आदिवासी छात्रावासों की हकीकत (पार्ट 1)
नरक से भी बदतर है कुंडम का आदिवासी बालक छात्रावास
चपरासी की दहशत से दहल जाते हैं बच्चे....
जबलपुर से 35 किलोमीटर दूर कुंडम तहसील में निर्मित आदिवासी बालक छात्रावास किसी नर्क से कम नहीं है यहां पर दूरदराज के ग्रामीण क्षेत्रों से आए बच्चे खाना तो बहुत दूर की बात है एक एक बूंद पानी के लिए तरस रहे लेकिन वह शिकायत करें भी तो किससे अगर उन्होंने अपनी जुबान खोली तो उन्हें छात्रावास से निकाल दिया जाता है बात थोड़ी अटपटी जरूर है लेकिन सच है आज विकास की कलम ऐसे ही गरीब आदिवासी बच्चों की आवाज बुलंद करायेगी जोकि भ्रष्टाचार और अफसरशाही की भेंट चढ़ चुके छात्रावास में नर्क की जिंदगी जीने को मजबूर हैं।
चपरासी बना छात्रवास अधीक्षक किसी हिटलर से कम नहीं
कुंडम छात्रावास में विकास की कलम पहुंची तो वह भी कुछ पल के लिए सहम गयी। क्योंकि इस छात्रवास में प्रवेश करते ही हमारा सामना एक बेहद बत्तमीज चपरासी से हुआ। चूंकि गेट पर कोई गार्ड नही था लिहाजा हम छात्रावास के अंदर प्रवेश कर गए। जहां आराम से चपरासी खाना बनाने वालों के साथ गपशप कर रहा था। इस बीच हमें देख चपरासी बौखला गया।खुद की पोल न खुल जाए इसलिए वह बत्तमीजी पर उतारू हो गया।हम बार बार उससे अधीक्षक का नंबर पूछ रहे थे पर वो सर्वे सर्वा बनकर हमी को उल्टा पाठ पढ़ा रहा था।
सिर्फ खास अवसरों पर ही आता है अधीक्षक
विकास की कलम ने जब बच्चों से बात की तो पता चला कि छात्रावास अधीक्षक सिर्फ 15 अगस्त या 26 जनवरी या फिर अधिकारियों के निरीक्षण होने पर ही आते है। बाकी समय इसी चपरासी का एक छत्र राज इस छात्रावास में चलता। जो कि बच्चों को इस तरह से दबा के रखता है कि मजाल है कि यहां की बात बाहर निकल जाए
खुद की गाड़ी चलवाने से फुरसत मिले ....तो छात्रवास पहुंचे अधीक्षक
कहने को तो इस आदिवासी छात्रवास में अधीक्षक के पद पर राम सिंह तेकाम पदस्त है। लेकिन यह सिर्फ दिखावा है... तेकाम साहब को तो खुद की गाड़ी चलवाने से फुरसत ही कहाँ है जो इन बच्चों को आकर देखें।
अपनी रहमत पर पदस्त किये हुए चपरासी को ही पूरी जिम्मेदारी दी गयी है। चाहे जैसे भी संचालन करो बस बात बाहर नही आनी चाहिए..
आदरणीय के पास MP 20 TA 0192 नंबर की एक टैक्सी गाड़ी है। जिसके संचालन में ही तेकाम साहब का पूरा समय चला जाता है। और हो भी क्यो न..सेलरी तो आ ही रही है..टेक्सी में भी ध्यान दे दे...आखिर मुख्य धंधा तो टेक्सी का ही है ना....
पूरे छात्रवास में किसी को नही पता अधीक्षक का नंबर
विकास की कलम जब कुंडम के छात्रावास पहुंची तो हमने पाया कि यहां अनियमितता का अंबार पसरा हुआ था। इन सबके बीच जब बच्चों की व्यथा सुनी तो अनायास ही मन मे अधीक्षक से मुलाकात की इक्षा हुई। लिहाजा हमने चपरासी से अधीक्षक का नंबर मांगा तो चपरासी ने साफ मना कर दिया।
नियमों की माने तो अधीक्षक का नंबर (संपर्क सूत्र)छात्रवास के बोर्ड पर अंकित होना चाहिए । ताकि कोई भी विद्यार्थी समय आने पर संपर्क कर सके। साथ ही आगंतुक भी इनसे संपर्क करने के लिए स्वतंत्र हो।
हमे मत सिखाओ-हमे सब पता है किसको कितना जाता है-चपरासी..
