सिर्फ मोक्ष के कारण बची..जच्चा बच्चा की जान...
नागपुर से जबलपुर पैदल आयी गर्भवती महिला की सच्ची कहानी...
कोरोना वायरस को देखते हुए देशभर में लॉक डाउन किया गया है। लेकिन इस लॉक डाउन में सबसे ज्यादा परेशान मजदूरी करने वाले गरीब जन है। आज हम आपको ऐसी ही एक परेशानी से रूबरू कराएंगे जहां सरकार ने किए रास्ते बंद तो पैदल ही चल पड़ी गर्भवती महिला। देश इन दिनों एक अजीबो गरीब बीमारी से जूझ रहा है । जिसे लोग कोरोना के नाम से जानते है। और उसके संक्रमण के डर से सारे देश मे लॉक डाउन लगा दिया गया है।लेकिन इन सबके बीच गरीब कैसे पिसता है। इसकीवानगी इसी बात से लगा ले।कि एक गर्भवती महिला नागपुर से जबलपुर पैदल ही आ गयी। अपने पति और दो बेटियों के साथ उसने ये दर्दनाक सफर कैसे तय किया होगा। ये या तो ईश्वर समझ सकता है.... या खुद वो महिला..
आखिर कौन है पीड़िता और उसका परिवार
पीड़िता का पति राजेंद्र बघेल मूलत: ग्वालियर का रहने वाला हैं। राजेंद्र अपनी पत्नी नीतू, और छह एवं तीन वर्षीय पुत्री कामिनी और कृष्णा के साथ नागपुर में रहता है पेशे से राजेंद्र एक बेलदार है।
एक महीने से परिवार के पास कोई काम नहीं था।नागपुर में स्थानीय शासन से मदद मांगी, लेकिन उसे कोई सहारा नहीं मिला। ग्वालियर जाने की परमीशन भी नहीं दी गई।महिला के पति के मुताबिक जब कही से सहारा नही मिला तो वह अपनी गर्ववती पत्नी और बच्चों के साथ 19 अप्रैल को बर्तन एवं सूखा अनाज लेकर ग्वालियर के लिए रवाना हो गया।
जबलपुर पहुचते ही हालात बिगड़े
गर्भवती नीतू अपने पति और दो छोटी बेटियों के साथ नागपुर से जबलपुर पैदल चलकर आई ।इस बीच किसी ने भी उसकी सुध नही ली।कई दिनों की मेहनत से जैसे तैसे वह जबलपुर बायपास तक पहुँची। तो उसे प्रसव पीड़ा हुई। उसकी यह अवस्था शायद बहुत अधिक पैदल चलने के कारण बनी होगी। पीड़िता के पति ने बताया कि जैसे ही वह जबलपुर के अंध मुख बाईपास पहुंचा , वैसे ही उसकी पत्नी को अत्यधिक रक्त स्त्राव होने लगा । ऐसे में जब चारों ओर सन्नाटा छाया हो तब ईश्वर के अलावा अन्य कोई साथी नजर नहीं आता।
मोक्ष संस्था आई आगे.. की हर संभव मदद.
