जस्टिस एनवी रमण ने कहा कि फैसला लिखने से पहले हम चार्ल्स को कोट करना चाहते हैं.
'यह एक बेहतरीन समय था, यह एक बदतर समय था, यह ज्ञान का युग था, यह मूर्खता का युग था, यह विश्वास का युग था, यह अविश्वास का युग था, यह प्रकाश का मौसम था, यह अंधकार का मौसम था, यह आशाओं का बसंत था यह निराशाओं का शीतकाल था, हमारे सामने सब कुछ है, हमारे सामने कुछ भी नहीं है, हम सब स्वर्ग की ओर जा रहे थे, हम सब इसके विपरीत दिशा में जा रहे थे, संक्षेप में यह समय लगभग मौजूदा समय की तरह था, इस काल की सबसे शोर मचाने वाली सरकार इस बात पर जोर दे रही थी कि वह सबसे अच्छा और सबसे बुराई प्राप्त करे। - चार्ल्स डिकेंस
जस्टिस रमण ने कहा, 'कश्मीर हमारे दिलों में धरती पर स्वर्ग की तरह से अंकित है लेकिन, इस खूबसूरत जमीन का इतिहास हिंसा और आतंकवाद से खुदा हुआ है। यहां हिमालय के पर्वत अपनी शांति बिखेरते हैं वहीं, यहां रोज खून बहता है। अंतरविरोधों की इस भूमि में ये याचिकाएं इस सूची में जुड़ जाती हैं जहां, दो पक्षों ने अलग ही तस्वीरें पेश की हैं. जो एक-दूसरे के खिलाफ हैं लेकिन, दोनों के तथ्य एकदम पक्के हैं।'
उन्होंने कहा, 'इस संदर्भ में इस अदालत का काम बहुत महत्वपूर्ण हो गया है। यह कहने की जरूरत नहीं है कि यह अदालत बंदिशों के फैसलों के राजनैतिक औचित्य पर विचार नहीं करेगा, यह बात हम लोकतांत्रिक ताकतों पर ही छोड़ देते हैं। हमारा सीमित दायरा यह है कि हम स्वतंत्रता और सुरक्षा की चिंताओं के बीच संतुलन बनाएं, जिससे जीवन का अधिकार बेहतर संभावित तरीके से सुरक्षित किया जा सके। हम यह नहीं तय कर रहे कि सुरक्षित रहना ज्यादा जरूरी है या स्वतंत्र रहना। यद्यपि हम यहां यह सुनिश्चित करने के लिए हैं कि मौजूदा हालात में नागरिकों को सभी अधिकार और स्वतंत्रताएं मिल जाएं तथा साथ ही सुरक्षा भी सुनिश्चित रहे।'
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