ठेकेदार ने पैसा भी नहीं दिया
भूख ने कई सौ किलोमीटर पैदल चलने पर किया मजबूर
महानगरों से पैदल चलकर लौटे मजदूरों की दास्तान
छोटे छोटे गाँवों के रहने वाले मजदूरों ने कभी नही सोचा था कि जिस रोजी रोटी को कमाने वे महानगर आये है उसी रोटी के लिए ही वापस पैदल घर लौटना होगा।
बीते दिनों देश ने यह मार्मिक नज़ारा बखूबी देखा है।जहां सर पर गृहस्थी का सामान लादे मजदूर अपने गाँवों की ओर पलायन कर रहे थे। हजारों किलोमीटर का सफर साथ मे महिलाये और बच्चे...
कुछ चौकाने वाले तथ्य
दरअसल देशभर में निर्माण क्षेत्र से जुड़े श्रमिकों पर कराए सर्वे से पता चला है कि अधिकतर मजदूरों के पास सरकार के मुआवजे का लाभ उठाने के लिए जरूरी भवन और निर्माण श्रमिक पहचान पत्र नहीं है। सर्वे के मुताबिक ऐसे करोडों मजदूर हो सकते हैं जो मुआवजे के लिए अयोग्य हो।
खास खबर :- प्रदेश की पहली कोरोना पॉजिटिव मरीज-कैसे बनी जीवन रक्षक..
जब बैंक खाता ही नही तो काहे कि राहत
सरकार भले ही मजदूरों को राहत राशि देने का दावा करें, लेकिन हकीकत इससे कोसों दूर है आपको जानकार हैरानी होगी कि कई मजदूर तो ऐसे भी हैं जिनका अब तक बैंक में खाता ही नहीं खुला है। सर्वे में शामिल 17 फीसदी मजदूरों के बैंक खाते नहीं है। ऐसे में इनके लिए सरकार से आर्थिक लाभ मिलने में मुश्किल हो सकता है। सर्वें में कहा गया है कि ज्यादातर मजदूरों को सरकार द्वारा किसी राहत पैकेज की घोषणा के बारे में जानकारी ही नहीं होती। उन्हें ये भी नहीं पता होता है कि सरकारी आर्थिक राहत को कैसे लिया जाए। सर्वे के मुताबिक 62 फीसदी श्रमिकों का कहना है कि उन्हें नहीं पता कि सरकार के आपातकालीन राहत उपायों तक कैसे पहुंचा जाए, जबकि 37 फीसदी ने कहा कि उन्हें नहीं पता कि सरकार की मौजूदा योजनाओं का लाभ कैसे उठाया जाए।
सर्वे के मुताबिक 42 फीसदी मजदूरों ने बताया कि उनके पास दिनभर का राशन भी नहीं बचा है। सर्वे में 33 फीसदी मजदूरों ने कहा कि उनके पास राशन खरीदने के लिए पैसे नहीं है। 14 फीसदी ने कहा कि उनके पास राशन कार्ड नहीं है। 12 फीसदी ने कहा कि वो राशन नहीं ले सकते क्योंकि मौजूदा स्थिति में वहां मौजूद नहीं थे।
विकास की कलम
चीफ एडिटर
विकास सोनी
लेखक विचारक पत्रकार
मजदूरों की कराह..
क्या है मजदूर दिवस...
अंतरास्ट्रीय मजदूर दिवस पूरे समूचे विश्व भर में मनाये जाने वाला एक पर्व है| इस पर्व को हम इंटरनेशनल वर्कर डे और श्रमिक दिवस और मई डे के नाम से भी सम्बोधित करते है| इंटरनेशनल लेबर डे का एक अलग ही महत्व है| यह पर्व हर साल १ मई को आता है| इस दिन को विश्व भर के मजदूर और वर्कर क्लास के लोगो को सम्बोधित करके मनाया जाता है|
मजदूर दिवस का इतिहास (Labour Day History in hindi)–
भारत में श्रमिक दिवस को कामकाजी आदमी व् महिलाओं के सम्मान में मनाया जाता है. मजदूर दिवस को पहली बार भारत में मद्रास (जो अब चेन्नई है) में 1 मई 1923 को मनाया गया था, इसकी शुरुआत लेबर किसान पार्टी ऑफ़ हिंदूस्तान ने की थी. इस मौके पर पहली बार भारत में आजादी के पहले लाल झंडा का उपयोग किया गया था. इस पार्टी के लीडर सिंगारावेलु चेत्तिअर ने इस दिन को मनाने के लिए 2 जगह कार्यकर्म आयोजित किये थे. पहली मीटिंग ट्रिपलीकेन बीच में व् दूसरी मद्रास हाई कोर्ट के सामने वाले बीच में आयोजित की गई थी. सिंगारावेलु ने यहाँ भारत के सरकार के सामने दरख्वास्त रखी थी, कि 1 मई को मजदूर दिवस घोषित कर दिया जाये, साथ ही इस दिन नेशनल हॉलिडे रखा जाये. उन्होंने राजनीती पार्टियों को अहिंसावादी होने पर बल दिया था.