सरकारी तंत्र में भ्रस्टाचार किस तरह हावी है इस बात का एहसास हमे यहां के चपरासी ने ही करा दिया। जब हमने इसके संदिग्ध कार्यो को रंगे हाथ पकड़ा तो पहले तो इसने हमसे ही बत्तमीजी की बाद में जब हमने पूछा कि क्या शिकायत होने का डर नही है आपको...
तो चपरासी बोला हमे मत सिखाओ ...हमें सब पता है..आपके जैसे कई आये और गए।
अधिकारी भी आते है तो लेकर जाते है...जाओ जिससे शिकायत करनी हो कर दो।
शिकायत करने पर मिलती है सजा
विकास की कलम ने छुपे कैमरे में जो कैद किया उसे सुनकर आप भी हैरान हो जाएंगे। बच्चों ने बातों बातों में ये राज की बात बताई की साहब अगर हम किसी की शिकायत करेंगे तो हमे छात्रावास से निकल दिया जाएगा। इसके साथ ही आपके जाने के बाद हमे सजा भी मिलेगी। पिछले साल कुछ मीडिया वाले आये थे ।उसके बाद कुछ बच्चों को छात्रावास से निकाल दिया गया। हैम गरीब घर से है इसलिए चुप ही रहते है।
नहाने को नाले में जाते है साहब..खुजली होती है
कुंडम छात्रावास में नहाने के लिए वैसे तो कागजों पर पूरी व्यवस्था है पर हकीकत इससे कोसों दूर है बच्चों ने जानकारी देतेहुए बताया कि हम सभी को पानी की बेहद समस्या है इसलिए हमें मजबूरन छात्रावास के सामने बने नाले या यूं कहें उस गंदे तालाब में नहाने जाना पड़ता है।जहां उस गंदे पानी से नहाने पर बदन में खुजली होती है।चूंकि चपरासी का काम पानी की व्यवस्था करना है।लेकिन उसकी हिटलरशाही के चलते बच्चे नाले में ही नहाने जाते है।
नास्ते में मिलता है एक चम्मच पोहा
वैसे तो इस छात्रावास में नास्ते की व्यवस्था है पर कितनी इसकी पूरी कहानी बच्चों ने खुद बयान की है। नास्ता बनता जरूर है लेकिन इस का उपभोग सबसे ज्यादा स्टाफ ही करता है। दिखावे के तौर पर महज एक चम्मच पोहा बच्चों को दिया जाता है।बाकी पूरा नास्ता प्लेट भर भर कर यहां पदस्त स्टाफ खाता है। बच्चों की माने तो अगर उन्होंने नास्ते की मांग की तो उन्हें दोपहर का कहना न दिए जाने तक कि सजा मिलती है।
मीनू के हिसाब से नहीं मिलता खाना
छात्रों ने बताया कि छात्रावास में मीनू के हिसाब से खाना नहीं मिलता है, कभी दाल-चावल मिलता है तो कभी रोटी अकेले से काम चलाना पड़ता है। सुरक्षा व्यवस्था भी भगवान भरोसे है किसी भी वक्त कोई भी छात्रावास में घुसा चला आता है। शिकायत करने पर सजा मिलती है।और फिर कोई न कोई आरोप लगवाकर निकाल दिया जाता है
6 महीने पहले भी हुई थी शिकायत
19 अक्टूबर 2019 का मामला