जबलपुर के अंध मुख बाईपास में पीड़िता का पति हर आने जाने वाले से मदद की गुहार लगाने लगा। ऐसे में किसी सज्जन ने उन्हें मोक्ष संस्था के विषय में बताया। तड़की सुबह जैसे ही मोक्ष संस्था के आशीष ठाकुर को मामले की जानकारी लगी। वैसे ही वे तत्काल मौके पर पहुंचे और फिर खुद की गाड़ी से पीड़िता और उसके परिवार को मेडिकल हॉस्पिटल तक पहुंचाया। जहां पर समय रहते उसका सही उपचार हुआ। बाद में पीड़िता का प्रसव हुआ और उसने एक स्वस्थ शिशु को जन्म दिया।
घटना ने खोली सिस्टम की पोल
लॉक डाउन के दौरान प्रशासन का यह दावा है कि वह समाज के हर तबके की मदद में जुटा हुआ है। लेकिन इस घटना ने प्रशासनिक दावों की पोल खोल कर रख दी है ।
इस घटना से कई अहम सवाल जन्म ले रहे हैं।
सबसे पहले तो यह सवाल उठता है की एक गर्भवती महिला नागपुर से जबलपुर पहुंचती है लेकिन इस दौरान किसी भी सुरक्षा चौकी में उसे मदद क्यों नहीं दी गई।
दूसरा सवाल यह है कि जब वह अंध मुख बाईपास पहुंची थी । तो वहां पर तैनात सुरक्षाकर्मियों ने पीड़िता को मदद क्यों नहीं पहुंचाई आखिर क्या कारण था कि मोक्ष संस्था के आशीष ठाकुर को खुद की गाड़ी से ही पीड़िता को मेडिकल हॉस्पिटल पहुंचाना पड़ा।
तीसरा और सबसे अहम सवाल क्या जबलपुर की सीमाओं में ऐसा कोई भी सुरक्षाकर्मी तैनात नहीं था जोकि गर्भवती स्त्री को तत्काल प्राथमिक चिकित्सा मुहैया करवा सकता।
पीड़िता के अस्पताल पहुंचते ही एक्टिव हुआ प्रशासन
पीड़ित गर्भवती स्त्री के मेडिकल हॉस्पिटल पहुंचने के बाद प्रशासन के जिम्मेदार अधिकारी सक्रिय होते नजर आए चूंकि घटना बेहद गंभीर थी लिहाजा सभी अधिकारी कर्मचारी एक्टिवमोड में आ गए। पीड़िता और उसके परिवार की देखरेख शुरू हो गई।इसी बीच महिला ने एक स्वस्थ शिशु को जन्म दिया।
तहसीलदार प्रदीप मिश्रा ने बताया कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता मंजू एवं सुधा और मुकेश राय को बुलाकर गोद भराई रस्म पूरी की। उन्हें लड्डू एवं नकद राशि दी गयी है।
जबलपुर कलेक्टर ने पहुंचाया पीड़ित परिवार को उनके घर
घटना की सूचना जैसे ही जबलपुर कलेक्टर भरत यादव तक पहुंची तत्काल ही कलेक्टर साहब ने अधिकारियों को पीड़ित परिवार की हर संभव मदद करने का आदेश दिया जिस पर तहसीलदार प्रदीप मिश्रा ने पीड़ित परिवार से मुलाकात की तहसीलदार प्रदीप मिश्रा ने बताया कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता मंजू एवं सुधा और मुकेश राय को बुलाकर गोद भराई रस्म पूरी की। उन्हें लड्डू एवं नकद राशि देकर विशेष वाहन से ग्वालियर रवाना किया गया।
विकास की कलम
चीफ एडिटर
विकास सोनी
लेखक विचारक पत्रकार
नागपुर से जबलपुर पैदल आयी गर्भवती महिला की सच्ची कहानी...
कोरोना वायरस को देखते हुए देशभर में लॉक डाउन किया गया है। लेकिन इस लॉक डाउन में सबसे ज्यादा परेशान मजदूरी करने वाले गरीब जन है। आज हम आपको ऐसी ही एक परेशानी से रूबरू कराएंगे जहां सरकार ने किए रास्ते बंद तो पैदल ही चल पड़ी गर्भवती महिला। देश इन दिनों एक अजीबो गरीब बीमारी से जूझ रहा है । जिसे लोग कोरोना के नाम से जानते है। और उसके संक्रमण के डर से सारे देश मे लॉक डाउन लगा दिया गया है।लेकिन इन सबके बीच गरीब कैसे पिसता है। इसकीवानगी इसी बात से लगा ले।कि एक गर्भवती महिला नागपुर से जबलपुर पैदल ही आ गयी। अपने पति और दो बेटियों के साथ उसने ये दर्दनाक सफर कैसे तय किया होगा। ये या तो ईश्वर समझ सकता है.... या खुद वो महिला..
आखिर कौन है पीड़िता और उसका परिवार
पीड़िता का पति राजेंद्र बघेल मूलत: ग्वालियर का रहने वाला हैं। राजेंद्र अपनी पत्नी नीतू, और छह एवं तीन वर्षीय पुत्री कामिनी और कृष्णा के साथ नागपुर में रहता है पेशे से राजेंद्र एक बेलदार है।
एक महीने से परिवार के पास कोई काम नहीं था।नागपुर में स्थानीय शासन से मदद मांगी, लेकिन उसे कोई सहारा नहीं मिला। ग्वालियर जाने की परमीशन भी नहीं दी गई।महिला के पति के मुताबिक जब कही से सहारा नही मिला तो वह अपनी गर्ववती पत्नी और बच्चों के साथ 19 अप्रैल को बर्तन एवं सूखा अनाज लेकर ग्वालियर के लिए रवाना हो गया।
जबलपुर पहुचते ही हालात बिगड़े
मोक्ष संस्था आई आगे.. की हर संभव मदद.