आगे पढ़ें :- अलविदा ऋषि..तुमको न भूल पाएंगे...
विश्व भर में मजदूर दिवस की पहचान
1 मई 1986 में अमेरिका के सभी मजदूर संघ साथ मिलकर ये निश्चय करते है कि वे 8 घंटो से ज्यादा काम नहीं करेंगें, जिसके लिए वे हड़ताल कर लेते है. इस दौरान श्रमिक वर्ग से 10-16 घंटे काम करवाया जाता था, साथ ही उनकी सुरक्षा का भी ध्यान नहीं रखा जाता था. उस समय काम के दौरान मजदूर को कई चोटें भी आती थी, कई लोगों की तो मौत हो जाया करती थी. काम के दौरान बच्चे, महिलाएं व् पुरुष की मौत का अनुपात बढ़ता ही जा रहा था, जिस वजह से ये जरुरी हो गया था, कि सभी लोग अपने अधिकारों के हनन को रोकने के लिए सामने आयें और एक आवाज में विरोध प्रदर्शन करें.
इस हड़ताल के दौरान 4 मई को शिकागो के हेमार्केट में अचानक किसी आदमी के द्वारा बम ब्लास्ट कर दिया जाता है, जिसके बाद वहां मौजूद पुलिस अंधाधुंध गोली चलाने लगती है. जिससे बहुत से मजदूर व् आम आदमी की मौत हो जाती है. इसके साथ ही 100 से ज्यादा लोग घायल हो जाते है. इस विरोध का अमेरिका में तुरंत परिणाम नहीं मिला, लेकिन कर्मचारियों व् समाजसेवियों की मदद के फलस्वरूप कुछ समय बाद भारत व अन्य देशों में 8 घंटे वाली काम की पद्धति को अपनाया जाने लगा. तब से श्रमिक दिवस को पुरे विश्व में बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाने लगा, इस दिन मजदूर वर्ग तरह तरह की रेलियां निकालते व् प्रदर्शन करते है.
भारत में मजदूर दिवस समारोह (Labour Day Celebration)–
श्रमिक दिवस को ना सिर्फ भारत में बल्कि पुरे विश्व में एक विरोध के रूप में मनाया जाता है. ऐसा तब होता है जब कामकाजी पुरुष व् महिला अपने अधिकारों व् हित की रक्षा के लिए सड़क पर उतरकर जुलुस निकालते है. विभिन्न श्रम संगठन व् ट्रेड यूनियन अपने अपने लोगों के साथ जुलुस, रेली व् परेड निकालते है. जुलुस के अलावा बच्चों के लिए तरह तरह की प्रतियोगितायें होती है, जिससे वे इसमें आगे बढ़कर हिस्सा लें और एकजुटता के सही मतलब को समझ पायें. इस तरह बच्चे एकता की ताकत जो श्रमिक दिवस मनाने का सही मतलब है, समझ सकते है. इस दिन सभी न्यूज़ चैनल, रेडियो व् सोशल नेटवर्किंग साईट पर हैप्पी लेबर डे के मेसेज दिखाए जाते है, कर्मचारी एक दूसरे को ये मेसेज सेंड कर विश भी करते है. ऐसा करने से श्रमिक दिवस के प्रति लोगों की सामाजिक जागरूकता भी बढ़ती है.
जानें कैसे होती है एम्बुलेंस में शराब तस्करी.....