अभिभावक अपने बच्चों को घर से दूर छात्रावास में इसलिए भेजते हैं कि उनका बच्चा पढ़-लिखकर कुछ बन जाए और उनका नाम रोशन करे। परंतु कुंडम स्थित आदिवासी बालक छात्रावास में अभिभावकों के सपनों पर पानी फेरा जा रहा है। घर से कई किलोमीटर दूर पढ़ाई करने छात्रावास में रह रहे बच्चों से कार-ट्रैक्टर सुधरवाने का काम कराया जा रहा है। सोशल मीडिया में बच्चों के काम करते हुए फोटो वायरल होने के बाद छात्रावासों में बच्चों की सुरक्षा और उनकी शिक्षा को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं। इधर आदिवासी विभाग बच्चों की अच्छी शिक्षा और उनकी सुरक्षा को लेकर तमाम प्रयास में जुटा है, सामान्य छात्रों से हटकर इन छात्रों को अनेक सुविधाएं दी गई हैं यहां तक कि सामान्य छात्रावासों से ज्यादा फंड आदिवासी छात्रावासों को इसलिए दिया जा रहा है कि आदिवासी बच्चों को शिक्षा ग्रहण करने में कोई परेशानी न आए।
किसी भी दिन हो सकता है हादसा
आदिवासी बच्चों से ट्रैक्टर और कार के पार्ट्स उठवाएं जा रहे हैं, चालू वाहनों में उनसे सुधार कार्य कराया जा रहा है। क्षेत्रीय लोगों का कहना है कि अधीक्षक के कहने पर बच्चों से काम कराया जाता है। बच्चे काम नहीं करते हैं तो उन्हें परेशान किया जाता है। यदि कोई हादसा होता है तो उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा....
विकास की कलम ने की सहायक आयुक्त से मुलाकात
उपरोक्त मामलों को लेकर विकास की कलम ने आदिवासी विभाग के सहायक आयुक्त मोहित भारती से मुलाकात की। और उन्हें छुपे कैमरे में कैद हुई बच्चों की व्यथा से अवगत कराया। हकीकत जानकर कर सहायक आयुक्त भी हैरान हो गए। उन्होंने ने जल्द ही छात्रावास अधीक्षक पर कड़ी कार्यवाही की बात कही है।
कुंडम छात्रावास में अगर ऐसा हो रहा है निश्चित रूप से अधीक्षक और अन्य संबंधितों से पूछताछ कर कार्रवाई की जाएगी। बच्चों से काम कराना अपराध है, छात्रावास में रहने वाले विद्यार्थी सिर्फ पढ़ाई के करने के लिए आते हैं।
मोहित भारती, सहायक आयुक्त आदिवासी विभाग
विकास की कलम
चीफ एडिटर
विकास सोनी
(लेखक विचारक पत्रकार)
नरक से भी बदतर है कुंडम का आदिवासी बालक छात्रावास
चपरासी की दहशत से दहल जाते हैं बच्चे....
जबलपुर से 35 किलोमीटर दूर कुंडम तहसील में निर्मित आदिवासी बालक छात्रावास किसी नर्क से कम नहीं है यहां पर दूरदराज के ग्रामीण क्षेत्रों से आए बच्चे खाना तो बहुत दूर की बात है एक एक बूंद पानी के लिए तरस रहे लेकिन वह शिकायत करें भी तो किससे अगर उन्होंने अपनी जुबान खोली तो उन्हें छात्रावास से निकाल दिया जाता है बात थोड़ी अटपटी जरूर है लेकिन सच है आज विकास की कलम ऐसे ही गरीब आदिवासी बच्चों की आवाज बुलंद करायेगी जोकि भ्रष्टाचार और अफसरशाही की भेंट चढ़ चुके छात्रावास में नर्क की जिंदगी जीने को मजबूर हैं।