जबलपुर के अंध मुख बाईपास में पीड़िता का पति हर आने जाने वाले से मदद की गुहार लगाने लगा। ऐसे में किसी सज्जन ने उन्हें मोक्ष संस्था के विषय में बताया। तड़की सुबह जैसे ही मोक्ष संस्था के आशीष ठाकुर को मामले की जानकारी लगी। वैसे ही वे तत्काल मौके पर पहुंचे और फिर खुद की गाड़ी से पीड़िता और उसके परिवार को मेडिकल हॉस्पिटल तक पहुंचाया। जहां पर समय रहते उसका सही उपचार हुआ। बाद में पीड़िता का प्रसव हुआ और उसने एक स्वस्थ शिशु को जन्म दिया।
घटना ने खोली सिस्टम की पोल
लॉक डाउन के दौरान प्रशासन का यह दावा है कि वह समाज के हर तबके की मदद में जुटा हुआ है। लेकिन इस घटना ने प्रशासनिक दावों की पोल खोल कर रख दी है ।
इस घटना से कई अहम सवाल जन्म ले रहे हैं।
सबसे पहले तो यह सवाल उठता है की एक गर्भवती महिला नागपुर से जबलपुर पहुंचती है लेकिन इस दौरान किसी भी सुरक्षा चौकी में उसे मदद क्यों नहीं दी गई।
दूसरा सवाल यह है कि जब वह अंध मुख बाईपास पहुंची थी । तो वहां पर तैनात सुरक्षाकर्मियों ने पीड़िता को मदद क्यों नहीं पहुंचाई आखिर क्या कारण था कि मोक्ष संस्था के आशीष ठाकुर को खुद की गाड़ी से ही पीड़िता को मेडिकल हॉस्पिटल पहुंचाना पड़ा।
तीसरा और सबसे अहम सवाल क्या जबलपुर की सीमाओं में ऐसा कोई भी सुरक्षाकर्मी तैनात नहीं था जोकि गर्भवती स्त्री को तत्काल प्राथमिक चिकित्सा मुहैया करवा सकता।
पीड़िता के अस्पताल पहुंचते ही एक्टिव हुआ प्रशासन
पीड़ित गर्भवती स्त्री के मेडिकल हॉस्पिटल पहुंचने के बाद प्रशासन के जिम्मेदार अधिकारी सक्रिय होते नजर आए चूंकि घटना बेहद गंभीर थी लिहाजा सभी अधिकारी कर्मचारी एक्टिवमोड में आ गए। पीड़िता और उसके परिवार की देखरेख शुरू हो गई।इसी बीच महिला ने एक स्वस्थ शिशु को जन्म दिया।
तहसीलदार प्रदीप मिश्रा ने बताया कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता मंजू एवं सुधा और मुकेश राय को बुलाकर गोद भराई रस्म पूरी की। उन्हें लड्डू एवं नकद राशि दी गयी है।
जबलपुर कलेक्टर ने पहुंचाया पीड़ित परिवार को उनके घर
घटना की सूचना जैसे ही जबलपुर कलेक्टर भरत यादव तक पहुंची तत्काल ही कलेक्टर साहब ने अधिकारियों को पीड़ित परिवार की हर संभव मदद करने का आदेश दिया जिस पर तहसीलदार प्रदीप मिश्रा ने पीड़ित परिवार से मुलाकात की तहसीलदार प्रदीप मिश्रा ने बताया कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता मंजू एवं सुधा और मुकेश राय को बुलाकर गोद भराई रस्म पूरी की। उन्हें लड्डू एवं नकद राशि देकर विशेष वाहन से ग्वालियर रवाना किया गया।
विकास की कलम
चीफ एडिटर
विकास सोनी
लेखक विचारक पत्रकार