लॉक डाउन में सबसे ज्यादा मजदूरों का नुकसान
एक मई को मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाता है तो मजदूरों की बात होना भी लाजिमी है। वैश्विक महामारी कोरोना वायरस व लॉक डाउन ने अगर किसी तबके को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है तो वह है मजदूर । लाकडाउन के चलते हजारों लाखों मजदूरों का काम छूट गया है।
विषम परिस्थिति में भी डटा है मजदूर
वह रोज़ी रोटी,यहां तक कि तमाम मजदूर दाने-दाने को मोहताज है। लेकिन ऐसे संकटके समय में भी मजदूरों ने हिम्मत नहीं हारी है। कुछ मजदूर ऐसे भी हैं जिन्होंने एक काम छूटा तो दूसरे को अपना लिया। वहीं दूसरी ओर सफाई कार्य में जुटे मजदूर भी कोरोना के खिलाफ जंग में खुद को साबित कर रहे हैं। मज़दूर दिवस पर हिन्दुस्तान ने कुछ ऐसे श्रमिकों से बात की तो दर्द जुबा पर आ ही गया....।
आगे है :- जाने कैसे..? केंसर की रेस में हार गया.. रुपहले पर्दे का पानसिंह तोमर
अच्छा खासा कमा खा रहे थे लॉक डाउन ने कर दिया मोहताज
कुछ मजदूर ऐसे हैं जो लोग डाउन के चलते गुजारे को भी मोहताज हो गए हैं। इनका कहना है कि अच्छा खासा कमा खा रहे थे, लॉक डाउन में काम गया। नया काम भी नही मिला। जमा पूंजी के भी खत्म हो जाने से सड़क पर आ गए हैं। मंडी क्षेत्र के कई मज़दूर सरकारी राशन व लोगो की मदद पर निर्भर हो गए है।
दूसरा काम मिला नही तो मिलने जुलने वालों से उधार लेकर काम चला रहे हैं।
समाज के निचले तबके के मजदूर मेहनत मज़दूरी कर अपने बच्चों का पालन पोषण कर रहे थे। लेकिन लॉक डाउन के चलते गली मोहल्ले वाले रोज़ाना भोजन, और पैसे से मदद करते हैं। उससे गुजारा हो रहा।
काम भी गया, ठेकेदार ने पैसा भी नहीं दिया
भूख ने कई सौ किलोमीटर पैदल चलने पर किया मजबूर
महानगरों से पैदल चलकर लौटे मजदूरों की दास्तान
छोटे छोटे गाँवों के रहने वाले मजदूरों ने कभी नही सोचा था कि जिस रोजी रोटी को कमाने वे महानगर आये है उसी रोटी के लिए ही वापस पैदल घर लौटना होगा।
बीते दिनों देश ने यह मार्मिक नज़ारा बखूबी देखा है।जहां सर पर गृहस्थी का सामान लादे मजदूर अपने गाँवों की ओर पलायन कर रहे थे। हजारों किलोमीटर का सफर साथ मे महिलाये और बच्चे...
कुछ चौकाने वाले तथ्य
दरअसल देशभर में निर्माण क्षेत्र से जुड़े श्रमिकों पर कराए सर्वे से पता चला है कि अधिकतर मजदूरों के पास सरकार के मुआवजे का लाभ उठाने के लिए जरूरी भवन और निर्माण श्रमिक पहचान पत्र नहीं है। सर्वे के मुताबिक ऐसे करोडों मजदूर हो सकते हैं जो मुआवजे के लिए अयोग्य हो।
खास खबर :- प्रदेश की पहली कोरोना पॉजिटिव मरीज-कैसे बनी जीवन रक्षक..
जब बैंक खाता ही नही तो काहे कि राहत
सरकार भले ही मजदूरों को राहत राशि देने का दावा करें, लेकिन हकीकत इससे कोसों दूर है आपको जानकार हैरानी होगी कि कई मजदूर तो ऐसे भी हैं जिनका अब तक बैंक में खाता ही नहीं खुला है। सर्वे में शामिल 17 फीसदी मजदूरों के बैंक खाते नहीं है। ऐसे में इनके लिए सरकार से आर्थिक लाभ मिलने में मुश्किल हो सकता है। सर्वें में कहा गया है कि ज्यादातर मजदूरों को सरकार द्वारा किसी राहत पैकेज की घोषणा के बारे में जानकारी ही नहीं होती। उन्हें ये भी नहीं पता होता है कि सरकारी आर्थिक राहत को कैसे लिया जाए। सर्वे के मुताबिक 62 फीसदी श्रमिकों का कहना है कि उन्हें नहीं पता कि सरकार के आपातकालीन राहत उपायों तक कैसे पहुंचा जाए, जबकि 37 फीसदी ने कहा कि उन्हें नहीं पता कि सरकार की मौजूदा योजनाओं का लाभ कैसे उठाया जाए।
सर्वे के मुताबिक 42 फीसदी मजदूरों ने बताया कि उनके पास दिनभर का राशन भी नहीं बचा है। सर्वे में 33 फीसदी मजदूरों ने कहा कि उनके पास राशन खरीदने के लिए पैसे नहीं है। 14 फीसदी ने कहा कि उनके पास राशन कार्ड नहीं है। 12 फीसदी ने कहा कि वो राशन नहीं ले सकते क्योंकि मौजूदा स्थिति में वहां मौजूद नहीं थे।
विकास की कलम
चीफ एडिटर
विकास सोनी
लेखक विचारक पत्रकार