चपरासी बना छात्रवास अधीक्षक किसी हिटलर से कम नहीं
कुंडम छात्रावास में विकास की कलम पहुंची तो वह भी कुछ पल के लिए सहम गयी। क्योंकि इस छात्रवास में प्रवेश करते ही हमारा सामना एक बेहद बत्तमीज चपरासी से हुआ। चूंकि गेट पर कोई गार्ड नही था लिहाजा हम छात्रावास के अंदर प्रवेश कर गए। जहां आराम से चपरासी खाना बनाने वालों के साथ गपशप कर रहा था। इस बीच हमें देख चपरासी बौखला गया।खुद की पोल न खुल जाए इसलिए वह बत्तमीजी पर उतारू हो गया।हम बार बार उससे अधीक्षक का नंबर पूछ रहे थे पर वो सर्वे सर्वा बनकर हमी को उल्टा पाठ पढ़ा रहा था।
सिर्फ खास अवसरों पर ही आता है अधीक्षक
विकास की कलम ने जब बच्चों से बात की तो पता चला कि छात्रावास अधीक्षक सिर्फ 15 अगस्त या 26 जनवरी या फिर अधिकारियों के निरीक्षण होने पर ही आते है। बाकी समय इसी चपरासी का एक छत्र राज इस छात्रावास में चलता। जो कि बच्चों को इस तरह से दबा के रखता है कि मजाल है कि यहां की बात बाहर निकल जाए
खुद की गाड़ी चलवाने से फुरसत मिले ....तो छात्रवास पहुंचे अधीक्षक
कहने को तो इस आदिवासी छात्रवास में अधीक्षक के पद पर राम सिंह तेकाम पदस्त है। लेकिन यह सिर्फ दिखावा है... तेकाम साहब को तो खुद की गाड़ी चलवाने से फुरसत ही कहाँ है जो इन बच्चों को आकर देखें।
अपनी रहमत पर पदस्त किये हुए चपरासी को ही पूरी जिम्मेदारी दी गयी है। चाहे जैसे भी संचालन करो बस बात बाहर नही आनी चाहिए..
आदरणीय के पास MP 20 TA 0192 नंबर की एक टैक्सी गाड़ी है। जिसके संचालन में ही तेकाम साहब का पूरा समय चला जाता है। और हो भी क्यो न..सेलरी तो आ ही रही है..टेक्सी में भी ध्यान दे दे...आखिर मुख्य धंधा तो टेक्सी का ही है ना....
पूरे छात्रवास में किसी को नही पता अधीक्षक का नंबर
विकास की कलम जब कुंडम के छात्रावास पहुंची तो हमने पाया कि यहां अनियमितता का अंबार पसरा हुआ था। इन सबके बीच जब बच्चों की व्यथा सुनी तो अनायास ही मन मे अधीक्षक से मुलाकात की इक्षा हुई। लिहाजा हमने चपरासी से अधीक्षक का नंबर मांगा तो चपरासी ने साफ मना कर दिया।
हमे मत सिखाओ-हमे सब पता है किसको कितना जाता है-चपरासी..
सरकारी तंत्र में भ्रस्टाचार किस तरह हावी है इस बात का एहसास हमे यहां के चपरासी ने ही करा दिया। जब हमने इसके संदिग्ध कार्यो को रंगे हाथ पकड़ा तो पहले तो इसने हमसे ही बत्तमीजी की बाद में जब हमने पूछा कि क्या शिकायत होने का डर नही है आपको...
तो चपरासी बोला हमे मत सिखाओ ...हमें सब पता है..आपके जैसे कई आये और गए।
अधिकारी भी आते है तो लेकर जाते है...जाओ जिससे शिकायत करनी हो कर दो।
शिकायत करने पर मिलती है सजा
विकास की कलम ने छुपे कैमरे में जो कैद किया उसे सुनकर आप भी हैरान हो जाएंगे। बच्चों ने बातों बातों में ये राज की बात बताई की साहब अगर हम किसी की शिकायत करेंगे तो हमे छात्रावास से निकल दिया जाएगा। इसके साथ ही आपके जाने के बाद हमे सजा भी मिलेगी। पिछले साल कुछ मीडिया वाले आये थे ।उसके बाद कुछ बच्चों को छात्रावास से निकाल दिया गया। हैम गरीब घर से है इसलिए चुप ही रहते है।
नहाने को नाले में जाते है साहब..खुजली होती है
कुंडम छात्रावास में नहाने के लिए वैसे तो कागजों पर पूरी व्यवस्था है पर हकीकत इससे कोसों दूर है बच्चों ने जानकारी देतेहुए बताया कि हम सभी को पानी की बेहद समस्या है इसलिए हमें मजबूरन छात्रावास के सामने बने नाले या यूं कहें उस गंदे तालाब में नहाने जाना पड़ता है।जहां उस गंदे पानी से नहाने पर बदन में खुजली होती है।चूंकि चपरासी का काम पानी की व्यवस्था करना है।लेकिन उसकी हिटलरशाही के चलते बच्चे नाले में ही नहाने जाते है।
नास्ते में मिलता है एक चम्मच पोहा
वैसे तो इस छात्रावास में नास्ते की व्यवस्था है पर कितनी इसकी पूरी कहानी बच्चों ने खुद बयान की है। नास्ता बनता जरूर है लेकिन इस का उपभोग सबसे ज्यादा स्टाफ ही करता है। दिखावे के तौर पर महज एक चम्मच पोहा बच्चों को दिया जाता है।बाकी पूरा नास्ता प्लेट भर भर कर यहां पदस्त स्टाफ खाता है। बच्चों की माने तो अगर उन्होंने नास्ते की मांग की तो उन्हें दोपहर का कहना न दिए जाने तक कि सजा मिलती है।
मीनू के हिसाब से नहीं मिलता खाना
छात्रों ने बताया कि छात्रावास में मीनू के हिसाब से खाना नहीं मिलता है, कभी दाल-चावल मिलता है तो कभी रोटी अकेले से काम चलाना पड़ता है। सुरक्षा व्यवस्था भी भगवान भरोसे है किसी भी वक्त कोई भी छात्रावास में घुसा चला आता है। शिकायत करने पर सजा मिलती है।और फिर कोई न कोई आरोप लगवाकर निकाल दिया जाता है
6 महीने पहले भी हुई थी शिकायत
19 अक्टूबर 2019 का मामला
अभिभावक अपने बच्चों को घर से दूर छात्रावास में इसलिए भेजते हैं कि उनका बच्चा पढ़-लिखकर कुछ बन जाए और उनका नाम रोशन करे। परंतु कुंडम स्थित आदिवासी बालक छात्रावास में अभिभावकों के सपनों पर पानी फेरा जा रहा है। घर से कई किलोमीटर दूर पढ़ाई करने छात्रावास में रह रहे बच्चों से कार-ट्रैक्टर सुधरवाने का काम कराया जा रहा है। सोशल मीडिया में बच्चों के काम करते हुए फोटो वायरल होने के बाद छात्रावासों में बच्चों की सुरक्षा और उनकी शिक्षा को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं। इधर आदिवासी विभाग बच्चों की अच्छी शिक्षा और उनकी सुरक्षा को लेकर तमाम प्रयास में जुटा है, सामान्य छात्रों से हटकर इन छात्रों को अनेक सुविधाएं दी गई हैं यहां तक कि सामान्य छात्रावासों से ज्यादा फंड आदिवासी छात्रावासों को इसलिए दिया जा रहा है कि आदिवासी बच्चों को शिक्षा ग्रहण करने में कोई परेशानी न आए।
किसी भी दिन हो सकता है हादसा
आदिवासी बच्चों से ट्रैक्टर और कार के पार्ट्स उठवाएं जा रहे हैं, चालू वाहनों में उनसे सुधार कार्य कराया जा रहा है। क्षेत्रीय लोगों का कहना है कि अधीक्षक के कहने पर बच्चों से काम कराया जाता है। बच्चे काम नहीं करते हैं तो उन्हें परेशान किया जाता है। यदि कोई हादसा होता है तो उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा....
विकास की कलम ने की सहायक आयुक्त से मुलाकात
कुंडम छात्रावास में अगर ऐसा हो रहा है निश्चित रूप से अधीक्षक और अन्य संबंधितों से पूछताछ कर कार्रवाई की जाएगी। बच्चों से काम कराना अपराध है, छात्रावास में रहने वाले विद्यार्थी सिर्फ पढ़ाई के करने के लिए आते हैं।
मोहित भारती, सहायक आयुक्त आदिवासी विभाग
विकास की कलम
चीफ एडिटर
विकास सोनी
(लेखक विचारक पत्रकार)